सोशल मीडिया मंचों पर बढ़ते विज्ञापनों के निहितार्थ
सोशल मीडिया को एक बेहतरीन प्रभावी माध्यम मानने के कई कारण हैं। स्मार्टफोन की आमद से लोग अब चौबीसों घंटे और सातों दिन सोशल मीडिया की सामग्रियों का उपभोग करने लगे हैं। बिग डाटा एनालिटिक्स...
सोशल मीडिया को एक बेहतरीन प्रभावी माध्यम मानने के कई कारण हैं। स्मार्टफोन की आमद से लोग अब चौबीसों घंटे और सातों दिन सोशल मीडिया की सामग्रियों का उपभोग करने लगे हैं। बिग डाटा एनालिटिक्स (जानकारियां पता करने के लिए विशाल डाटा की जांच करने की जटिल प्रक्रिया) और कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) से जुड़े उपकरणों के उन्नत हो जाने से सोशल मीडिया के विज्ञापनों को प्रत्येक इंसान के लिए व्यक्तिगत बनाया जा सकता है। विज्ञापनों को नितांत निजी बनाने की यही सुविधा सोशल मीडिया को विज्ञापन के किसी भी अन्य माध्यमों से अलग कर देती है। आप अपनी पसंद के हिसाब से ही विज्ञान देख पाते हैं।
हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में हाल ही में प्रकाशित लेख व्हॉट डिजिटल एडवरटाइजिंग गेट्स रॉन्ग कहता है कि डिजिटल विज्ञापनों की प्रभावशीलता बेतहाशा बढ़ गई है। इसमें ईबे पर विज्ञापनों के अध्ययन के हवाले से बताया गया है कि ब्रांड-खोज विज्ञापन (जिसमें ब्रांड का नाम शामिल कर सर्च की जाती है) की प्रभावशीलता 4,100 फीसदी तक बढ़ गई है। फेसबुक विज्ञापनों की इसी प्रभावशीलता में 4,000 फीसदी तक इजाफा हुआ है। कई प्रमुख इंटरनेट सेवाओं को विज्ञापन से होने वाली कमाई जोखिम लेने के लिए प्रेरित करती है। सर्च इंजन के साथ जो विज्ञापन परोसे जाते हैं, उसका डिजिटल विज्ञापन के कुल राजस्व में करीब 46 फीसदी हिस्सा है। बैनर हेड के जरिये प्रसारित प्रोमोशनल मैसेज वाले डिजिटल विज्ञापन की हिस्सेदारी 32 फीसदी होती है। टिम ह्वांग अपनी किताब में बताते हैं कि ऑनलाइन विज्ञापन के अत्यधिक संपर्क में आने के बावजूद लोग इसके प्रति उदासीन हैं। 1990 में जब सोशल मीडिया मंचों पर बैनर विज्ञापन दिखने लगे थे, तब उस पर क्लिक करने की दर 40 फीसदी थी। मगर, 2018 में गूगल का एक अध्ययन बताता है कि सोशल मीडिया पर विज्ञापनों को क्लिक करने की दर बमुश्किल 0.49 प्रतिशत है। यह हाल तब है, जब कृत्रिम बुद्धिमता द्वारा विज्ञापनदाता उपभोगकर्ताओं की रुचि से वाकिफ हैं। हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि प्रभावशीलता महज प्यासे को कुएं के पास ले जाना नहीं है, बल्कि ऐसी व्यवस्था करना है कि प्यासा अपनी प्यास बुझाए।
अध्ययनों से पता चला है कि प्रत्येक उपयोगकर्ता हर दिन स्मार्टफोन पर औसतन तीन घंटे से अधिक समय बिताता है। यह स्मार्टफोन उपयोगकर्ता 2,700 से अधिक बार विज्ञापन को टच करता है। हर टच के साथ उपभोगकर्ता आमतौर पर एक नई चीज से प्रभावित होता है। नतीजतन, सोशल मीडिया पर उपयोगकर्ता औसतन महज चार सेकंड तक ध्यान दे पाता है। न केवल ध्यान की अवधि, बल्कि उस ध्यान की गुणवत्ता को लेकर भी मुश्किलें हैं। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता जब कोई चीज तल्लीन होकर देखते हैं, तो शायद ही सूचना की खोज करते हैं। कम ध्यान लगाने और समय की किल्लत वाले सोशल मीडिया के इस दौर में विज्ञापनदाताओं के पास रचनात्मक विज्ञापन दिखाने के लिए अखबारों की तरह जगह भी नहीं होती। सोशल मीडिया पर ऐसे विज्ञापन के लिए कुछ वर्ग सेंटीमीटर की जगह होती है। लिहाजा, रणनीति हमें इसी छोटे से स्थान के लिए बनानी होगी। रणनीतिकारों को सेकंड से भी कम समय में मानव व्यवहार को प्रभावित करने की कला सीखनी होगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि मानव मस्तिष्क एक चित्र या छवि को काफी कम समय में महज 13 मिली सेकंड में अपने में ढाल सकता है। इसके अलावा, ऐसे विज्ञापन भावनात्मक अपील के साथ तैयार किए जाने चाहिए। हमारा दिमाग भावनाओं को मिलीसेकंड से भी कम समय में पकड़ लेता है। बेशक, इसी तरह के प्रयास विज्ञापन कारोबार में क्रांति लाएंगे और सोशल मीडिया विज्ञापनों को अधिक प्रभावी व किफायती बनाएंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)