टूटती कांग्रेस, सिमटते वाम की जगह लेती भाजपा
यदि तेलंगाना राज्य कांग्रेस मुक्त हो जाता है, तो पार्टी किसी और को नहीं, बल्कि स्वयं को दोषी ठहराए। दीवार पर लिखा स्पष्ट था, लेकिन पार्टी हाईकमान ज्वार को थामने के लिए कुछ भी करने में नाकाम रहा।...
यदि तेलंगाना राज्य कांग्रेस मुक्त हो जाता है, तो पार्टी किसी और को नहीं, बल्कि स्वयं को दोषी ठहराए। दीवार पर लिखा स्पष्ट था, लेकिन पार्टी हाईकमान ज्वार को थामने के लिए कुछ भी करने में नाकाम रहा। विधानसभा चुनावों की घोषणा के तत्काल बाद दिसंबर 2018 में पहले कांग्रेस विधायक ने कांग्रेस से इस्तीफा देने और टीआरएस में शामिल होने की मंशा जाहिर कर दी थी। 119 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस पार्टी 19 सीटें जीत पाई। सत्तारूढ़ टीआरएस ने 88 सीटें जीतीं और स्पष्ट बहुमत हासिल किया।
विगत दिसंबर में 24 घंटे के अंदर ही विपक्ष ढह गया था। सबसे पहले ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के एक विधायक ने अपनी पार्टी से इस्तीफा देकर टीआरएस की सदस्यता ग्रहण कर ली। उसके बाद टीडीपी के एक विधायक टीआरएस में जा मिले। उसके बाद कांग्रेस विधायक की बारी थी। ध्यान रहे, जब 2019 संसदीय चुनाव हो रहे थे, तब 11 कांग्रेस विधायक इस्तीफा देकर टीआरएस में शामिल होने के इंतजार में थे। कांगे्रस नेता और विधायक उत्तम कुमार रेड्डी के संसदीय चुनाव में जीतते ही कांग्रेस विधायकों की संख्या घटकर 18 हो गई। इससे कांग्रेस के उन 12 विधायकों को मौका मिल गया, जो टीआरएस में शामिल होने के इंतजार में थे। कुल 18 विधायकों में से 12 विधायक मिलकर दो-तिहाई हो गए और दलबदल कानून के तहत किसी भी कार्रवाई से सुरक्षित हो गए, वे तत्काल टीआएस में शमिल हो गए। अचानक विलय को राष्ट्रीय मीडिया ने झटके की तरह लिया, लेकिन राज्य में यह अपेक्षित था। सबको चकित करने वाली बात यह थी कि कांग्रेस हाईकमान ने पार्टी विधायकों को पाला बदलने और प्रतिद्वंद्वी संगठन में शामिल होने से रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया।
लोकतंत्र के लिए यह बुरी खबर है कि चंद्रशेखर राव विपक्षियों के बीच असंतोष भड़काकर उन्हें शून्य तक घटाने की इच्छा रखते हैं। विपक्ष को खत्म करने की राव की कोशिश के कारण तेदेपा, एआईएफबी और कांगे्रेस में चिंता है। कांग्रेस पार्टी के पास केवल छह विधायक बचे हैं और अब वह मुख्य विपक्षी पार्टी होने का दर्जा गंवा चुकी है। एआईएमआईएम के पास सात विधायक हैं और उसने विपक्ष के नेता पद की मांग की है।
विरोधी के अंत के लिए संघर्ष की सियासत तेलंगाना में नई नहीं है। पहले जब कांग्रेस का नेतृत्व वाई एस राजशेखर रेड्डी कर रहे थे, तब उन्होंने ठीक इसी तरह टीआरएस को तबाह किया था। दलबदल करवाकर चंद्रशेखर राव को मुश्किल में डाल दिया था। लेकिन राजनीति किसी गप से भी ज्यादा अनजानी साबित हो सकती है। जहां चंद्रशेखर राव हमेशा वाईएसआर रेड्डी से कटु लड़ाई लड़ते रहे, वहीं उन्हें उनके पुत्र जगन मोहन रेड्डी से कोई समस्या नहीं है। जगन अब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। राव और रेड्डी के बीच तालमेल मजबूत है। आशा है, दोनों नेता विभाजन के बाद दोनों राज्यों के बीच पैदा हुई कड़वाहट को घटा सकते हैं। रेड्डी के शपथ ग्रहण में राव भी उपस्थित रहे और रेड्डी ने हैदराबाद हाउस में भोज का आयोजन किया। कांग्रेस ने टुकड़े-टुकड़े होकर आंध्र प्रदेश में वाईएसआर और तेलंगाना में टीआरएस को बढ़ने के रास्ते दिए हैं। तेलंगाना के राजनीतिक परिदृश्य में पश्चिम बंगाल के प्रतिबिंब दिखने लगे हैं, जहां कांग्रेस और वाम की गिरावट का फायदा भाजपा ने उठाया है। ठीक इसी तरह तेलंगाना में वाम दलों और कांग्रेस द्वारा छोड़ी गई जगह शायद भाजपा ही कब्जाएगी। हैदराबाद, करीमनगर और वारंगल के नक्सल प्रभावित क्षेत्र भाजपा की अपील पर मोहित हो रहे हैं। तेलंगाना में चार लोकसभा सीटों पर भाजपा को आश्चर्यजनक विजय हासिल हुई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके संगठन राज्य में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए दृढ़ हैं। भाजपा को कर्नाटक के जरिए दक्षिण का द्वार हासिल हुआ था और अब उसे तेलंगाना में भी अवसर की भनक लग गई है। टीआरएस प्रमुख राव ने भले ही राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को किनारे कर दिया है, र इस सौदेबाजी में उन्होंने राज्य में ज्यादा बड़ी शत्रु भाजपा की घुसपैठ की बुनियाद भी रख दी है।
भगवा पार्टी आश्वस्त है, आने वाले दिनों में वह राज्य की राजनीति में गहरी पैठ के लिए आक्रामक जोर लगाएगी। आगे राव के लिए चुनौती बहुत कड़ी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)