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प्रवेश प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने की पहल

केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 के तहत 12 नए केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना के एक वर्ष बाद केंद्रीय विश्वविद्यालय सामान्य प्रवेश परीक्षा, यानी सीयूसीईटी की शुरुआत हुई थी। राष्ट्रीय शिक्षा...

प्रवेश प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने की पहल
रसाल सिंह, डीन, छात्र कल्याण, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालयTue, 21 Dec 2021 11:28 PM
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केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 के तहत 12 नए केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना के एक वर्ष बाद केंद्रीय विश्वविद्यालय सामान्य प्रवेश परीक्षा, यानी सीयूसीईटी की शुरुआत हुई थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में इस व्यवस्था को क्रमश: सभी विश्वविद्यालयों में लागू करने का प्रस्ताव है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कई महीने से सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को इसके दायरे में लाने के लिए प्रयासरत है।
पिछले साल दिसंबर में यूजीसी ने इस योजना की व्यावहारिकता पर विचार-विमर्श करने के लिए पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आर पी तिवारी के नेतृत्व में सात सदस्यीय समिति का गठन किया था। तिवारी समिति ने कुछ ही दिनों पहले गैर-पेशेवर स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा (सीईटी) और पीएचडी कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) को आधार बनाने की सिफारिश की है। इस रपट के अनुसार, राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) को केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्नातक में प्रवेश के लिए वर्ष में कम से कम दो बार सामान्य प्रवेश परीक्षा आयोजित करनी होगी। गत माह 22 नवंबर को यूजीसी ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को सूचित किया कि उन्हें आगामी सत्र से राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा आयोजित सीईटी के आधार पर अपने यहां प्रवेश करने हैं। इन विश्वविद्यालयों में बिहार के तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय और उत्तर प्रदेश के चार केंद्रीय विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। इससे केंद्रीय  विश्वविद्यालयों के स्नातक और स्नातकोत्तर स्तरीय अव्यावसायिक पाठ्यक्रमों के 15 लाख से अधिक अभ्यर्थियों की राह आसान होने के आसार हैं। 

सामान्य प्रवेश परीक्षा संबंधी यह पत्र ऐसे समय में आया है, जब दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख संस्थानों में प्रवेश के लिए अवास्तविक व अकल्पनीय कटऑफ ने अन्य विकल्पों की जरूरत को रेखांकित किया है। कथित मार्क्स जेहाद विवाद की पृष्ठभूमि में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा अधिष्ठाता (परीक्षा) प्रोफेसर डी एस रावत की अध्यक्षता में गठित नौ सदस्यीय समिति ने भी सामान्य प्रवेश परीक्षा आयोजित करने का ही सुझाव दिया है। शिक्षा मंत्रालय भी प्रवेश प्रक्रिया में व्याप्त अव्यवस्था, अराजकता और असमानता की समाप्ति और एकरूपता, समता, निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा लागू करना चाहता है। निस्संदेह, दिल्ली विश्वविद्यालय सहित देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए अब सामान्य प्रवेश परीक्षा ही एकमात्र विश्वसनीय विकल्प है। 
गैर-पेशेवर स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) और राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) के समान स्तरीय एकल प्रवेश परीक्षा होगी। जेईई इंजीनियरिंग संस्थानों, नीट मेडिकल संस्थानों और कैट प्रबंधन संस्थानों में प्रवेश हेतु देश भर में मान्य है, वैसे ही यह परीक्षा भी होगी। यह परीक्षा न केवल आसमान छूती कटऑफ को समाप्त करेगी, बल्कि दूरदराज के और क्षेत्रीय भाषा के उम्मीदवारों के लिए भी प्रवेश के अवसर बढ़ाएगी। जेईई और एनईईटी परीक्षा की तरह यह भी न्यूनतम 13 प्रादेशिक भाषाओं में आयोजित होगी। 
छात्र की क्षमता को निष्पक्ष रूप से मापने के लिए समान परिस्थितियों में ली जाने वाली यह एकल परीक्षा अधिक तार्किक और न्यायपूर्ण होगी। यह मानकीकृत परीक्षण किसी एक बोर्ड के पाठ्यक्रम पर निर्भर नहीं होगा। इसमें सामाजिक विज्ञान विषयों के छात्रों बनाम विज्ञान विषयों के छात्रों के परिणामों में असमानता और कुछ राज्य बोर्डों द्वारा अपनाई गई अत्यधिक उदार मूल्यांकन प्रणाली (जिसके कारण 100 और 99 प्रतिशत अंक लाने वाले छात्रों की लंबी सूची होती है) तक का समाधान शामिल है। बोर्ड परीक्षा में प्रश्नपत्र भी एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न होते हैं और मूल्यांकन भी समान नहीं होता। अलग-अलग राज्यों में एक ही विषय के अलग-अलग नाम होने से भी समस्या होती है। सामान्य प्रवेश परीक्षा बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे कठिन मूल्यांकन करने वाले बोर्डों के छात्रों को अवसर प्रदान करेगी। निस्संदेह, एकल प्रवेश परीक्षा बिना किसी परेशानी के एक साथ कई विश्वविद्यालयों में दाखिले का विकल्प प्रदान करेगी। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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