मणिपुर में असम रायफल्स को लेकर जारी आंदोलन का सच
मणिपुर के कांगपोकपी जिले में 22 असम रायफल्स के बटालियन मुख्यालय में सैनिकों ने रवानगी की तैयारी शुरू कर दी है। 20 सितंबर से उनकी जगह सीआरपीएफ के जवान ले लेंगे। जम्मू-कश्मीर में बढ़ती आतंकी घटनाओं के...
मणिपुर के कांगपोकपी जिले में 22 असम रायफल्स के बटालियन मुख्यालय में सैनिकों ने रवानगी की तैयारी शुरू कर दी है। 20 सितंबर से उनकी जगह सीआरपीएफ के जवान ले लेंगे। जम्मू-कश्मीर में बढ़ती आतंकी घटनाओं के मद्देनजर केंद्र ने मणिपुर से 22 और 9 असम रायफल्स बटालियनों को वहां भेजने का आदेश दिया है। इन दोनों बटालियनों में लगभग 2,500 जवान हैं, जो अभी कांगपोकपी और चुराचांदपुर में तैनात हैं। ये दोनों पहाड़ी जिले हैं, जहां कुकी समुदाय की बहुसंख्या है। इन जवानों में से कई अपने नए मिशन को लेकर उत्साहित हैं, क्योंकि ऐसी चुनौतियों के लिए ही उनको प्रशिक्षित किया गया है। मगर एक समस्या भी है।
22 असम रायफल्स बटालियन के मुख्यालय के बाहर करीब 80 कुकी महिलाएं केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ धरने पर बैठ गई हैं। 20 सितंबर तक यह संख्या बढ़ भी सकती है, क्योंकि हर घर ने अपनी महिला को यहां भेजने का फैसला किया है। ‘कम्युनिटी ऑन ट्राइबल यूनिटी’ के बैनर तले महिलाओं ने एलान किया है कि वे गेट को बंद कर देंगी और सैनिकों को जाने नहीं देंगी। उनका मानना है कि असम रायफल्स के जवान ही मैतेई उग्रवादियों से उनकी रक्षा कर सकते हैं। मगर वहां से करीब 45 किलोमीटर दूर मैतेई महिलाओं की मदद से सैकड़ों छात्रों ने इंफाल के काकवा बाजार में भारत-म्यांमार मार्ग को जाम कर दिया है। वे भी धरने पर बैठे हैं, हालांकि उनकी छह मांगों में एक मांग यह है कि असम रायफल्स को मणिपुर से हटाया जाए। उनका कहना है, हिंसा अब भी इसीलिए जारी है, क्योंकि सुरक्षा बल कुकी उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा। इन प्रदर्शनकारियों के मुताबिक, मणिपुर का इतिहास इसका गवाह है कि असम रायफल्स ने हमेशा मैतेई लोगों पर अत्याचार किया है।
मणिपुर पिछली मई से जातीय हिंसा में जल रहा है। मैतेई को आदिवासी का दर्जा देने के अदालती फैसले (जिस पर रोक लगा दी गई) के खिलाफ आदिवासियों का विरोध-प्रदर्शन (कुकी के नेतृत्व में) जल्द ही दोनों समूहों के बीच जातीय संघर्ष में बदल गया। एन बीरेन सिंह सरकार के मैतेई समर्थक रुख से कोई मदद नहीं मिली और पुलिस बल व नौकरशाही में जातीय विभाजन के बाद माना यही गया कि असम रायफल्स की मौजूदगी ने ही यहां के हालात संभाले हैं। हालांकि, गुरुवार दोपहर असम रायफल्स के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल विकास लखेड़ा ने प्रदर्शन कर रही महिलाओं को समझाया कि एक सैनिक के लिए आदेश-पालन अनिवार्य है और सीआरपीएफ भी उतनी ही सक्षम फोर्स है। मगर महिलाओं ने रोड खाली करने से इनकार कर दिया है। इस आशंका में कि कहीं सैनिक तय समय से पहले न चले जाएं, महिलाओं ने रात भी यहीं बिताने का फैसला किया है। वहां चाय बनाने की व्यवस्था के साथ-साथ बारिश से बचने के लिए टेंट भी लगा दिए गए हैं। इस बीच, इंफाल में भी मैतेई छात्रों ने अपनी मांगें पूरी होने तक कक्षा में न जाने की कसम खाई है, जिसके कारण सरकार को कक्षाएं व परीक्षाएं निलंबित करनी पड़ी हैं। छात्रों ने इस बाबत एक ज्ञापन भी राज्यपाल को सौंपा है और अपनी मांगें माने जाने तक प्रदर्शन जारी रखने का एलान किया है।
पिछले 16 महीनों में पहली बार असम रायफल्स को यहां से हटाया जा रहा है। कई नौकरशाह मानते हैं कि विरोध और जवाबी-विरोध की यह पटकथा महीनों पहले लिखी गई थी। उनके मुताबिक, बेशक मणिपुर में असम रायफल्स को लेकर विवाद रहे हैं, लेकिन उसको लेकर इससे पहले इतनी राजनीति कभी नहीं हुई थी। यह सच है कि जम्मू-कश्मीर में सैनिकों की जरूरत है, लेकिन अभी इसको वहां से भेजने का फैसला गलत साबित हो सकता है। हालांकि, असम रायफल्स के एक जवान ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यही एकमात्र सुरक्षा बल है, जिसके साये तले कुकी और मैतेई मिलकर शांति बहाली के लिए काम कर रहे हैं। जब पहली बार यहां हिंसा फैली थी, तब दोनों समुदायों के 20,000 से अधिक लोगों को इसी सुरक्षा बल ने बचाया था। उसके मुताबिक, हम यहां आंतरिक सुरक्षा में लगे हुए हैं और हमारा कोई दुश्मन नहीं है। लिहाजा, यह अच्छा ही है कि हम में से कुछ जवान जम्मू-कश्मीर जा रहे हैं, क्योंकि देश की खातिर लड़ने के लिए वहां एक दुश्मन तो है।