फोटो गैलरी

अगला लेख

अगली खबर पढ़ने के लिए यहाँ टैप करें

Hindi News ओपिनियन नजरियाआगजनी, लूटपाट और हत्या के बेकाबू भंवर में बांग्लादेश

आगजनी, लूटपाट और हत्या के बेकाबू भंवर में बांग्लादेश

बांग्लादेश अराजकता के एक ऐसे भंवर में फंस चुका है, जिसे बेकाबू बनाकर शेख हसीना मुल्क छोड़कर निकल चुकी हैं। सोमवार को उन्होंने बांग्लादेश का भविष्य फौज के हाथों में सौंप दिया। उन्हें तो राष्ट्र के...

आगजनी, लूटपाट और हत्या के बेकाबू भंवर में बांग्लादेश
Pankaj Tomarसुबीर भौमिक, वरिष्ठ पत्रकारTue, 06 Aug 2024 10:30 PM
ऐप पर पढ़ें

बांग्लादेश अराजकता के एक ऐसे भंवर में फंस चुका है, जिसे बेकाबू बनाकर शेख हसीना मुल्क छोड़कर निकल चुकी हैं। सोमवार को उन्होंने बांग्लादेश का भविष्य फौज के हाथों में सौंप दिया। उन्हें तो राष्ट्र के नाम अंतिम संबोधन के लिए भी समय नहीं दिया गया और उनके घर को लूटपाट के लिए खुला छोड़ दिया गया। जीत का जश्न मना रही भीड़ ने उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा तक को तोड़ डाली। कट्टरपंथी उन्मादी जमात का उत्पात बदस्तूर जारी है, जिसे रोकने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया जा रहा। भीड़ के निशाने पर पुलिस, अवामी लीग के नेतागण, अल्पसंख्यक समुदाय और धर्मनिरपेक्ष चेहरे हैं।
सोमवार को खून-खराबे और तबाही का जो तूफान आया, वह मंगलवार को भी जारी रहा। आकलन है कि सोमवार को महज एक दिन में 786 लोगों की मौत हुई, 76 पुलिस स्टेशनों में आग लगा दी गई और वहां पर रखे हुए हथियार लूट लिए गए, बैंकों की 14 शाखाएं लूटकर आग के हवाले कर दी गईं, अवामी लीग नेताओं और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के 30,000 घर जला दिए गए, टीवी चैनलों सहित 11,000 व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में तोड़फोड़ की गई, 37 पावर ग्रिड स्टेशनों, ट्रेन के 39 डिब्बे, 29 पेट्रोल पंप आदि सभी स्वाहा कर दिए गए हैं, 23 मंदिरों और गिरिजाघरों को भी ध्वस्त कर दिया गया है। उन्मादी आमतौर पर अवामी लीग के नेताओं, कार्यकर्ताओं और सुरक्षा बलों, विशेषकर पुलिस को निशाना बना रहे हैं। हालांकि, राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में सेना प्रमुख जनरल वकार उज जमां ने शांति बहाल करने और नई सरकार के गठन की ‘पूरी जिम्मेदारी’ ली है, पर पिछले दो दिनों की हिंसक घटनाओं और सेना की प्रतिक्रिया ने जवाब से ज्यादा सवाल खड़े किए हैं। यह समझा जा सकता है कि कोई पेशेवर सेना शांतिपूर्ण विरोध कर रहे निहत्थे छात्रों पर गोली चलाना पसंद नहीं करती, लेकिन लूटपाट में शामिल तत्वों या पुलिस स्टेशनों और वर्दीधारियों पर हमले करने वाले कट्टरपंथियों को खुली छूट देना, किसी भी तरह से उचित रवैया नहीं है।
बहरहाल, शेख हसीना का यूं सत्ता से बाहर होना हमारी चिंता का भी एक बड़ा कारण है। जिस आरक्षण-विरोधी आंदोलन की शिकार बांग्लादेश सरकार बनी है, उसमें भारत-विरोधी भावना प्रबल थी। यह भावना अब अपने चरम पर पहुंचती दिख रही हैै, क्योंकि शेख हसीना नई दिल्ली आ चुकी हैं। इसलिए अब वहां जो भी नई सरकार बनेगी, चाहे वह सेना समर्थित अंतरिम सरकार हो या कोई निर्वाचित हुकूमत, उसका भारत के प्रति लगाव कम हो सकता है। इसकी पूर्वपीठिका बनती हुई दिख रही है, क्योंकि नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस का यह बयान आया है कि ‘जब भारत कहता है कि बांग्लादेश में हिंसा उसका आंतरिक मामला है, तो हमें दुख होता है।’ जाहिर है, द्विपक्षीय रिश्तों में गर्माहट बनाए रखने की एक बड़ी चुनौती अब हमारे सामने है।
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की मुखिया खालिदा जिया  खुलेआम कह रही हैं कि अवामी लीग के समय भारत के साथ जितने समझौते हुए थे, उन सभी की जांच और समीक्षा की जाएगी। लिहाजा, वहां की परियोजनाओं पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं। हो सकता है कि इनको खत्म न किया जाए, लेकिन नई सरकार में इनकी रफ्तार जरूर धीमी की जा सकती है। इसी तरह, वहां के अल्पसंख्यकों और धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेशियों की सुरक्षा भी एक गंभीर मसला है, जिसका तत्काल समाधान आवश्यक है। इनमें से ज्यादातर सीमा पार करके शरण लेने की कोशिश कर सकते हैं। अगर ढाका में व्यवस्था अनुकूल नहीं बन पाती, तो इसका किस तरह हल निकाला जाएगा, इस पर नजर बनी रहेगी। वैसे, कुछ इसी तरह की चिंता उन कट्टरपंथी जमातों व जातीय अलगाववादियों को लेकर भी होगी, जिनसे हसीना सरकार के समय सख्ती से निपटा गया था, पर अब जिन्हें बांग्लादेश में खाद-पानी मिलने की आशंका प्रबल है।
बहरहाल, बांग्लादेश-प्रकरण का एक सबक तो स्पष्ट है। जब तक आम लोगों की धारणा अनुकूल न हो, द्विपक्षीय रिश्ते स्थिर नहीं हो सकते, फिर चाहे सरकारों का आपस में भले ही कितना अच्छा संबंध क्यों न हो?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)