बांग्लादेश को एक बार फिर चाहिए गांधी और टैगोर
आखिरकार बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद युनूस ने मान लिया कि उनके देश में हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि हिंदुओं पर हमले की वजह सियासी है। चूंकि हिंदू शेख...
आखिरकार बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद युनूस ने मान लिया कि उनके देश में हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि हिंदुओं पर हमले की वजह सियासी है। चूंकि हिंदू शेख हसीना का समर्थन करते रहे हैं, इसलिए वे हमलावरों के निशाने पर हैं। अब सवाल यही है कि बांग्लादेश में कहां से महात्मा गांधी जैसी कोई शख्सियत आएगी हिंदुओं को बचाने के लिए? गांधी जी नवंबर, 1946 में मौजूदा बांग्लादेश के नोआखली में शांति की बहाली के लिए पहुंचे थे। वह वहां सात हफ्ते तक रहे और वहां से तभी निकले, जब हालात सामान्य हो चुके थे।
आप जानते हैं कि पहले पूर्वी बंगाल में और फिर बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले होना सामान्य बात रही है। वहां हिंदू 1950 में भी निशाने पर थे। तब हिंदुओं के खिलाफ मार-काट बिहार से गए लोगों व स्वयं पुलिस ने की थी। दरअसल, पश्चिम बंगाल सरकार के मुख्य सचिव सुकुमार सेन (वह आगे चलकर भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त बने) एक सरकारी प्रतिनिधिमंडल के साथ ढाका में थे। उसी दौरान खून से सने कपड़ों में एक मुस्लिम महिला को ढाका सचिवालय में घुमाते हुए झूठा प्रचार किया गया कि कोलकाता में उसके साथ बलात्कार किया गया। उसी दिन दंगे शुरू हुए और ढाका की हिंदू दुकानें लूट ली गईं। जेवर की दुकानें लूटने में पुलिस अधिकारियों तक ने हिस्सा लिया। पुलिस के हिंदू और बौद्ध सब-इंस्पेक्टर तक मार दिए गए। अधिसंख्य जिलों के हिंदू-बहुल गांवों पर पुलिस के नेतृत्व में सशस्त्र गुंडों ने हमला किया। इस हिंसा के प्रतिकार में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान से बात की। चूंकि लियाकत अली खान नेहरू की सरपरस्ती में 1946 में बनी अंतरिम सरकार में मंत्री थे, इसलिए वह तुरंत नई दिल्ली आए। इन दोनों नेताओं ने पाकिस्तान में बचे हुए हिंदुओं और भारत के मुसलमानों की सुरक्षा व समान अधिकारों की गारंटी के लिए नेहरू-लियाकत संधि पर मुहर लगाई। बहरहाल, जब 1950 में पूर्वी पाकिस्तान जल रहा था, तब तक गांधी जी इस संसार से विदा हो चुके थे, इसलिए वहां के हिंदुओं को कोई बचाने वाला सामने नहीं आया।
जेएनयू में प्रोफेसर राकेश बटबयाल ने अपनी किताब कम्युनलिज्म इन बंगाल : फ्रॉम फैमिन टु नोआखली में लिखा है, गांधी जी की नोआखली की शांति-यात्रा का मुस्लिम लीग के मंत्रियों, कार्यकर्ताओं और स्थानीय मौलवियों ने कड़ा विरोध किया था। मुख्यमंत्री हुसैन शाहिद सुहरावर्दी ने तो उनसे नोआखली छोड़ने तक को कह दिया था। बहरहाल, हो सकता है कि मौजूदा पीढ़ी को पता न हो कि बांग्लादेश में 1971 में भी हिंदुओं पर पाकिस्तानी सेना का कहर टूटा था। न्यूयॉर्क टाइम्स ने 29 जून, 1971 की अपनी एक लोमहर्षक रिपोर्ट में पूर्वी पाकिस्तान के शहर फरीदपुर में सेना के आतंक की कहानी बयां की थी। पाकिस्तानी सेना ने फरीदपुर में हिंदुओं की दुकानों पर पीले रंग से ‘एच’ लिख दिया था, ताकि सेना उनको लूट ले। फरीदपुर शहर ढाका से करीब 85 किलोमीटर दूर है। राजधानी के दिल्ली के लघु बंगाल चितरंजन पार्क में फरीदपुर के कई परिवार आपको मिल जाएंगे। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट पर भरोसा करें, तो फरीदपुर के 10,000 हिंदुओं में से अधिकतर की हत्या कर दी गई थी और बचे-खुचे जान बचाकर भारत चले आए थे। इन सबके बावजूद पाकिस्तानी राष्ट्रपति आगा मोहम्मद याह्या खान उन हिंदुओं से वापस लौटने को कह रहे थे, जो भारत चले आए थे। पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान से हिंदुओं के सफाये में जुटी थी।
अब सवाल यह नहीं है कि जब भारत का बंटवारा हुआ, उस समय पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में हिंदू वहां की आबादी के 30 से 35 फीसदी थे या इससे अधिक। सवाल यह भी नहीं है कि क्या बांग्लादेश हिंदू-विहीन हो जाएगा, क्योंकि सारे हिंदू तो खत्म नहीं ही होंगे? पर फिलहाल बांग्लादेश को एक गांधी चाहिए, जो वहां पर भाईचारे और मैत्री का संदेश दे सके। अभी बांग्लादेश में हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि वहां गुरुदेव रबींद्र नाथ टैगोर के लिखे राष्ट्रगान को बदलने की मांग भी जोर पकड़ रही है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)