यूक्रेन युद्ध को और भड़काने की तैयारी में पुतिन
रूस-यूक्रेन युद्ध अब अपने तीसरे चरण में प्रवेश करने जा रहा है। यह चरण वाशिंगटन और मास्को के बीच संघर्ष का निर्णायक व सबसे खतरनाक दौर साबित हो सकता है...............................
यूक्रेन और रूस के बीच सात महीने से जारी खूनी जंग तीसरे दौर में प्रवेश करने जा रही है। इस युद्ध का पहला चरण था, यूक्रेन के भीतर फौज उतारकर बलपूर्वक कूटनीतिक मकसद हासिल करना। मगर जैसा कि अब हम समझ चुके हैं कि यूक्रेन की सरकार भले ही मार्च में बातचीत के जरिये समझौते के लिए आग्रही थी और भू-राजनीतिक तटस्थता के लिए प्रतिबद्धता जताने को तैयार थी, लेकिन अमेरिका ने शांतिपूर्ण समाधान की इस पहल को वीटो कर दिया था। ऐसा इसलिए, क्योंकि उसका मानना था कि यह युद्ध यदि लंबा चला, तो वह परदे के पीछे से रूस को काफी नुकसान पहुंचा सकता है।
इसके बाद रूस ने कीव की घेराबंदी करते हुए पूर्वी और दक्षिणी यूक्रेन के रूसी बहुल आबादी वाले क्षेत्रों को सुरक्षित करने के लिए अति-केंद्रित सैन्य अभियान की रणनीति अपनाई। करीब दो लाख रूसी सैनिक मैदान में उतार दिए गए और लंबी दूरी की मिसाइलें व तोपों के इस्तेमाल के साथ-साथ हवाई हमलों से डोनबास के एक बड़े हिस्से को कब्जे में ले लिया गया। इससे काला सागर तक यूक्रेन की पहुंच प्रभावित हो गई। यूक्रेन में रूस 1,000 किलोमीटर की एक नई सीमा रेखा बनाने में भी सफल रहा और नोवोरोसिया के एक बड़े हिस्से पर भी कब्जा जमा लिया, जहां 75 लाख लोग रहते हैं, जिनमें से ज्यादातर रूसी भाषी हैं।
हालांकि, यूक्रेन में सरकार गिराने या कम से कम उसे बातचीत की मेज पर लाने संबंधी रूस का लक्ष्य कीव को मिले पश्चिमी समर्थन और उसके नीति-निर्माताओं के सख्त रुख के कारण अंजाम तक नहीं पहुंच सका। मगर रूसी रक्षा मंत्रालय का अनुमान है कि एक लाख से अधिक यूक्रेनी सैनिक इस युद्ध में मारे गए हैं या गंभीर रूप से घायल हुए हैं, तो वहीं करीब छह हजार रूसी सैनिकों की जान गई है। यूक्रेन से आने वाली खबर भी कुछ ऐसी ही तस्वीर दिखाती है।
साफ है, ऐसी परिस्थितियों से निपटना, जिसमें एक छद्म शासन व उसके कर्ता-धर्ता यूक्रेन के दीर्घकालिक हितों की कीमत पर अमेरिका और नाटो के हाथों में खेल रहे हैं, पुतिन सरकार के लिए कोई कड़वी गोली निगलने के समान है। आठ साल पहले शुरू हुआ अमेरिका और नाटो का प्रभाव फरवरी, 2022 में युद्ध शुरू तक एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गया था, जहां यूके्रन अनौपचारिक रूप से गठबंधन का सदस्य था। जाहिर है, किसी भी संभावित सदस्य राष्ट्र की सुरक्षा के लिए नाटो ने कभी इतनी बड़ी कीमत नहीं चुकाई होगी, जितनी उसने यूके्रन में चुकाई है। इस युद्ध में सस्ती गैस या ईंधन की चाह रखने वाले यूरोपीय परिवार बड़ी कुर्बानी दे रहे हैं, जर्मन औद्योगिक पतन के मुहाने पर हैं और अमेरिकी मुद्रास्फीति (या महंगाई से पैदा होने वाली मंदी) से जूझ रहे हैं। हां, यह जरूर है कि अमेरिका और नाटो यूक्रेन को ‘आंशिक समर्थन’ देने का माहौल बनाकर रूस के साथ प्रत्यक्ष टकराव से बचने में सफल रहे हैं, जिसने रूस को अपनी रणनीति पर फिर से सोचने को प्रेरित किया।
21 सिंतबर को पुतिन ने रूसी रिजर्व बल से लगभग तीन लाख सैनिकों की ‘आंशिक लामबंदी’ की घोषणा की है, जिन्हें सर्दियों में संभावित तैनाती से पहले बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाएगा। यह यूक्रेन में रूस की सैन्य ताकत को दोगुना कर देगा। पुतिन ने रूस की अखंडता पर आई चुनौती की बात कहते हुए आह्वान किया है कि वह उपलब्ध तमाम हथियारों का इस्तेमाल करेंगे। साफ है, गेंद अब अमेरिकी पाले में आने वाली है। यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि अमेरिका इस युद्ध में शामिल है, इसलिए हमले तेज करने का संकेत देकर पुतिन ने हर गणित बदल दिए हैं। अगले कुछ दिनों में होने वाले जनमत संग्रह के बाद डोनबास में परमाणु हथियार की तैनाती की बात कही गई है, जिसका मतलब है कि नाटो का समर्थन पाकर यूक्रेन यदि कोई आक्रामक कदम उठाता है, तो पश्चिम को इसके गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं।
अब तक अमेरिका ने रूस की आसान जीत की राह रोक रखी है, जिसके लिए यूक्रेन को बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी है, मगर रूस ने यूक्रेन की ऊर्जा-रहित सर्दी में भी बेहतर तरीके से लड़ सकने वाले सुरक्षा बलों की तैनाती पर अपना दांव लगाया है। यूक्रेन संकट का यह तीसरा चरण अमेरिका और रूस के बीच संघर्ष का सबसे खतरनाक दौर साबित हो सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)