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Hindi News ओपिनियन नजरियासंख्या बढ़े, लेकिन छोटे करदाताओं को राहत मिले

संख्या बढ़े, लेकिन छोटे करदाताओं को राहत मिले

नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, देश में मध्यम वर्ग के 17 करोड़ लोग हैं, जबकि आयकरदाताओं की संख्या महज 6.26 करोड़ है। माना जाता है कि सामान्य तौर पर वेतनभोगी वर्ग ही...

संख्या बढ़े, लेकिन छोटे करदाताओं को राहत मिले
जयंतीलाल भंडारी, अर्थशास्त्रीFri, 22 Dec 2017 12:16 AM
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नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, देश में मध्यम वर्ग के 17 करोड़ लोग हैं, जबकि आयकरदाताओं की संख्या महज 6.26 करोड़ है। माना जाता है कि सामान्य तौर पर वेतनभोगी वर्ग ही निर्धारित आयकर चुकाता है, लेकिन देश में सेवा क्षेत्र और स्वयं का कारोबार करने वाला एक ऐसा बड़ा वर्ग है, जो आयकर के दायरे से दूर है। 20 दिसंबर को आयकर विभाग ने आयकरदाताओं से संबंधित जो आंकड़े प्रस्तुत किए हैं, उनके अनुसार 2014-15 में  3.65 करोड़ लोगों ने टैक्स रिटर्न फाइल किया था। इनमें 1.37 करोड़ लोग 2.5 लाख रुपसे से कम आय वाले थे। वहीं 2015-16 में देश में कुल 4.07 करोड़ लोगों ने रिटर्न फाइल किया, जिनमें से 82 लाख लोग ऐसे थे, जिनकी आय 2.5 लाख रुपये से कम दिखी।
 
देश में आयकरदाताओं की कम संख्या का कारण आयकर कानून की कमियां हैं, जिनका अनुचित लाभ करदाता उठाते हैं। वेतनभोगी वर्ग निर्धारित आयकर चुकाता है, लेकिन सेवा क्षेत्र और स्वयं का कारोबार करने वाला बड़ा वर्ग आयकर के दायरे से दूर है। सर्वविदित है कि देश की विकास दर के साथ-साथ शहरीकरण की ऊंची वृद्धि दर के बूते भारत में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है। नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देश में मध्यम वर्ग के 17 करोड़ लोगों में 46 फीसदी क्रेडिट कार्ड, 49 फीसदी कार, 52 फीसदी एसी तथा 53 फीसदी कंप्यूटर के मालिक तो हैं, लेकिन इनमें से बड़ी तादाद आयकर नहीं चुकाती है। हालांकि बीते एक वर्ष में नोटबंदी के दबाव में कालाधन जमा करने वालों में घबराहट बढ़ी, तो वे नए आयकरदाताओं के रूप में दिखाई भी दिए हैं। विश्व के कर विशेषज्ञों का मानना है कि विभिन्न विकासशील देशों की तुलना में भारत में अब भी छिपे हुए आयकरदाताओं की संख्या बहुत ज्यादा है। ऐसे में, वास्तविक आय पर आयकर देने वालों की संख्या बढ़ाने और ईमानदारी से आयकर देने वाले करदाताओं को राहत देने के मद्देनजर देश के करोड़ों लोगों की निगाहें नई प्रत्यक्ष कर संहिता (डायरेक्ट टैक्स कोड-डीटीसी) तथा नए आयकर अधिनियम (इनकम टैक्स ऐक्ट) का मसौदा तैयार करने के लिए गठित किए गए सात सदस्यीय कार्यबल की ओर लगी हुई हैं। यह कार्यबल नए आयकर कानून व प्रत्यक्ष कर संहिता लागू किए जाने के लिए छह महीने के  भीतर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप देगा। 

देश में आयकर का इतिहास देखें, तो पता चलता है कि इसकी शुरुआत अंग्रेजों ने 1922 में की थी। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पटरी से उतरी देश की अर्थव्यवस्था के लिए राजस्व जुटाने के मद्देनजर आयकर अस्थाई रूप से लागू किया गया था। तभी से यह सरकार की आय का महत्वपूर्ण आधार बना हुआ है। यद्यपि देश की आजादी के बाद वर्ष 1961 तक देश की प्रत्यक्ष कर नीति और आयकर कानून में कुछ सुधार हुए, फिर 1961 में आयकर अधिनियम लागू किया गया। पर इस अधिनियम में एक ओर कार्यान्वयन संबंधी जटिलताएं रहीं, तो दूसरी ओर रियायतों व छूटों के कारण कर अनुपालन में मुश्किलें बढ़ती गईं। ऐसे में, केंद्र सरकार का सन 1961 के आयकर अधिनियम की समीक्षा के लिए कार्यबल बनाने का निर्णय मौजूदा समय की जरूरत ही कहा जाना चाहिए। 

यद्यपि समय-समय पर बनाई गई विशेषज्ञ समितियों की बहुत सी सिफारिशों और प्रस्तावों को वर्तमान प्रत्यक्ष कर प्रणाली में पहले ही शामिल किया जा चुका है। इनमें जनरल एंटी-अवॉइडेंस रूल्स (गार), प्रभावी प्रबंधन व्यवस्था, शेयरों के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण पर करों की सख्ती कम करना आदि शामिल हैं। कई अहम बदलाव भी आयकर अधिनियम में शामिल किए जा चुके हैं। जैसे कॉरपोरेट टैक्स को 50 करोड़ रुपये तक के कारोबार वाली फर्म के लिए कम करके 25 फीसदी कर दिया गया था। उस विधेयक में मुनाफा संबंधी कटौती के खात्मे की जो बात कही गई थी, उसे भी आयकर अधिनियम में शामिल किया जा चुका है। आशा की जानी चाहिए कि नया कानून ऐसी आदर्श आयकर प्रणाली को आकार दे सकेगा, जहां कर की दरें कम होंगी, करदाताओं का दायरा बढ़ेगा और ईमानदारी से आयकर देने वालों को राहत मिलेगी। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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