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अनबिकी किताबों को नष्ट करने का अर्थशास्त्र

क्या आप विश्वास करेंगे कि ब्रिटेन में प्रकाशकों को कभी-कभी ही नहीं, प्राय: अपने द्वारा प्रकाशित पुस्तकें स्वयं नष्ट ही नहीं कर देनी पड़ती हैं, वरन ऐसा करने के लिए उन्हें प्रति वर्ष करोड़ों रुपए खर्च भी...

अनबिकी किताबों को नष्ट करने का अर्थशास्त्र
महेंद्र राजा जैन, वरिष्ठ हिंदी लेखकTue, 06 Feb 2018 10:14 PM
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क्या आप विश्वास करेंगे कि ब्रिटेन में प्रकाशकों को कभी-कभी ही नहीं, प्राय: अपने द्वारा प्रकाशित पुस्तकें स्वयं नष्ट ही नहीं कर देनी पड़ती हैं, वरन ऐसा करने के लिए उन्हें प्रति वर्ष करोड़ों रुपए खर्च भी करने पड़ते हैं। ऐसा क्यों और कैसे होता है? वस्तुत: इस प्रक्रिया में वही पुस्तकें नष्ट की जाती हैं, जो बिक नहीं पातीं यानी पुस्तक विक्रेताओं के यहां से प्रकाशकों के पास वापस आ जाती हैं। इनमें ज्यादातर पेपरबैक ही होती हैं, जो  प्रेस, गोदाम, विक्रेता और फिर वहां से वापस आने की प्रक्रिया में इस स्थिति में नहीं रह जातीं कि उन्हें बिक्री के लिए फिर कहीं भेजा जा सके। यह आशंका भी रहती है कि विक्रेताओं से वापस आई पुस्तकों में से जो अच्छी हालत में हों, उन्हें प्रकाशक के लोग ही औने-पौने दाम न बेच लें। प्रकाशक को नई किताबों को रखने के लिए भी अपने गोदम में जगह बनानी ही पड़ती है, ऐसे में पुरानी किताबें नष्ट करना ही मुफीद रहता है।

निश्चित रूप से पुस्तकें नष्ट करना संवेदनशील व्यक्ति का काम नहीं है और न ही कोई ऐसा करना पसंद ही करेगा, लेकिन किसी-न-किसी को तो यह करना ही पड़ता है। ऐसा करने के लिए ब्रिटेन के प्रकाशकों ने ‘बुक इंडस्ट्री कम्युनिकेशन’ नामक संस्था से अनुबंध किया है, जो यह काम लिवरपूल स्थित जेल के कैदियों से करवाना पसंद करती है। लुगदी बनाने की प्रक्रिया में पुस्तकें पूरी तरह नष्ट करने के पहले इनमें छेद कर दिए जाते हैं, ताकि वे कहीं से भी बिक्री योग्य न रह जाएं।

पुस्तकों में छेद करने की महारत ‘स्पेशल मीडिया सॉल्युशंस’ कंपनी के पास है। यह कंपनी वस्तुत: जेल बंदियों के लिए काम की तलाश करती है। इसके लिए कैदियों को पारिश्रमिक मिलता है। इसकी नजर में पुस्तकों में छेद करने का काम कैदियों के लिए नैतिक दृष्टि से उचित और उनकी आत्मनिर्भरता की दिशा में सही कदम है। लेकिन कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशन व्यवसाय में इस बात को लेकर कुछ क्षोभ रहा कि पुस्तकों में छेद करने का यह काम लिंकनशायर स्थित नार्थ सी बैंक की जेल को क्यों नहीं दिया गया। याद रहे कि प्रसिद्ध उपन्यासकार और पुस्तकों की बिक्री से करोड़पति बने जेफरी आर्चर को स्वयं अपने विरुद्ध अदालत में चले एक मुकदमें में झूठ बोलने और गवाहों को भड़काकर न्याय प्रक्रिया में विघ्न डालने के अभियोग में इसी जेल में कुछ वर्ष तक कैद रखा गया था। नार्थ सी बैंक के कैदियों को पुस्तकों में छेद करने का काम सौंपा जाता, तो पूरी संभावना थी कि किसी समय वहां जेफरी आर्चर स्वयं अपनी पुस्तकों में छेद कर रहे होते। 

कई बार प्रसिद्ध लोग (जिसमें लेखक भी शामिल हैं) जेल के सीखचों के भीतर रहकर भी अपने कारणों से चर्चा में बने रहते हैं। जेफरी आर्चर भी इसके अपवाद नहीं हैं। दो वर्षों से अधिक समय तक जेल में रहने के कारण तो वह चर्चा में रहे ही, पर अपनी किसी पुस्तक के कारण नहीं, वरन इस कारण कि जेल में रहते हुए भी उन्होंने धंधे की बात सोची और अपनी दो दर्जन पुस्तकों के पूर्व प्रकाशक हार्पर कालिंस से नाता तोड़कर अपनी नई पुस्तकों के लिए प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक मैकमिलन से अनुबंध कर लिया। 

जेफरी आर्चर के पुराने प्रकाशक हार्पर कालिंस के मुताबिक आर्चर उनसे किए गए अपने अनुबंध की शर्तों के अनुसार समय पर अपनी नई पुस्तक की पांडुलिपि नहीं दे पाए, इस कारण उन्होंने आपसी सहमति से आर्चर का अनुबंध समाप्त कर दिया, लेकिन यह बात प्रकाशन जगत में किसी के गले नहीं उतरी। कारण जो भी रहा हो, जेल बंदी जीवन में भी उपन्यास लेखक के रूप में  आर्चर की प्रसिद्धि कम नहीं हुई, बल्कि कहना चाहिए कि प्रसिद्धि और ज्यादा बढ़ी ही। अन्यथा क्या कारण है कि प्रकाशन जगत में हुई चर्चा के अनुसार आर्चर ने अपनी जेल डायरी  और नए उपन्यास के लिए मैकमिलन से बीस लाख पौंड से भी अधिक का अनुबंध किया था। यह भी सही है कि जेल से रिहा होने के बाद जब आर्चर की जेल डायरी  प्रकाशित हुई, तो उनके पाठकों ने उसे हाथोंहाथ लिया और प्रकाशक के लिए वह घाटे का सौदा नहीं रहा। यह जेल डायरी  कितनी बिकी और कितनी नहीं, ये आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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