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Hindi News ओपिनियन नजरियाउनकी कंपनियों को हम क्यों करने दें 5जी परीक्षण

उनकी कंपनियों को हम क्यों करने दें 5जी परीक्षण

अब यह साफ हो गया है कि पूर्वी लद्दाख में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए, यानी चीन की फौज) द्वारा पिछले दिनों जो हरकतें की गईं, वे पूर्व-निर्धारित और सोची-समझी योजना के साथ अंजाम दी गई थीं। इसका पता तब...

उनकी कंपनियों को हम क्यों करने दें 5जी परीक्षण
गौतम बम्बावाले, चीन में रह चुके भारतीय राजदूतWed, 26 Aug 2020 09:38 PM
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अब यह साफ हो गया है कि पूर्वी लद्दाख में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए, यानी चीन की फौज) द्वारा पिछले दिनों जो हरकतें की गईं, वे पूर्व-निर्धारित और सोची-समझी योजना के साथ अंजाम दी गई थीं। इसका पता तब चलता है, जब आप उसके सैनिकों की संख्या पर गौर करते हैं और उन जगहों पर ध्यान देते हैं, जहां उसने यह कार्रवाई की। ऐसा करने के बाद चीन ने यह संकेत दिया है कि वह न तो अपनी सैन्य आक्रामकता को छोड़ने वाला है और न ही पूर्व की स्थिति बहाल करने जा रहा है। उसके साथ हुई कई दौर की सैन्य-बातचीत और कूटनीतिक वार्ताओं का अभी यही नतीजा है।
चीन की कूटनीतिक योजना उसके राजदूतों और अन्य वार्ताकारों के बयानों से जाहिर होती है। सैनिकों को सीमा पर भेजने की मुकम्मल योजना बनाने के बाद चीन उनकी तैनाती को स्थाई करने और उसका लाभ उठाने की मंशा रखता है। इसके साथ ही, यह सुनिश्चित भी किया जाएगा कि आर्थिक रिश्ते, लोगों के आपसी संबंध व बहुपक्षीय समझौते अपनी गति से चलते रहें। यही उसका गेमप्लान है। चीन को अपनी इस योजना की सफलता पर पूरा विश्वास है। यदि उसे ऐसा करने दिया गया, तो निश्चय ही यह उसकी बड़ी जीत होगी। इससे वह दुनिया को बता सकेगा कि भारत ने लद्दाख में नए सैन्य हालात स्वीकार कर लिए हैं, और अन्य देशों को न तो चीन द्वारा सीमा पर उठाए गए कदमों को लेकर, और न ही उसके आक्रामक व्यवहार के बारे में चिंता करनी चाहिए। इससे स्वाभाविक तौर पर एशिया में उसका रुतबा मजबूत हो जाएगा। जाहिर है, हमें बीजिंग के इस सैन्य-कूटनीतिक दांव-पेच के खिलाफ व्यावहारिक रुख अपनाना होगा।
कई पूर्व चीनी राजदूत, सेवानिवृत्त पीएलए अफसर व अंतरराष्ट्रीय रिश्तों के जानकार बार-बार कहते हैं कि चीन नई दिल्ली को अपना रणनीतिक दुश्मन नहीं मानता है। इसीलिए, तर्क दिया जाता है कि भारत व चीन के अन्य रिश्ते जल्द से जल्द सामान्य हो जाने चाहिए, इसलिए भी, क्योंकि यह इन दोनों मुल्कों के कूटनीतिक संबंधों की स्थापना का 70वां वर्ष है। मगर जवाब में जब उन्हें यह बताया जाता है कि अगर सच्चाई वाकई यही है, तो लद्दाख में यथास्थिति बहाल करने में चीन को दिक्कत नहीं होनी चाहिए, तब वे बंगले झांकने लगते हैं।
इन्हीं सब वजहों से भारत के लिए जरूरी है कि वह चीन को यह संदेश साफ लफ्जों में भेजे कि लद्दाख में पीएलए की हालिया कार्रवाई को हम आपसी रिश्तों की आजमाइश के रूप में देखते हैं। भारत की तरफ से बताया गया है कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर एकतरफा फैसला लेना चाहता है। इसका रणनीतिक अर्थ यह है कि चीन बता रहा है कि वह एशिया में सबसे बड़ी क्षेत्रीय ताकत है, वह अपने पड़ोस में जैसा चाहे, वैसा कर सकता है, और 21वीं सदी एशियाई नहीं, बल्कि पूरी तरह से चीन की सदी है। लद्दाख में वीरतापूर्वक जवाब देकर हमने यह बखूबी जता दिया है कि हम इनमें से किसी को नहीं मानते, और चीन की दादागिरी का हर सूरत विरोध करते रहेंगे। 
अब नई दिल्ली को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी कूटनीतिक चाल सफल न होने पाए। ऐसे में, जरूरी है कि भारत और चीन के कारोबारी रिश्ते पहले की तरह आगे न बढ़ें। चीन के मोबाइल एप पर पाबंदी, वहां की कंपनियों को यहां से बाहर करने के मकसद से सार्वजनिक खरीद संबंधी नीतियों में बदलाव और भारत में निवेश संबंधी प्रस्तावों की विशेष समीक्षा करने जैसे फैसले अच्छी दिशा में उठाए गए शुरुआती कदम हैं।
इन सबसे चीन खासा चिंतित है, खासतौर से इसलिए, क्योंकि भारत की जवाबी कार्रवाई लंबे समय में गहरा असर डालेगी। अगर भारत-चीन सीमा पर शांति नहीं बन पाती है, तो बाकी रिश्ते भी पहले की तरह नहीं चल सकते। साफ है, दोनों देशों का आपसी रिश्ता नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा। इसीलिए, नई दिल्ली को चीन के प्रति अपनी संशोधित नीति को और स्पष्ट करने के लिए कुछ अन्य कदम उठाने चाहिए। इनमें सबसे जोरदार तो यह हो सकता है कि हम 5जी के परीक्षण और उसे लागू करने की प्रक्रिया से चीन की कंपनियों को बाहर कर दें। नई दिल्ली को जल्द ही इस पाबंदी की घोषणा कर देनी चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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