कर्नाटक में फूंक-फूंककर कदम बढ़ाती भाजपा
भारतीय जनता पार्टी के लिए बी एस येदियुरप्पा की अहमियत यदि एक लाइन में बताई जाए, तो कहा जाएगा कि वह एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने कर्नाटक में पार्टी के लिए द्वार खोला। तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे 79...
भारतीय जनता पार्टी के लिए बी एस येदियुरप्पा की अहमियत यदि एक लाइन में बताई जाए, तो कहा जाएगा कि वह एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने कर्नाटक में पार्टी के लिए द्वार खोला। तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे 79 वर्षीय येदियुरप्पा को कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं और इन दिनों उन्हें अपनी ही पार्टी में गहरे असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थित पार्टी की कट्टर हिंदुत्ववादी ताकतें उन्हें अपदस्थ करना चाहती हैं। हालांकि, येदियुरप्पा कॉलेज जीवन से ही आरएसएस के सदस्य रहे हैं, लेकिन पार्टी के ही कुछ कट्टर उन्हें पद से हटाने की धमकियां दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री पद से उनकी जल्द विदाई की अटकलें उस वक्त काफी तेज हो गईं, जब पिछले हफ्ते एक निजी विमान से वह बेटे के साथ नई दिल्ली आए और प्रधानमंत्री समेत दूसरे वरिष्ठ मंत्रियों व पार्टी पदाधिकारियों से मुलाकात की। हालांकि, येदियुरप्पा पद छोड़ने संबंधी सवालों से बचते रहे, लेकिन सत्ता में दो साल पूरे होने पर आगामी सोमवार (26 जुलाई) को उन्होंने पार्टी विधायक दल की एक बैठक बुलाई है। लाख टके का सवाल यह है कि क्या वह शांति से सत्ता हस्तांतरण का रास्ता साफ कर देंगे? पार्टी के विकास में येदियुरप्पा ने जो मदद की, उसके लिए भाजपा को उनका आभारी होना चाहिए। हालांकि, कर्नाटक में आरएसएस की दशकों से उपस्थिति रही है, लेकिन जिन दिनों दक्षिणी राज्यों में भाजपा को एक उत्तर भारतीय पार्टी के रूप में देखा जाता था, येदियुरप्पा ने संघ की पुरानी उपस्थिति को चुनावी लाभांश में बदलने का काम किया। एच वी शेषाद्रि और दत्तात्रेय होसबेले जैसे आरएसएस के वरिष्ठ नेता भी कर्नाटक से आते हैं और इन्होंने भी पार्टी को बढ़ाने में काफी मदद की है। बहरहाल, येदियुरप्पा जब अपने मौजूदा कार्यकाल का दूसरा साल पूरा करने जा रहे हैं, तब संगठन के भीतर से ही उन्हें हटाए जाने की मांगें की जा रही हैं, क्योंकि भाजपा के कुछ नेताओं को लगता है कि उनमें सरकार चलाने लायक न तो ऊर्जा है और न ही उत्साह। पार्टी के असंतुष्टों का आरोप है कि सरकार वस्तुत: उनके दूसरे बेटे चला रहे हैं। कहा यह भी जा रहा है कि बुजुर्ग मुख्यमंत्री की सेहत भी ठीक नहीं रहती है।
भाजपा आलाकमान येदियुरप्पा के मामले में कोई भी त्वरित फैसला करने में इसलिए असमर्थ है, क्योंकि लिंगायत समुदाय पर उनकी मजबूत पकड़ है, और राज्य की आबादी में यह समुदाय लगभग 17 प्रतिशत है। इसीलिए पार्टी आलाकमान कोई समझौतापरक समाधान ढूंढ़ने की कोशिश में है। आरएसएस समेत भाजपा चूंकि परिवारवाद और वंशवादी शासन के खिलाफ लगातार प्रचार करती रही है, ऐसे में इस बात की कोई संभावना नहीं है कि येदियुरप्पा की कुरसी उनके दूसरे बेटे बी वाई बिजयेंद्र को सौंप दी जाएगी। विजयेंद्र अभी विधायक भी नहीं हैं। मुख्यमंत्री के बडे़ बेटे बी वाई राघवेंद्र सांसद हैं। चर्चा है कि सत्ता-संरचना में इन दोनों का ‘समायोजन’ किया जा रहा है। इस बीच, येदियुरप्पा की करीबी नेता शोभा कारांदलाजे को केंद्र में मंत्री बनाए जाने से भी समझौते के फॉर्मूले को लेकर अटकलों को बल मिला है। कारांदलाजे कृषि राज्य मंत्री बनाई गई हैं।
रणनीतिक रूप से कर्नाटक भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण प्रदेश है, क्योंकि यह दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में पार्टी का प्रवेश द्वार है। दिलचस्प बात यह है कि आरएसएस नेता बी एल संतोष और उनके समर्थक मुख्यमंत्री से दो-दो हाथ करते दिख रहे हैं। दक्षिण बेंगलुरु के फायरब्रांड सांसद तेजस्वी सूर्या के नाटकीय उदय का श्रेय संतोष को ही दिया जाता है। भाजपा कर्नाटक में अपनी सफलता को और मजबूत करना चाहती है, क्योंकि इस सूबे में कांग्रेस और जनता दल (एस) अब भी काफी अहमियत रखते हैं। पार्टी की एक रणनीति राज्य में भगवा रंग को और गहराने की हो सकती है और इसके लिए शायद वहां सरकार के नेतृत्व परिवर्तन की आवश्यकता है। तो क्या येदियुरप्पा के साथ भाजपा आलाकमान का समझौता हो गया है? और क्या नई पीढ़ी के राजनेता की खातिर रास्ता साफ करने के वास्ते उन्हें ‘मनाया’ जा चुका है? आने वाले दिनों के घटनाक्रमों से स्थिति साफ हो जाएगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)