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सबसे जरूरी है लोगों के पोषण में निवेश करना

विगत दशक के दौरान पोषण ने फिर सबका ध्यान खींचा है और यह राजनीतिक विमर्श का विषय बन गया है। पिछले दो वर्षों में हम नीति-निर्माण के सर्वोच्च स्तर पर पोषण के प्रति प्रतिबद्धता के गवाह रहे हैं। पोषण...

सबसे जरूरी है लोगों के पोषण में निवेश करना
सुपर्णा घोष जेरथ प्रमुख (सामुदायिक पोषण), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थThu, 11 Jul 2019 11:55 PM
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विगत दशक के दौरान पोषण ने फिर सबका ध्यान खींचा है और यह राजनीतिक विमर्श का विषय बन गया है। पिछले दो वर्षों में हम नीति-निर्माण के सर्वोच्च स्तर पर पोषण के प्रति प्रतिबद्धता के गवाह रहे हैं। पोषण अभियान इस दिशा में बिल्कुल सामयिक पहल है। इस कार्यक्रम के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए धन से भी बहुत समर्थन दिया गया है। विशेष रूप से जब हम संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 की रोशनी में देखते हैं, तब पोषण की दिशा में पहल और भी अवाश्यक प्रतीत होती है। यह रिपोर्ट भारत में कुपोषण संबंधी संकट को उजागर करते हुए बताती है कि भारत दुनिया के एक तिहाई नाटे बच्चों का देश है। इसके साथ ही, यहां सूक्ष्म स्तर पर भी कुपोषण बहुत फैला हुआ है और भूख की समस्या भी छिपी हुई है। 
हमें यह पता चल चुका है कि पोषण का विषय देश की आर्थिक उत्पादकता से निकट से जुड़ा है। अत: पोषण में निवेश करना मानव संसाधन विकसित करने का सबसे किफायती प्रभावी उपाय है। पोषण अभियान एक रणनीति की तरह है, जिसके तहत पुख्ता पोषण के तमाम मुख्य उपायों को आत्मसात करने की कोशिश हुई है। अपनी मूल रणनीति के रूप में इसका क्रियान्वयन हो रहा है। पोषण अभियान कार्यक्रम के तहत यह पाया गया है कि कुपोषण की जड़ें अनेक क्षेत्रों तक फैली हुई हैं। यह समस्या पीढ़ी दर पीढ़ी भी प्रभाव दिखाती रही है। वैसे तो इस कार्यक्रम का नेतृत्व महिला एवं बाल विकास मंत्रालय कर रहा है, लेकिन इसके क्रियान्वयन की रणनीति में कई तरह के विभाग और कार्य शामिल हैं। इसके तहत कई तरह के कार्यक्रम और सेवाएं शामिल हैं। कुपोषण के उल्लेखनीय कारणों में खाद्य सुरक्षा, आजीविका सुरक्षा संबंधी कारण भी शामिल हैं। जन स्वास्थ्य से जुड़े विषय जल, स्वच्छता इत्यादि भी इसमें शामिल हैं। 
हालांकि पहल और हस्तक्षेप के इतने व्यापक फलक को संभालने के लिए स्पष्ट ढांचे की जरूरत है। अभी अलग-अलग प्रशासनिक स्तर पर कार्ययोजना समिति बनाकर इस अभियान की जरूरतों से निपटने की कोशिश हो रही है। ब्लॉक, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए प्रयास हो रहे हैं। इसका एक और पक्ष है, जिसकी कार्यक्रम-क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। यह देखा जा रहा है कि क्या सरकारी और निजी भागीदारी के सहयोग से निर्धारित लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। इस संदर्भ में देखें, तो स्वस्थ भारत प्रेरक कार्यक्रम उदाहरण है, यह महिला और बाल विकास विभाग और एक निजी ट्रस्ट की संयुक्त पहल है। स्वस्थ भारत प्रेरक कार्यक्रम के जरिए पोषण अभियान को प्रबंधकीय और प्रशासनिक समर्थन प्रदान किया जा रहा है। पोषण अभियान के तहत एक कारगर निगरानी तंत्र की भी परिकल्पना की गई है, जो सूचना और प्रसारण तकनीक पर आधारित होगा। इससे तत्काल सूचनाओं का आदान-प्रदान हो सकेगा। इसके लिए राष्ट्रीय पोषण संसाधन केंद्र बनाया गया है, यह केंद्रीय कार्ययोजना प्रबंधन इकाई होगी। यह इकाई इस कार्यक्रम के तहत ही क्षेत्रवार समीक्षा और निगरानी सुनिश्चित करेगी। 
किसी भी पोषण या स्वास्थ्य कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए यह जरूरी है कि जन समुदाय का मजबूत सहयोग मिले और पहल के हर चरण में जन भागीदारी सुनिश्चित हो। पोषण अभियान पोषण जागरूकता को जन आंदोलन में बदल देना चाहता है, जिसमें हर जिम्मेदार अपने-अपने कार्य, सामाजिक स्वास्थ्य, पोषण और स्वास्थ्य की जवाबदेही लेगा। पोषण की कोई भी पहल तब तक अधूरी है, जब तक कि उसमें व्यवहारगत बदलाव और पोषण शिक्षण की पूरक रणनीति शामिल न हो। बेहतर पोषण व्यवहार या आदतें हममें अवश्य होनी चाहिए। अगर पोषण हमारी आदत में शामिल नहीं होगा, तो किसी भी मात्रा में संसाधन खर्च कर दिए जाएं, सब व्यर्थ जाएगा। अपने पोषण पर हमें स्वयं सोचना होगा और फैसले लेने होंगे। पोषण क्षमता का विकास हो। स्वास्थ्य कार्यबल सुधरे, उन्हें बेहतर प्रशिक्षण मिले, ताकि वे समाज के व्यवहार में बदलाव लाने के लिए उत्कृष्ट प्रसारक के रूप में काम कर सकें। इससे महिलाओं, नवजातों और छोटे बच्चों का पोषण सुधरेगा और स्वास्थ्य व पोषण सेवाओं का सदुपयोग होगा। 
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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