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Hindi News ओपिनियन नजरियाहिसाब लगा रहा आंध्र प्रदेश कि बजट से कितना मिलेगा

हिसाब लगा रहा आंध्र प्रदेश कि बजट से कितना मिलेगा

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2024-25 में कई घोषणाएं की हैं, जिनका मकसद आंध्र प्रदेश को खुश करना है। एहसान चुकाने की भावना स्पष्ट है, क्योंकि आंध्र प्रदेश ने तीसरी मोदी सरकार को...

हिसाब लगा रहा आंध्र प्रदेश कि बजट से कितना मिलेगा
Pankaj Tomarएस. श्रीनिवासन, वरिष्ठ पत्रकारMon, 29 Jul 2024 11:18 PM
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2024-25 में कई घोषणाएं की हैं, जिनका मकसद आंध्र प्रदेश को खुश करना है। एहसान चुकाने की भावना स्पष्ट है, क्योंकि आंध्र प्रदेश ने तीसरी मोदी सरकार को समर्थन जारी रखने का वादा किया है। इस दक्षिणी राज्य को अपने विकास के लिए संसाधन मिले हैं, विशेष रूप से राजधानी अमरावती के लिए, जो मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पसंदीदा परियोजना है।
निर्मला सीतारमण को इस सूबे के लिए विशेष पैकेज की घोषणा करने में कठिनाई हो रही थी, क्योंकि 2026 तक लागू 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद ऐसा करना संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने सिफारिशों को जोड़ने का थोड़ा घुमावदार तरीका चुना। वित्त मंत्री ने यह वादा किया है कि चालू वित्त-वर्ष में 15,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था के अलावा आंध्र को भविष्य में भी अतिरिक्त राशि मिलेगी। बैंक, एशियाई विकास बैंक आदि से उसके लिए राशि की व्यवस्था की जाएगी। इसने आंध्र के नेताओं और उसके नौकरशाहों को उलझा दिया है। शुरुआती धन्यवाद के बाद अब नायडू शांत हैं। वे इस बात का अध्ययन कर रहे हैं कि उन्हें धनराशि कैसे व किस रूप में मिलेगी और इसका राज्य की वित्तीय स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? इसका तात्कालिक नतीजा यह हुआ है कि राज्य के पूर्ण बजट को दो महीने के लिए स्थगित कर दिया गया है। 
फिलहाल राज्यों को चार तरह से धन दिए जाते हैं। पहला, वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित विभाज्य पूल से। दूसरा, केंद्रीय अनुदान के रूप में, जिसे चुकाना नहीं होता। तीसरा, केंद्रीय मदद के रूप में ब्याज सहित और चौथा, केंद्र द्वारा व्यवस्थित बहुपक्षीय फंडिंग एजेंसियों से ऋण के रूप में। वित्त मंत्री ने आंध्र को चौथे विकल्प का प्रस्ताव दिया है। नायडू के शुभचिंतक उन्हें केंद्र से ऋण देनदारी का कुछ हिस्सा वहन कराने की सलाह दे रहे हैं। राज्य और केंद्र, दोनों गारंटी जारी करते हैं। राज्य के मामले में प्रदेश के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बैंकों से ऋण लेने के लिए गारंटी जारी की जाती है। बहुपक्षीय एजेंसियों द्वारा वित्त पोषण के मामले में संप्रभु गारंटी केंद्र द्वारा दी जाती है। मगर केंद्र की गारंटी के बावजूद चूक की स्थिति में योजना की देनदारी अंतत: राज्य सरकार की होगी। 
कुल मिलाकर, आंध्र प्रदेश को अंतिम तौर पर क्या मिलेगा, यह अभी बहुत साफ नहीं है। शायद इन्हीं संदेहों या मुद्दों का जायजा लेने के लिए नायडू ने अपने पूर्ण बजट को स्थगित कर दिया है। इस प्रांत की वित्तीय स्थिति खराब है, क्योंकि इसका करीब आधा राजस्व (48 प्रतिशत) ऋण चुकाने में चला जाता है। नायडू पर अपने चुनावी वादों को पूरा करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी है। वह अब आगले दो महीनों का उपयोग अपने पूर्ववर्ती जगन मोहन रेड्डी द्वारा घोषित कई योजनाओं को त्यागने और कुछ शुरू करने के लिए करना चाहते हैं। इस बीच, नायडू अब तक कई कदम उठा चुके हैं। वह पहले ही भूमि स्वामित्व अधिनियम को रद्द कर चुके हैं। इस अधिनियम को लेकर विवाद था। इसके तहत कोई भी संपत्ति के किसी टुकड़े पर अपना दावा पेश कर सकता था और सुबूत पेश करने की जिम्मेदारी संपत्ति के मालिक पर होती। यह कानून काफी अलोकप्रिय हो गया था और अब लोगों में खुशी है। 
आंध्र प्रदेश और बिहार पर अभूतपूर्व फोकस के बावजूद दक्षिणी राज्यों में लोग बिहार से नाराज नहीं हैं, क्योंकि यह पिछड़ा प्रदेश है और इसे केंद्र से अतिरिक्त मदद की जरूरत है, पर अन्य राज्यों के प्रति संवेदनशीलता की कमी ने उन्हें नाराज कर दिया है। बिहार जीएसडीपी, प्रति व्यक्ति आय व लगभग सभी सामाजिक संकेतकों के मामले में राष्ट्रीय औसत से नीचे है, इसलिए उसके लिए विशेष प्रयासों की जरूरत है। दूसरी ओर, आंध्र प्रदेश एक विश्व स्तरीय राजधानी के निर्माण के लिए धन की मांग कर रहा है। यह नायडू की पुरानी योजना है, पर पिछली जगन सरकार ने समीकरण बदल दिए थे, जिससे यह पंगु हो गई थी। अब सत्ता में लौटने के बाद नायडू फिर इस पर जोर दे रहे हैं। इस परियोजना पर उनका और उनकी सरकार का बहुत कुछ दांव पर लगा है। ऐसे में, यह जरूरी है कि देश के प्रधानमंत्री आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री को खुश रखें।
    (ये लेखक के अपने विचार हैं)