Hindi Newsओपिनियन नजरियाhindustan nazariya column 7 December 2023

तटीय इलाकों को फिर रुला गया एक चक्रवाती तूफान

मिचौंग चक्रवात जब तमिलनाडु के तट से 80-100 किलोमीटर दूर केंद्रित था और व्यापक असर डाल रहा था, तभी करीब 400 किलोमीटर दूर मेरे शहर बेंगलुरु में भी ठंडी-ठंडी हवा चलने लगी थी। 3 दिसंबर को चेन्नई में...

Pankaj Tomar के जे रमेश, पूर्व महानिदेशक, भारतीय मौसम विभाग, Wed, 6 Dec 2023 11:14 PM
share Share
Follow Us on
तटीय इलाकों को फिर रुला गया एक चक्रवाती तूफान

मिचौंग चक्रवात जब तमिलनाडु के तट से 80-100 किलोमीटर दूर केंद्रित था और व्यापक असर डाल रहा था, तभी करीब 400 किलोमीटर दूर मेरे शहर बेंगलुरु में भी ठंडी-ठंडी हवा चलने लगी थी। 3 दिसंबर को चेन्नई में सबसे ज्यादा बारिश हुई, तो 3 और 4 दिसंबर को यहां भी रुक-रुककर बारिश होती रही, जबकि बेंगलुरु कर्नाटक का हिस्सा है। फिर जैसे-जैसे तूफान उत्तर की ओर बढ़ा, चित्तूर, कडपा, अन्नतपुरामु, अमरावती, नेल्लोर, रायलसीमा जैसे तमाम इलाकों में बारिश होने लगी। जिस तरह शुरुआत में तिरुवल्लूर, कांचीपुरम, पुडुचेरी जैसे तटीय इलाकों में मिचौंग का असर रहा, और बाद में यह सुदूर इलाकों में पहुंचा, वैसे ही अब कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के सुदूर इलाकों में बारिश हो रही है। 
वास्तव में, मानसून के बाद के मौसम, यानी ‘पोस्ट-मानसून’ में बंगाल की खाड़ी में चक्रवात आते रहे हैं। हालांकि, यह अक्तूबर व नवंबर महीने में ज्यादा दिखता था, जबकि दिसंबर में काफी कम। मगर अब दिसंबर में भी इनकी निरंतरता बढ़ सकती है, जिसकी एक बड़ी वजह है, सागर का गरम होना। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से समुद्रों में गरमी अवशोषित करने की क्षमता बढ़ गई है, ठीक हमारी आबोहवा की तरह, जो अब ज्यादा गरमी अवशोषित करने लगी है। इस कारण जब कभी चक्रवात या दबाव का क्षेत्र बनता है, तो समुद्री ऊर्जा उसे ज्यादा मारक बना देती है। इस बार पिछले एक महीने से बंगाल की खाड़ी में कम दबाव का क्षेत्र लगातार बन रहा था। अल-नीनो वर्ष में उत्तर-पूर्व मानसून के असामान्य होने की बात भी कही जा रही थी। इन सबका ही एक नतीजा मिचौंग चक्रवात है। तमिलनाडु में सिर्फ चेन्नई के इलाकों में 1 से 4 दिसंबर के बीच कई जगहों पर 50  से 60 सेंटीमीटर तक बारिश हुई, जो काफी ज्यादा है।
इस तूफान ने मछुआरों के अलावा दक्षिण के किसानों को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। यह खरीफ की कटाई का मौसम है। खेतों में धान की फसल अंत में हफ्ते-डेढ़ हफ्ते सूखने के लिए छोड़ दी जाती है। मगर इस तूफान ने धान की बालियों को जमीन पर गिरा दिया है। गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, नेल्लोर जैसे आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु के तटवर्ती इलाकों के डेल्टा क्षेत्र धान के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। मगा यहां के किसानों के हाथ सिवाय मायूसी के कुछ भी नहीं है। इसी तरह, यहां नारियल, पपीता, केले, सब्जी और फूलों की भी काफी खेती होती है। विशेषकर कृष्णा, गोदावरी जिलों में इन फसलों को काफी नुकसान पहुंचा है। अब तो तेलंगाना में भी किसानों को चक्रवाती बारिश चोट पहुंचा रही है।
क्या ऐसे तूफानों से बचा जा सकता है? जाहिर है, सबसे पहले हमें जलवायु परिवर्तन से निपटना होगा और ऐसे उपाय करने होंगे कि ग्लोबल वार्मिंग कम से कम असरंदाज हो सके। कार्बन-उत्सर्जन का हरसंभव प्रबंधन करना होगा। मगर कुछ प्रयास तत्काल  किए जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर, चक्रवात के बनने का पूर्वानुमान, यानी साइक्लोजेनेसिस न सिर्फ समय पर प्रसारित हो, बल्कि निचले स्तर तक यह सूचना जाए। अभी आमतौर पर हफ्ते में एक बार यह सूचना जारी की जाती है, पर यदि अक्तूबर से दिसंबर तक के महीने में करीब दस दिन पहले यह सूचना आ जाए, तो किसानों को अपनी खड़ी फसल को काटने या उसके प्रबंधन का कुछ वक्त मिल जाएगा। इसके लिए, कृषि विभाग और मौसम विभाग के समन्वय से एक तंत्र बनाना चाहिए, जो ठीक उसी तरह का तंत्र हो सकता है, जैसे अभी आपदा प्रबंधन का है। आपदा प्रबंधन के तहत जैसे ही किसी आपदा की सूचना आती है, तो जिन-जिन इलाकों में जान-माल के प्रभावित होने की आशंका होती है, वहां के लोगों व मवेशियों को तुरंत सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया जाता है। 
प्रभावित इलाकों में आश्रय गृह भी बनाए जाने चाहिए। दरअसल, तटवर्ती इलाकों में मछुआरों का रहना मजबूरी भी है, इसलिए गांव में पक्का मकान होने के बावजूद  यहां वे कच्चे मकानों में रहते हैं। अगर चक्रवात की सूचना मिलते ही उनको ‘शेल्टर हाउस’ भेज दिया जाए, जो विशेष तौर पर चक्रवात के खिलाफ बनाए गए हों, तो इंसानी जान का नुकसान हम काफी कम कर सकते हैं। इसके लिए भी समग्र प्रयास की दरकार होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) 

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें