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Hindi News ओपिनियन नजरियाईरान में नए राष्ट्रपति से बहुत सारी उम्मीदें 

ईरान में नए राष्ट्रपति से बहुत सारी उम्मीदें 

ईरान में राष्ट्रपति चुनाव में इब्राहिम रईसी को 62 प्रतिशत मतों से जीत मिली है। चुनाव परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के लिए हुई वियना में वार्ता की पृष्ठभूमि के खिलाफ हुआ है। परिणाम भी ऐसे समय में...

ईरान में नए राष्ट्रपति से बहुत सारी उम्मीदें 
दिनकर प्रकाश श्रीवास्तव, ईरान में भारत के पूर्व राजदूतMon, 21 Jun 2021 11:22 PM
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ईरान में राष्ट्रपति चुनाव में इब्राहिम रईसी को 62 प्रतिशत मतों से जीत मिली है। चुनाव परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के लिए हुई वियना में वार्ता की पृष्ठभूमि के खिलाफ हुआ है। परिणाम भी ऐसे समय में आया है, जब अफगानिस्तान में हालात बिगड़ते चले जा रहे हैं। काबुल में तालिबान काबिज हुआ, तो ईरान के साथ-साथ भारत के लिए भी इसके गहरे सुरक्षा निहितार्थ होंगे। 1990 के दशक के शुरू में जम्मू-कश्मीर में अशांति अफगानिस्तान में मुजाहिदीनों की जीत से शुरू हुई थी। रईसी ने कुल 28.93 मिलियन वोटों में से 17.926 मिलियन वोट हासिल किए हैं, पर 2017 में हुए चुनाव में 73 प्रतिशत वोट के मुकाबले इस बार 48.8 प्रतिशत मतदान हुआ। उनकी जीत से औद्योगिक उत्पादन पर अधिक ध्यान देने के साथ ही ईरान की घरेलू प्राथमिकता भी बदल सकती है। हालांकि, परमाणु मुद्दे पर ईरान का रुख बदलने की संभावना नहीं है। रईसी ने अंतिम बहस में कहा था कि यदि वह जीतते हैं, तो परमाणु करार का समर्थन करेंगे। विदेश मंत्री जरीफ ने कहा है कि ईरान यूरेनियम संवद्र्धन को घटाकर 3.67 प्रतिशत करने का इच्छुक है, जो परमाणु समझौते के तहत मंजूर स्तर है। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 2018 में परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने का फैसला किया था। ईरान पर अधिकतम दबाव बनाने की नीति ने सिर्फ तनाव बढ़ाया है। ओबामा प्रशासन द्वारा 2015 में हस्ताक्षरित परमाणु समझौते में क्षेत्रीय स्थिति शामिल नहीं थी। इस मुद्दे को परमाणु समझौते के दायरे में लाने की अमेरिकी कोशिश का ईरान ने विरोध किया है। हालांकि, ईरान ने सऊदी अरब और खाड़ी के देशों के साथ द्विपक्षीय रूप से क्षेत्रीय सुरक्षा पर चर्चा की इच्छा जताई है। उधर, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने खुलेआम यह कहा है कि ईरान के साथ सऊदी अरब दोस्ताना रिश्ते चाहता है। अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी जल्द ही पूरी होने की उम्मीद है। इससे वहां सत्ता-संघर्ष तेज हो गया है। 
तालिबान ने सन 1998 में मजार-ए-शरीफ में ईरानी राजनयिकों की हत्या कर दी थी। तालिबान शासन में हजारों ऐसे लोगों का उत्पीड़न हुआ था, जो शिया थे। हाल ही में ईरानी विदेश मंत्री ने कहा है कि तालिबान न सिर्फ पाकिस्तान के लिए, बल्कि ईरान व भारत के लिए भी सुरक्षा खतरे का प्रतिनिधित्व करता है। काबुल में तालिबान की जीत तहरीक-ए-तालिबान-ए-पाकिस्तान (टीटीपी) को प्रोत्साहित करेगी। परमाणु संपन्न पाकिस्तान का तालिबानीकरण अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण से भी बड़ा खतरा है। तालिबान एक चरमपंथी सुन्नी आंदोलन होने के नाते शिया ईरान के लिए वैचारिक व सुरक्षा खतरा, दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। 1980 के दशक में अफगानिस्तान में मुजाहिदीन की जीत के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकी अभियान चला। बहरहाल, परमाणु समझौते के फिर से शुरू होने से प्रतिबंध हटेंगे और तेल निर्यात बाजार में ईरान का फिर प्रवेश होगा। वह भारत में अपना बाजार वापस पाना चाहता है। ईरान के तेल और गैस ब्लॉकों में भारत की रुचि है। दोनों देशों के बीच हितों का सुखद तालमेल हो सकता है। तेल बाजार में ईरान की वापसी से कच्चे तेल की कीमतों में कमी लाने में मदद मिल सकती है। ग्लोबल वार्मिंग की चिंता के कारण लंबे समय में तेल की मांग में कमी आना तय है। इससे तेल निर्यातकों में प्रतिस्पद्र्धा बढे़गी और इसका लाभ खरीदार देशों को मिलेगा। भारत आगामी समय में ईरान से भी गैस आयात कर सकता है, जिसके पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा भंडार है। मध्य-पूर्व गैस पाइपलाइन नामक परियोजना है, जो लगभग 1,100 किलोमीटर की समुद्री पाइपलाइन के माध्यम से ईरान-ओमान और भारत को जोड़ेगी। इससे भारत में 1.1 अरब क्यूबिक फीट या 311 लाख क्यूबिक मीटर प्रतिदिन गैस आ सकती है। इसके अलावा ईरान मध्य एशिया या अफगानिस्तान में पारगमन के लिए भारत को कनेक्टिविटी प्रदान करता है। भारत चाबहार बंदरगाह विकसित कर रहा है। प्रगति उतनी तेज नहीं रही, जितनी हम चाहते थे। प्रतिबंधों के कारण, बैंकिंग स्रोत खोजना मुश्किल रहा। परमाणु समझौते के फिर शुरू करने की स्थिति में प्रतिबंध हटने से परियोजना को गति देना मुमकिन होगा। भारत अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण ट्रांजिट कॉरिडोर विकसित करने में भी दिलचस्पी रखता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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