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हमारे बड़े सुधार प्रयासों से गरीब देशों को होगा लाभ

ब्रेटन वुड्स संस्थानों में सुधार की मांग कोई नई नहीं है। वर्षों से यह मांग दो सवालों पर केंद्रित रही है। पहला सवाल, संसाधन या सीधे शब्दों में कहें, तो पैसा है। दूसरा सवाल, भारत व चीन जैसे देशों का ...

हमारे बड़े सुधार प्रयासों से गरीब देशों को होगा लाभ
Amitesh Pandeyआर सुकुमार, प्रधान संपादक, हिन्दुस्तान टाइम्सWed, 03 May 2023 11:11 PM
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ब्रेटन वुड्स संस्थानों में सुधार की मांग कोई नई नहीं है। वर्षों से यह मांग दो सवालों पर केंद्रित रही है। पहला सवाल, संसाधन या सीधे शब्दों में कहें, तो पैसा है। दूसरा सवाल, भारत व चीन जैसे देशों का इन संस्थानों के कामकाज और निर्णयों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश है। अब इस कवायद में एक तीसरा सवाल या कारक भी जुड़ गया है - जलवायु संकट का सामना करने के लिए, खास कर गैर-विकसित देशों में कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने का सवाल। दुनिया को आसन्न जलवायु संकट से बचाने के लिए यह स्वीकार करना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि इस दिशा में किए गए सारे प्रयास वित्तीय जबाबदेही तय करने के सवाल पर पहुंचते ही लड़खड़ा जाते हैं। 
इस संदर्भ में बहुपक्षीय विकास बैंकों के ‘परिवर्तनकारी’ और ‘समग्र’ सुधारों के लिए जी-20 के अध्यक्ष के रूप में भारत द्वारा की जा रही पहल पहले किए गए प्रयासों से कई गुना बेहतर  है। पिछली पंक्ति में उद्धृत शब्दों; परिवर्तनकारी और समग्र, का इस्तेमाल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बहुपक्षीय विकास बैंक संबंधी जी-20 विशेषज्ञ समूह की बैठक में अपनी बात रखते हुए किया था। इस समूह का नेतृत्व पूर्व अमेरिकी ट्रेजरी सचिव लॉरेंस समर्स और भारत के 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन के सिंह कर रहे हैं। वित्त मंत्री ने कहा है कि बहुपक्षीय विकास बैंकरों के दो मौजूदा लक्ष्यों - गरीबी उन्मूलन और साझा समृद्धि के साथ तीसरे लक्ष्य के रूप में ‘वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं’ को भी जोड़ा जाए। वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं में पर्यावरण, स्वास्थ्य से लेकर संस्कृति तक और डिजिटल क्षेत्र के तमाम पहलू शामिल हो सकते हैं। 
खुशखबरी यह है कि सार्वजनिक वस्तुओं को इन संस्थाओं के लक्ष्य में शामिल करने पर मोटे तौर पर एक सहमति बन चुकी है। समर्स-सिंह विशेषज्ञ समूह इस बारे में स्पष्ट है कि पहले दो लक्ष्यों से धन हटाकर तीसरे लक्ष्य को नहीं दिया जा सकता। इसलिए सवाल हमेशा की तरह वित्तीय संसाधनों का है। समझदारी बन रही है कि इन संस्थाओं की मौजूदा पूंजी का उपयोग करने के लिए और रचनात्मक तरीके अपनाए जाएं और निजी क्षेत्र से पूंजी जुटाने की संभावनाएं भी तलाशी जाएं। हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि भारत की अध्यक्षता वाली आगामी जी-20 बैठक इन सिफारिशों को स्वीकार कर उनके क्रियान्वयन का रास्ता साफ कर दे, पर यह वांछनीय है कि इस समूह के आगामी अध्यक्ष ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका उसी तरह इन प्रयासों को आगे ले जाएं, जैसे भारत ने इंडोनेशिया और इटली के कार्य को आगे बढ़ाया है। यदि बहुपक्षीय विकास बैंकरों के लिए तीसरा लक्ष्य जोड़ा जाए, तो यह मील का पत्थर होगा। इसलिए जरूरी है कि इस विषय को इन संस्थानों के सुधार व लोकतंत्रीकरण की पुरानी मांग से अलग रखा जाए।
यह दुहराना जरूरी है कि अगर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक तीसरे लक्ष्य को शामिल भी कर लें, तो भी पहले दोनों लक्ष्यों पर उनका ध्यान केंद्रित रहेगा। विशेष रूप से गरीबी उन्मूलन पर ध्यान रहेगा, कोविड-19, यूक्रेन युद्ध व पश्चिम में मंदी ने दुनिया भर में आय को प्रभावित कर रखा है। इसके लिए भी अधिक संसाधन जुटाने का सवाल अत्यंत महत्वपूर्ण है। बहुपक्षीय विकास बैंकों की पूंजी पर्याप्तता पर पिछले साल आई रिपोर्ट में पाया गया है कि ये संस्थान अपनी पूंजी का अधिक कुशलता से उपयोग कर और ज्यादा कर्ज उपलब्ध करा सकते हैं। विश्व बैंक, आईएमएफ व 13 अन्य बहुपक्षीय विकास बैंकों के पास प्रतिदेय पूंजी लगभग 1.2 ट्रिलियन डॉलर है, यह ऐसा धन है, जिसे ये संस्थान जुटा सकते हैं, पर जुटाया नहीं है। अगर सही तरीके से जुटाएं, तो ये 30 गुना पूंजी ला सकते हैं। 
बहरहाल, 2021 में बहुपक्षीय विकास बैंकों ने निम्न व मध्यम आय वाले देशों को जलवायु सुधार वित्त के रूप में 50 अरब डॉलर से अधिक दिया था। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह अधिक हो सकता था, फिर भी यह राशि उस वर्ष इन देशों को प्राप्त जलवायु वित्तपोषण के 100 अरब डॉलर का एक बड़ा हिस्सा थी। सार्वजनिक वस्तुओं, विशेष रूप से जलवायु वित्तपोषण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए इन संस्थानों का उपयोग बदलाव की कुंजी हो सकता है। 

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