बुध पर हीरे की मोटी परत से उम्मीदों को लगे पंख
हीरे की गिनती देश के सबसे महंगे रत्नों में होती है। अगर करीब 15 किलोमीटर क्षेत्रफल में हीरे ही हीरे बिछे हुए मिल जाएं, तो क्या होगा? वैज्ञानिकों को बुध ग्रह की सतह के नीचे भारी मात्रा में हीरे मिले...
हीरे की गिनती देश के सबसे महंगे रत्नों में होती है। अगर करीब 15 किलोमीटर क्षेत्रफल में हीरे ही हीरे बिछे हुए मिल जाएं, तो क्या होगा? वैज्ञानिकों को बुध ग्रह की सतह के नीचे भारी मात्रा में हीरे मिले हैं। उनका आकलन है कि वहां लगभग नौ मील, यानी 14.48 किलोमीटर मोटी हीरे की परत है। इसका खुलासा हाल ही में नेचर कम्युनिकेशन्स जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट से हुआ है। जाहिर है, इतनी मात्रा में मौजूद हीरे को धरती पर नहीं लाया जा सकता, पर इसके अध्ययन से बुध ग्रह के बनने और उसके मैग्नेटिक फील्ड की जानकारी जरूर हासिल की जा सकती है।
बीजिंग में ‘सेंटर फॉर हाई प्रेशर साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी एडवांस्ड रिसर्च’ के वैज्ञानिक और सह-लेखक यानहाओ ली की मानें, तो बुध भी शायद अन्य ग्रहों की तरह मैग्मा महासागर के ठंडा होने से बना। यह महासागर कार्बन और सिलिकेट से समृद्ध था। शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर मॉडल की मदद से बुध की कोर-मेंटल सीमा का अध्ययन किया और उस पर दबाव व तापमान का माप हासिल किया। उन्होंने उन भौतिक दशाओं का सूक्ष्म विश्लेषण किया, जिनसे ग्रेफाइट या हीरा स्थिर होता है। इसके अलावा बुध पर इससे पहले खोजी गई धातुओं का रासायनिक सूप तैयार किया गया। इसके कंप्यूटर सिमुलेशन से यह पता चला कि अत्यधिक तापमान पर ये धातुएं क्रिस्टलाइज्ड होकर हीरा बन जाती हैं। इससे पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मैसेंजर मिशन ने बुध की सतह पर काले धब्बे देखे थे, जो ग्रेफाइट के थे। यह कार्बन का ही एक रूप है। बुध पर कार्बन की मौजूदगी ने वैज्ञानिकों को आगे शोध के लिए प्रेरित किया। शोधकर्ताओं का कहना है कि हीरे की परत बुध की सतह से करीब 485 किमी नीचे है। इस ग्रह का तापमान दिन के समय 430 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
दो साल पहले टेक्सास के वुडलैंड्स में चंद्र और ग्रह विज्ञान सम्मेलन में कोलोराडो स्कूल ऑफ माइन्स के डॉकेविन कैनन ने बुध ग्रह की संरचना के बारे में काफी आश्चर्यजनक ब्योरे प्रस्तुत किए थे। कैनन ने उनमें बताया था कि बुध के उल्का पिंडों से भरे होने और इसके कुछ अनोखे गुणों के कारण यह ग्रह ‘हीरों से जड़ा हुआ’ हो सकता है। बुध की अनोखी संरचना की कहानी तब शुरू हुई, जब इसका निर्माण हुआ। कई चट्टानी ग्रहों की तरह बुध की पपड़ी मैग्मा महासागर से क्रिस्टलीकृत होकर बनी। हालांकि, बुध पर यह खोल हमारे सौरमंडल के अन्य चट्टानी ग्रहों से अलग मिला था : यह कार्बन से बना था, जो एक ग्रेफाइट ‘खोल’ बनाता था। हम अपने सौरमंडल में कहीं और कार्बन खोल नहीं देखते हैं, क्योंकि बुध के कुछ अनोखे गुण हैं, यानी यह तथ्य कि इसमें वायुमंडल नहीं है। अरबों वर्षों से इसका वायुमंडल न होने के कारण यह ग्रह उल्का पिंडों से होने वाले नुकसान से नहीं बच पाया।
पृथ्वी पर हीरे भूमिगत रूप से बहुत गहराई में बनते हैं। मेंटल के भीतर, लगभग 150 किलोमीटर की गहराई में हीरे बनाने के लिए दबाव और तापमान काफी अधिक होता है। यही हीरे बाद में ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान सतह पर आ जाते हैं। बहरहाल, जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, बुध की सतह पर उथल-पुथल मचेगी। टकराव से कार्बन की ऊपरी परतें फेल्डस्पार या पाइरोक्सिन जैसे खनिजों में सिलिकॉन की निचली परतों के साथ मिल जाएंगी। लावा प्रवाह ग्रेफाइट को भी ढक देगा। लेकिन हीरे के तब भी वहां बने रहने की संभावना है, भले ही वे दबे हुए रहें। दरअसल, हीरे 4,027 डिग्री सेल्सियस (7,281 डिग्री फॉरेनहाइट) पर पिघलते हैं, इसलिए एक बार बनने के बाद उन्हें नष्ट होने में बहुत समय लगता है।
बुध ग्रह चट्टानी ग्रहों में अद्वितीय है, क्योंकि इसके इतिहास के आरंभ में ही इसमें ग्रेफाइट का आवरण बन गया था। कार्बन की यह उच्च सांद्रता अरबों वर्षों के दौरान उल्का पिंडों के प्रभाव से हीरे में परिवर्तित हो गई होगी। बेपीकोलंबो मिशन के साथ बुध की सतह पर हीरे की पुष्टि कुछ वर्षों में हो सकती है। नासा के मैसेंजर, जिसने चार साल तक बुध की परिक्रमा की, इन हीरों का पता नहीं लगा सका। हालांकि, ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि मैसेंजर ने सतह की तस्वीर इन्फ्रारेड में ली थी, जहां हीरे का कोई वर्णक्रमीय हस्ताक्षर नहीं होता है। अगले साल जब बेपीकोलंबो मिशन बुध पर पहुंचेगा, तो वह उसे पहचान सकेगा। बहरहाल, इस नए उद्घाटन से खगोल वैज्ञानिक इस ग्रह के और अध्ययन में जुटेंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)