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राखीगढ़ी में देखे गए हड़प्पा के नए पहलू भी पढ़ाए जाएंगे

एनसीईआरटी ने हाल ही में इतिहास की स्कूली पाठ्य-पुस्तकों के लिए प्रस्तावित संशोधनों में हरियाणा स्थित राखीगढ़ी के पुरातात्विक स्थल पर पाए गए कंकाल-अवशेषों के डीएनए विश्लेषण के आधार पर नई जानकारियां...

राखीगढ़ी में देखे गए हड़प्पा के नए पहलू भी पढ़ाए जाएंगे
Pankaj Tomarविनोद कुमार यादव, उत्खनन से जुड़े इतिहासकारFri, 02 Aug 2024 10:09 PM
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एनसीईआरटी ने हाल ही में इतिहास की स्कूली पाठ्य-पुस्तकों के लिए प्रस्तावित संशोधनों में हरियाणा स्थित राखीगढ़ी के पुरातात्विक स्थल पर पाए गए कंकाल-अवशेषों के डीएनए विश्लेषण के आधार पर नई जानकारियां दी हैं। 12वीं कक्षा की इतिहास की किताब के नए संस्करण में राखीगढ़ी के बारे में कहा गया है कि हड़प्पावासी हरियाणा की राखीगढ़ी के मूल निवासी थे। वे आर्यों के प्रवास से पहले राखीगढ़ी में मौजूद थे। इतिहास की पाठ्य-पुस्तक में किए गए ये संशोधन चर्चा का कारण बने हुए हैं। एनसीईआरटी ने हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को इसके बारे में अवगत कराया है। राखीगढ़ी के पुरातात्विक अध्ययन से पता चलता है कि हड़प्पावासियों की आनुवंशिक जड़ें 10 हजार ईसा पूर्व तक जाती हैं। लिहाजा, इस बारे में नए सिरे से तथ्यों को संयोजित किया जाना चाहिए, ताकि मानव सभ्यता की विकास यात्रा के नए अध्याय लिखे जा सकें। 
भारतीय उपमहाद्वीप में सिंधु, रावी, सरस्वती और दृषद्वती नदियों के किनारे जो सभ्यता विकसित हुई, उसे सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता कहा जाता रहा है। महत्वपूर्ण पुरास्थल राखीगढ़ी के अलावा बनावली, धोलावीरा और लोथल कालीबंगा पुरास्थल सरस्वती नदी के पैलियो-चैनल पर बसे हुए थे। ऋग्वेद  की सौ से अधिक ऋचाओं में सरस्वती का उल्लेख अन्न-प्रदायनी और सदानीरा के रूप में हुआ है। शोध अध्ययन के मुताबिक, 63 फीसदी से अधिक पुरास्थल सरस्वती और उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे हुए थे, जबकि 21 प्रतिशत सिंधु व उसकी सहायक नदियों के किनारे स्थित थे। अत: पुरातात्विक सबूतों के आधार पर अब एनसीईआरटी की किताबों में सिंधु-सरस्वती सभ्यता लिखना तय किया गया है। गौरतलब है कि राखीगढ़ी सभ्यता से जुड़े दो हजार पुरास्थल चिह्नित हो चुके हैं। ये स्थल अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत में लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं। 
सामान्यत: सभ्यता से तात्पर्य मनुष्य की उपलब्धियों से है, यानी सामाजिक विकास की उन्नत अवस्था को ‘सिविलाइजेशन’ कहते हैं और जब यह अवस्था अपने बौद्धिक उत्कर्ष पर पहुंचकर अलंकृत व परिष्कृत हो जाती है, तो सभ्यता स्वाभाविक रूप से ‘संस्कृति’ में रूपांतरित हो जाती है। हालांकि, सभ्यता और संस्कृति, दोनों अवस्थाएं एक-दूसरे की पूरक हैं। 
लगभग सात हजार वर्ष प्राचीन सभ्यता को समेटे राखीगढ़ी से नमस्कार मुद्रा में, पद्मासन अवस्था में योगी की मृण्मूर्ति मिली है। हाल ही में एएसआई टीम को यहां से दो महिलाओं के कंकाल मिले हैं, जिनके हाथों में खोल की चूड़ियां, तांबे का दर्पण, पत्थरों के मनके और मालाएं मिली हैं। शोध से पता चला कि ये कंकाल 2800-2300 ईस्वी पूर्व के हैं। शोधार्थियों के अनुसार, राखीगढ़ी के कंकाल में उत्तर के पशुचारियों के अलावा ईरान या तुर्की से आए पश्चिमी खेतिहरों का कोई प्रमाण नहीं मिला है, यानी ये शुद्ध भारतीय वंशजों के हैं। 
हड़प्पा सभ्यता-संस्कृति के अफगानिस्तान, पाकिस्तान से लेकर भारत स्थित तमाम पुरातात्विक स्थलों में राखीगढ़ी को अद्वितीय माना जा रहा है। इन दिनों चौथे चरण का उत्खनन चल रहा है। मई 2022 में तीसरे चरण के उत्खनन के दौरान जो महत्वपूर्ण पुरावशेष मिले थे, उन्हीं के आलोक में सर्वेक्षण व उत्खनन को आगे बढ़ाया जा रहा है। राखीगढ़ी पुरास्थल की तीसरे चरण की खुदाई से यह सिद्ध हो गया है कि हड़प्पा सभ्यता का सबसे सुनियोजित, सुव्यवस्थित, खूबसूरत और बड़ा नगर मोहनजोदाड़ो नहीं, बल्कि राखीगढ़ी है। अपनी बेहतरीन शहर-योजना, सुनियोजित जन-निकास प्रणाली, बहुमंजिला मकानों व स्वच्छतापूर्ण संस्कृति को लेकर सुर्खियों में है। तीसरी खुदाई में मिले महत्वपूर्ण पुरावशेषों में सबसे खास है- सोने के आभूषण तराशने की फैक्टरी। इस फैक्टरी के साक्ष्यों का कालखंड पांच हजार साल पुराना है। हालांकि, सोने के आभूषण प्रचुर मात्रा में नहीं मिले हैं, किंतु हड़प्पा कालीन सोने की एक अनूठी पट्टिका प्राप्त हुई है। इस पर हड़प्पा लिपि में कुछ लिखा हुआ है, जिसका अर्थ खोजने में लिपि-विशेषज्ञ जुटे हुए हैं। लिपि का अर्थ स्पष्ट होने पर हड़प्पा सभ्यता के कुछ और अनसुलझे रहस्यों से परदा उठेगा।   
राखीगढ़ी के पुरावशेषों को देखते हुए इतिहासकारों की राय है कि ये पुरातात्विक प्रमाण निश्चित तौर पर मानव सभ्यता की विकास यात्रा के नए अध्याय खोलेंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)