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चीन के विरुद्ध बनती व्यवस्था में भारत की बढ़ती भूमिका

जापान ने पिछले सप्ताह हिरोशिमा में जी-7 शिखर सम्मेलन की मेजबानी की है, जिसमें भारत एक विशेष आमंत्रित सदस्य था। जापान में जी-7 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति महत्वपूर्ण...

चीन के विरुद्ध बनती व्यवस्था में भारत की बढ़ती भूमिका
Amitesh Pandeyहर्ष वी पंत, प्रोफेसर, किंग्स कॉलेज लंदनMon, 22 May 2023 10:48 PM
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जापान ने पिछले सप्ताह हिरोशिमा में जी-7 शिखर सम्मेलन की मेजबानी की है, जिसमें भारत एक विशेष आमंत्रित सदस्य था। जापान में जी-7 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इन दिनों भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। यह भी गौरतलब है कि क्वाड की बैठक भी जापान में ही हुई, जो पहले सिडनी में होने वाली थी। जापान से ही प्रधानमंत्री  मोदी पापुआ न्यू गिनी गए और वहां से सिडनी। 
जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के लिए यह शिखर सम्मेलन दुनिया को बदलते हुए जापान का दर्शन कराने का अवसर था। यह वह जापान है, जो अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा में वैश्विक जिम्मेदारियों को उठाने के लिए पहले से कहीं अधिक इच्छुक है। धीरे-धीरे किशिदा जापान के सुरक्षा ढांचे को बदल रहे हैं। चीन का सैन्य उदय पहले से ही जापान के शांतिवादी रुख को चुनौती दे रहा था और अब यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने टोक्यो को अपनी रणनीतिक धारणाओं के मूल सिद्धांतों पर पुनर्विचार के लिए मजबूर कर दिया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से जापान अपनी सबसे गंभीर व जटिल सुरक्षा चिंता का सामना कर रहा है। 
जापान नीति के तहत यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत से ही रूस के खिलाफ जी-7 के कदमों का प्रबल समर्थन करता रहा है। युद्ध शुरू होने के तुरंत बाद जी-7 राष्ट्रों ने रूस पर कुछ सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए और उसके बाद रूसी तेल, गैस के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। अभी हिरोशिमा में जी-7 के नेताओं ने कहा है कि वे युद्ध के मैदान में रूस के लिए महत्वपूर्ण वस्तुओं के निर्यात को प्रतिबंधित करने के उपाय करेंगे। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की सम्मेलन में मुख्य आकर्षण रहे। वह अमेरिका से अधिक रियायतें लेने में कामयाब रहे। वाशिंगटन ने यूक्रेन के लिए 3,750 लाख डॉलर के अपने 38वें सैन्य पैकेज की घोषणा की है। 
इस बार जी-7 के नेताओं ने चीन का नाम लिए बिना विरल एकता दिखाई है, उन्होंने बीजिंग की नीतियों को निशाना बनाया और मुकाबले का संकल्प भी लिया। विकसित दुनिया अपने व्यापार, निवेश और आपूर्ति शृंखलाओं को चीनी पकड़ से दूर करके चीन पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहती है। इस लिहाज से देखें, तो भारत व अन्य आमंत्रित राष्ट्रों की वहां मौजूदगी महत्वपूर्ण थी। क्वाड शिखर सम्मेलन के चार सदस्य देशों ने यथास्थिति बदलने या अस्थिर करने या एकतरफा कार्रवाई करने की कोशिश के प्रति गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए चीन पर निशाना साधा है। 
इसके अलावा जी-7 में वैश्विक भू-राजनीति की अति प्रतिस्पद्र्धी दुनिया में हाशिये पर धकेले जा रहे लोगों की चिंताओं को आवाज देने की कोशिश खुशी की बात है। यूक्रेनी राष्ट्रपति के साथ अपनी पहली आमने-सामने की बैठक के दौरान नरेंद्र मोदी ने रेखांकित किया कि यूक्रेन युद्ध न सिर्फ राजनीतिक या आर्थिक मामला है, बल्कि यह मानवीय मूल्यों से भी जुड़ा है। भारतीय प्रधानमंत्री ने इस युद्ध का समाधान खोजने के लिए जो भी संभव हो, करने का वादा किया है। हालांकि, इस समय दुनिया के एक बड़े हिस्से की चिंताएं कुछ और हैं, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था कठिन हालात का सामना कर रही है। जापान के लिए, यूक्रेन पर जी-7 समकक्षों के साथ खड़ा होना यह सुनिश्चित करना है कि जब हिंद-प्रशांत में संकट का समय आएगा, तब पश्चिमी देश चीन के खिलाफ भी खड़े होंगे। जापान बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए आंतरिक क्षमताओं को मजबूत करने के साथ ही समान विचारधारा के देशों के साथ गठबंधन को तैयार है।
भारत और जापान, दोनों खुद को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मजबूत पक्ष के रूप में देखते हैं। इस लिहाज से जापान एशिया के रणनीतिक भूगोल को फिर से परिभाषित करने की जरूरत को स्पष्ट करने वाला पहला देश था और उसने संकेत कर दिया था कि भारत की सक्रिय भागीदारी के बिना हिंद-प्रशांत सहयोग नहीं होगा। नरेंद्र मोदी ने अपनी जापान यात्रा के दौरान दोहराया है कि उनके एजेंडे में ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जो यूरेशिया में तत्काल संकट या दुनिया भर में ऋण संकट से परे हैं। वैश्विक अव्यवस्था के लिए विश्वसनीय उत्तर खोजने की कोशिश करना जी-7 के लिए चुनौती है। ऐसा करने के लिए जी-7 को भारत जैसे नए साझेदारों की जरूरत है। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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