देश को हम कैसे बना पाएंगे प्रतिभाओं की महाशक्ति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, 21वीं सदी भारत की होगी। विकास के सभी क्षेत्रों में उनकी इस बात का व्यापक असर पड़ा है। पिछले साल हमने वैश्विक आर्थिक विकास में 7.2 प्रतिशत का योगदान दिया है। मगर...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, 21वीं सदी भारत की होगी। विकास के सभी क्षेत्रों में उनकी इस बात का व्यापक असर पड़ा है। पिछले साल हमने वैश्विक आर्थिक विकास में 7.2 प्रतिशत का योगदान दिया है। मगर इस आर्थिक वृद्धि को बनाए रखते हुए एक विकसित देश बनने के लिए जरूरी है कि हम अपने बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने पर ध्यान दें। अनुमान है कि 2047 तक दुनिया भर की 20 प्रतिशत कामकाजी आबादी भारत से आएगी। इस प्रकार हम प्रतिभाओं की महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। मगर इस कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा इस समय प्रारंभिक कक्षाओं में है, जहां की एक कड़वी सच्चाई यह है कि तीसरी कक्षा पास करने वाले करीब तीन चौथाई बच्चे वाक्य पढ़ तो सकते हैं, लेकिन उसे समझ नहीं पाते। वे गणित के सरल प्रश्नों को भी हल नहीं कर पा रहे हैं।
देश के विकास में शिक्षा की अहम भूमिका को देखते हुए साल 2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई, जिसमें प्रारंभिक शिक्षा को सबसे अहम माना गया है। इसे देखते हुए शिक्षा मंत्रालय ने 2021 में भारत के प्रारंभिक शिक्षा मिशन- निपुण भारत (नेशनल इनिशिएटिव फॉर प्रोफिशिएंसी इन रीडिंग विद अंडरस्टैंडिंग ऐंड न्यूमरेसी) की शुरुआत की, जो प्रारंभिक कक्षा में पठन-पाठन को नए सिरे से परिभाषित करते हुए शिक्षा के संपूर्ण इकोसिस्टम में बदलाव ला रहा है। इसके तहत यह कोशिश की गई है कि सभी बच्चे अर्थ समझते हुए पढ़ना सीखें व गणित के बुनियादी सवाल हल कर सकें। चूंकि निपुण का संकल्प है कि सभी बच्चे ‘सिद्धि’ के स्तर तक पहुंच सकें, इसलिए भारत की शिक्षा प्रणाली को ‘संकल्प से सिद्धि तक’ शिक्षा के सात स्वरों पर जोर देना चाहिए।
सबसे पहला स्वर है साधन। इसमें हमें बुनियादी बातों से शुरुआत करनी होगी। हमारी स्कूली इमारतें ऐसी हों, जहां रोशनी की पूरी व्यवस्था हो। खेल के लिए बड़ा मैदान हो। शौचालय व पानी की अच्छी सुविधा हो। एक बड़ी चुनौती अलग-अलग कक्षाओं की जटिल स्थिति को सही तरीके से संभालना भी है। इसका एक हल यह हो सकता है कि विद्यालय प्रणाली को पुनर्गठित करके सभी प्राइमरी स्कूलों की हर कक्षा में एक शिक्षक की मौजूदगी सुनिश्चित की जाए। शिक्षकों के पास ऐसी शिक्षण सामग्री भी होनी चाहिए, जिसमें बेहतर शिक्षण की रूपरेखा और कार्ययोजना के साथ-साथ छात्रों की कार्य-पुस्तक और मूल्यांकन सामग्री भी शामिल हो। इसका अगला भाग है, एडटेक, यानी उपकरण के सहारे समझ विकसित करना। इससे बच्चों का सीखने का समय बढ़ाया जा सकता है।
अगला स्वर ‘साधना’ है। कक्षा में शानदार पढ़ाई के लिए शिक्षकों को बेहतर ट्रेनिंग व पेशेवर विकास व मार्गदर्शन की जरूरत होती है। इसके लिए हमें उन्हें इस अभियान से जोड़ना होगा। अगला स्वर ‘समीक्षा’ के लिए हमें सीखने के परिणामों का आकलन करना होगा। यह रचनात्मक आकलन नियमित रूप से शिक्षकों को बच्चों की समझ परखने में मदद करेगा। सीखने और सिखाने के बेहतर परिणाम प्राप्त करने में भारत की प्रौद्योगिक शक्ति बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। उत्तर प्रदेश का निपुण गुणवत्ता एप इसका उदाहरण है। वहां इसकी मदद से व्यक्तिगत आधार पर शिक्षण के लिए बुनियादी ढांचा तैयार हो रहा है।
अगला स्वर है, संवाद। शिक्षकों के सहकर्मी शिक्षण समूहों, क्लस्टर और जिला समीक्षा बैठकों, अभिभावक-शिक्षक बैठकों और राज्य के प्रमुख अधिकारियों द्वारा की गई जिला समीक्षा बैठकों में चर्चा का केंद्र बच्चों की शिक्षा होना चाहिए। एक महत्वपूर्ण संवाद, जिस पर हमें ध्यान देने की खास जरूरत है, वह है पूर्व-प्राथमिक शिक्षा तक सभी की आसान पहुंच। यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि एक बच्चे के मष्तिष्क का 90 फीसदी विकास छह वर्ष की आयु से पहले हो जाता है। ‘सिद्धि’ तक पहुंचने के लिए आखिरी स्वर है, सुधार। इसके लिए जरूरी है कि निपुण को एक सामाजिक मिशन बनाया जाए और तमाम हितधारकों की इसमें सक्रिय भागीदारी कराई जाए। आज भारत के 26 करोड़ स्कूली बच्चे कल के वैश्विक नागरिक हैं। ऐसे में, हमें ‘संकल्प’ से ‘सिद्धि’ की ओर बढ़ना चाहिए। सुशिक्षित भारत बनाने के लिए जरूरी है कि हम अमृत काल के सकारात्मक माहौल का उपयोग करें।
(साथ में श्वेता शर्मा कुकरेजा)