योग और व्यायाम के बीच मधुमेह नियंत्रण का सवाल
ग्लाइसेमिक (शुगर) को नियंत्रित रखने और हृदय रोग का खतरा कम करने के लिए क्या डायबिटीज यानी मधुमेह के मरीजों को शारीरिक श्रम की जगह योग शुरू कर देना चाहिए? आठ अंतरराष्ट्रीय शोधों का निष्कर्ष तो यही है...
ग्लाइसेमिक (शुगर) को नियंत्रित रखने और हृदय रोग का खतरा कम करने के लिए क्या डायबिटीज यानी मधुमेह के मरीजों को शारीरिक श्रम की जगह योग शुरू कर देना चाहिए? आठ अंतरराष्ट्रीय शोधों का निष्कर्ष तो यही है कि योग ग्लाइसेमिक कंट्रोल (फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज) में तात्कालिक सुधार ही करता है। 30 से 78 आयु-वर्ग के 842 मरीजों पर किए गए इस अध्ययन में एचबीए1सी के स्तर और डायबिटीज से जुड़ी दूसरी जटिलताओं में नतीजे बहुत अनुकूल नहीं आए हैं।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद-इंडियाबी के अध्ययन के मुताबिक, भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या करीब सात करोड़ है, जिनमें से 47.3 फीसदी लोग तो अपनी इस बीमारी के बारे में जानते तक नहीं हैं। यह निष्कर्ष 14 राज्य और चंडीगढ़ जैसे केंद्र शासित क्षेत्र में 20 वर्ष से अधिक उम्र के 57,117 वयस्कों पर अध्ययन करके निकाला गया है। इतना ही नहीं, यह भी सामने आया कि साल 2016 में भारत में अकाल मौत की छठी सबसे बड़ी वजह डायबिटीज थी, जो 2005 में 11वां कारण साबित हुआ था। जहां तक दूसरे देशों का सवाल है, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) दुनिया भर में 42.5 करोड़ लोगों में मधुमेह की पुष्टि करता है, जिनमें से वयस्कों में इसका प्रसार 8.5 फीसदी है। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के अनुमान बताते हैं कि साल 2015 में इस रोग की वजह से विश्व को 673 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ था, जो वैश्विक स्वास्थ्य खर्च का 12 फीसदी था।
डायबिटीज का पारंपरिक इलाज डॉक्टरों द्वारा सुझाई गई दवाओं के सेवन और जीवनशैली में सुधारों पर जोर देता है। इसमें हाई फायबर वाला पौष्टिक आहार, वजन नियंत्रण और सप्ताह में कम से कम तीन दिन 150 मिनट का मध्यम-तेज व्यायाम भी शामिल है। मगर कुछ अध्ययनों ने साबित किया है कि आसन, प्राणायाम और ध्यान वाले योग खून में ग्लूकोज का स्तर सुधारते हैं और कॉलेस्ट्रॉल, रक्तचाप, वजन, कमर-कुल्हे का अनुपात, हृदय गति और श्वांस आदि को नियंत्रित करते हैं।
ऐसे समय में, जब खासकर दक्षिण एशिया के कुछ वयस्क शारीरिक श्रम की अवधि व गति को लेकर खास सलाहों, मसलन- दौड़ने, साइकिलिंग, फुटबॉल-बैडमिंटन खेलने या चार-पांच किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने पर अमल कर रहे हों, तब भारत-श्रीलंका-ब्रिस्बन के कुछ शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने की कोशिश की कि क्या ब्लड शुगर नियंत्रित करने के मामले में योग एक्सरसाइज की जगह ले सकता है?
इस अध्ययन के सह-लेखक फोर्टिस सी-डीओसी सेंटर फॉर डायबिटीज, मेटाबोलिक डिजीज ऐंड एंडोक्राइनोलॉजी के चेयरमैन डॉ अनूप मिश्रा कहते हैं, ‘डायबिटीज को नियंत्रित रखने के लिए इन दिनों अतिरिक्त उपचार के तौर पर योग का तेजी से इस्तेमाल किया जा रहा है। अब तो कई मरीज एरोबिक की जगह इसी पर निर्भर रहने लगे हैं। मगर निर्णायक रूप से योग का लाभ अब तक साबित नहीं हो सका है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ऐसे कई अध्ययनों के प्रारूप या तो वैज्ञानिक रूप से कमजोर थे या इन्हें पर्याप्त मरीजों के बीच नहीं किया गया या फिर योग से पड़ने वाले असर की पूरी तरह से पड़ताल नहीं की गई।’
डायबिटीज मेटाबोलिक सिंड्रोम जर्नल में प्रकाशित एक नया अध्ययन बताता है कि शारीरिक श्रम की तुलना में योग को तरजीह दिए जाने के बाद नाश्ते से पहले यानी खाली पेट ग्लूकोज में 15.16 मिलिग्राम प्रति डेसीलीटर की कमी आई है, जबकि खाने के बाद ग्लूकोज में 29 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर की। एचबीए1सी के स्तर में भी 0.39 फीसदी की गिरावट आई। योग से वजन में कुछ कमी जरूर आई थी, पर कमर से नीचे के हिस्से में कोई खास बदलाव नहीं दिखा। योग का यह नतीजा उत्साह जरूर जगाता है, क्योंकि टाइप-2 डायबीटिज में यह अन्य शारीरिक श्रम की अपेक्षा कहीं ज्यादा कारगर साबित हुआ है, मगर शोधकर्ताओं की मानें, तो निर्णायक साक्ष्य के लिए अब भी पर्याप्त अध्ययन की दरकार है। यानी एरोबिक या एक्सरसाइज बंद करके महज योग के भरोसे मधुमेह नियंत्रण का इरादा अभी उचित नहीं है। हां, इसे नियमित एक्सरसाइज के साथ किया जा सकता है।