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उपेक्षा का दंश झेलती हरी हो रही हमारी नदियां

समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया एक यात्रा के दौरान दक्षिण भारत की एक नदी में स्नान कर रहे थे। वहां मौजूद एक मछुआरे ने उनसे पूछा, ‘आपका मुलुक किस नदी के किनारे है?’ अचानक पूछे गए इस...

उपेक्षा का दंश झेलती हरी हो रही हमारी नदियां
अंबरीश कुमार, वरिष्ठ पत्रकारWed, 23 Jun 2021 11:20 PM
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समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया एक यात्रा के दौरान दक्षिण भारत की एक नदी में स्नान कर रहे थे। वहां मौजूद एक मछुआरे ने उनसे पूछा, ‘आपका मुलुक किस नदी के किनारे है?’ अचानक पूछे गए इस सवाल से लोहिया कुछ देर के लिए तो हैरान रह गए। लेकिन फिर जवाब दिया, ‘मैं सरयू का पुत्र हूं।’ मछुआरे ने मुस्कराकर उनसे कहा, ‘अच्छा, तो राजा रामचंद्र के गांव के हो।’ इस घटना का जिक्र लोहिया ने अपनी एक टिप्पणी में किया था। इस प्रसंग से पता चलता है कि नदियों से लोगों का क्या रिश्ता होता था। नदियों के किनारे ही विश्व की ज्यादातर सभ्यताएं विकसित हुईं, लेकिन पिछले चार-पांच दशकों में ही नदियों का क्या हाल हो गया, इसके दो उदाहरण का जिक्र मैं यहां करूंगा। 
पहला उदाहरण गोमती नदी है, जो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ   में जब हरी-हरी दिखने लगी, तब यहां के लोग चौंक गए। सोशल मीडिया पर हरी होती गोमती के बहुत से चित्र दिखाई पड़े। असल में, आदि गंगा मानी जाने वाली गोमती के पानी पर इतनी ज्यादा जलकुंभी हो गई थी कि कहीं पानी दिख ही नहीं रहा था। हालांकि, गोमती में जब जलकुंभी नहीं थी, तब भी इसका पानी नहाने लायक तक नहीं बचा था। एक कड़वा सच यह भी है कि लखनऊ में इस नदी की मछली वर्षों से कोई नहीं खाता, क्योंकि इसका पानी बहुत ज्यादा प्रदूषित हो चुका है। लखनऊ  में घाघरा नदी से पकड़ी गई मछलियां बिकती हैं या फिर माताटीला ताल से लेकर आसपास के ताल-तालाब की मछलियां आती हैं। आंध्र प्रदेश से भी मछली यहां आती है, तो समुद्र की भी। लेकिन शहर के बीचोबीच बहने वाली गोमती की मछली लखनऊ में नहीं मिलेगी। कुछ यही हाल गुजरात की दमन गंगा नदी का भी है, जिसका पानी इतना दूषित हो चुका है कि वहां से मछली एक दशक पहले ही गायब हो चुकी है। कहने की आवश्यकता नहीं कि अब देश की कई अन्य नदियां भी इसी दिशा में जा रही हैं। बहरहाल, जलकुंभी गोमती नदी की बदहाली का संकेत और संदेश, दोनों दे रही है। जलकुंभी के छाने से पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे इनमें पलने वाली मछलियों के साथ-साथ अन्य जलीय जीव और वनस्पतियां दम तोड़ने लगती हैं। यही नहीं, जलकुंभी पानी के बहाव को भी 20 से 40 फीसदी तक कम कर देती है, जिससे नदी का पानी एक तरह से ठहर जाता है। और, अगर चलता हुआ पानी ठहर जाए, तो वह किसी काम का नहीं रहता। वैसे, गोमती का पानी लखनऊ पहुचने से पहले ही काफी प्रदूषित हो चुका होता है। पीलीभीत से निकलने वाली इस नदी में कई चीनी मिलों और शराब के कारखानों के कचरे तो बहते ही हैं, इसमें सीवेज का नाला भी जगह-जगह पर गिराया जाता है। इसके बाद जलकुंभी के हमले से यह नदी भला कैसे बच सकती है? दूसरा उदाहरण बनारस में बहती गंगा का है, जिसके पानी के हरा होने का कारण शैवाल था, जो बहुत ही जहरीला होता है। पानी हरा हुआ, तो स्वाभाविक ही लोगों की चिंता भी बढ़ी। गंगा प्रदूषित तो पहले से है, लेकिन पानी के हरे रंग ने लोगों को और डरा दिया। डर के साथ लोग यह जानना भी चाहते थे कि आखिर अचानक पानी हरा कैसे हो गया? हालांकि, बरसात के मौसम में ताल-तालाब के उल्टे प्रवाह के चलते गंगा में कई बार काई आ जाती थी, जिससे पानी कुछ जगह हरा दिखता था, लेकिन इस बार यह हरापन शैवाल की वजह से हुआ। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर कहीं पानी स्थिर हो जाता है, तब न्यूट्रिएंट्स की मात्रा ज्यादा होने की वजह से उसमें माइक्रोसिस्टिस पनपता है। यह आमतौर पर नाले और तालाब में पाया जाता है। ऐसा लगता है कि यह वहीं से बहकर आया। इसे यदि साफ नहीं किया गया, तो यह जलीय जीव-जंतुओं को खत्म कर देगा। इसलिए इसे जल्द से जल्द हटाना चाहिए। इन नदी क्षेत्रों में बरसात का मौसम आ चुका है। इसे नदियों के नहाने का मौसम भी कहते हैं। दरअसल, इसका कारण यह  है कि अच्छे मानसून की वजह से  नदी-नालों का जल प्रवाह बढ़ जाता है। अगले दस-पंद्रह दिनों में अपने यहां यह स्थिति आने वाली है। ऐसे में, चाहे जलकुंभी हो या शैवाल, इन्हें हटाने का काम ज्यादा आसानी से किया जा सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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