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प्रशासन में गहरे पैठी समीर वानखेड़े जैसी प्रवृत्तियां

समीर वानखेड़े केवल एक नाम नहीं है, जो 2 अक्तूबर, 2021 को मुंबई के समुद्री जल में तैरते कॉर्डेलिया क्रूज से मौज-मस्ती के लिए एकत्रित लोगों में से कुछ की ड्रग्स-सेवन के लिए की गई गिरफ्तारी के...

प्रशासन में गहरे पैठी समीर वानखेड़े जैसी प्रवृत्तियां
Amitesh Pandeyविभूति नारायण राय, पूर्व आईपीएस अधिकारीMon, 29 May 2023 11:11 PM
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समीर वानखेड़े केवल एक नाम नहीं है, जो 2 अक्तूबर, 2021 को मुंबई के समुद्री जल में तैरते कॉर्डेलिया क्रूज से मौज-मस्ती के लिए एकत्रित लोगों में से कुछ की ड्रग्स-सेवन के लिए की गई गिरफ्तारी के सिलसिले में चर्चित हुआ था। उसके चर्चा में आने का महत्वपूर्ण कारण बॉलीवुड के बडे़ नाम शाहरुख खान के युवा बेटे आर्यन खान का भी इन गिरफ्तार लोगों में से एक होना था। यह आम जानकारी का विषय है कि चकाचौंध भरी फिल्मी दुनिया में ड्रग्स या नशीली दवाओं का सेवन सामान्य है, और इसीलिए शुरू में इस तथ्य के बावजूद कि आर्यन के पास से कोई ड्रग बरामद नहीं हुआ था, अधिकांश लोगों ने मान लिया था कि वह भी इनका सेवन करता होगा। बाद में जैसे-जैसे तथ्य सामने आते गए, समझ में आता गया कि सच वही नहीं है, जो पहले नंगी आंखों से दिख रहा था, और तभी यह भी स्पष्ट हो गया कि समीर वानखेड़े एक प्रवृत्ति है, जो भारतीय नौकरशाही में गहरे पैठी हुई है। आज जब अपनी करतूतों के चलते वह जेल जाने के कगार पर है, इस प्रवृत्ति का अध्ययन दिलचस्प होगा।
हमारी नौकरशाही का वर्तमान ढांचा बर्तानवी हाकिमों की देन है। उन्होंने ही इसमें विभिन्न काडर, उनकी भर्ती, प्रशिक्षण, तरक्की व दंड के प्रावधान बनाए थे। वे जानते थे कि दुनिया के किसी दूसरे समाज की तरह हिन्दुस्तान में भी भ्रष्ट होने की पूरी आशंकाएं हैं, और जरा से विचलन के चलते कोई भी राजकर्मी मौका मिलते ही लालच में पड़ सकता है। दुर्भाग्य से, आजादी के बाद हमारे शासक इसे भूल गए, फलस्वरूप हमें समीर वानखेडे़ जैसे लोग अपने बीच किसी नाम की तरह नहीं, वरन् एक प्रवृत्ति के रूप में दिखते हैं। दरअसल, सभी सेवाओं में कुछ पद ऐसे होते हैं, जिन्हें मलाईदार या ‘प्लम पोस्टिंग’ कहते हैं, और इन पर नियुक्तियों के लिए तरह-तरह की जोड़-तोड़, सिफारिशों या लेन-देन चलता है। कोई व्यक्ति लंबे समय तक इन पदों पर रहकर अपनी हैसियत का दुरुपयोग कर सकता है, इसलिए इन पदों पर नियुक्ति के लिए चयन व अवधि के लिए कुछ नियम बनाए जाते हैं। मैंने समीर वानखेड़े को एक प्रवृत्ति इसलिए कहा है कि उस जैसे हर मामले में एक बात सामान्य रूप से पाई जाती है। हर बार आप पाएंगे कि नियुक्ति के समय तयशुदा शर्तों के साथ छेड़छाड़ की गई है और एक बार नियुक्त होने के बाद निर्धारित अवधि में बार-बार वृद्धि भी उन्हीं हथकंडों से हासिल की जाती रही, जिनका ऊपर उल्लेख किया गया है। समीर वानखेड़े की सेवा के ग्राफ पर एक नजर डालते ही स्पष्ट होने लगता है कि उसके करियर में बार-बार स्थापित परंपराओं का उल्लंघन किया गया है। यह आम जानकारी है कि देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में तैनाती के लिए इस सेवा के अधिकारियों में होड़ लगी रहती है। हालांकि, इसका यह मतलब हरगिज नहीं है कि वहां नियुक्त हर अधिकारी भ्रष्ट है। मगर वानखेड़े का प्रसंग भिन्न है। 
मुंबई में ही एक दूसरे विभाग पुलिस में भी ऐसा ही एक उदाहरण हालिया दिनों में दिखा था, जब सचिन वाझे नामक एक इंस्पेक्टर ने अपने जिन कर्मों-कुकर्मों के चलते पूरे देश का ध्यान खींचा था। उसका करियर ग्राफ भी समीर वानखेड़े की तरह ही है। पग-पग पर उसे अपने कुछ विभागीय अधिकारियों व प्रभावी राजनेताओं का संरक्षण मिलता रहा और सारे कानून-कायदों का उल्लंघन करते हुए उसे नियुक्तियां व तरक्कियां मिलती रहीं। दोनों मामलों मे यह भी समानता रही कि वे जब तक सामान्य जन को लूटते रहे, उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। वे फंसे तभी, जब उन्होंने किसी ताकतवर शख्स पर हाथ डाला- समीर ने शाहरुख के बेटे को फंसाने की कोशिश की और सचिन ने मुकेश अंबानी से वसूली की सोची। दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि हमारे लोकतंत्र में आम जनता के लिए न्याय अब भी एक दुर्लभ कामना है।
समीर वानखेड़े जैसी प्रवृत्तियां बार-बार न दोहराई जाएं, इसके लिए जरूरी है कि नौकरशाही में समय की कसौटी पर खरी उतरी परंपराओं के साथ छेड़छाड़ न की जाए। इस छेड़छाड़ के लिए किसी एक सरकार या दल को हम दोषी नहीं ठहरा सकते। सभी ने अपने-अपने हितों के लिए भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण दिया है। लेकिन इससे नुकसान तो सामान्य जन का ही होता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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