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Hindi News ओपिनियन नजरियाबड़ी त्रासदी झेलकर भी हम नहीं सीखे पूरे सबक 

बड़ी त्रासदी झेलकर भी हम नहीं सीखे पूरे सबक 

पिछले 10 हफ्तों में जैसे ही भारत में कोविड की दूसरी लहर आई, मैंने आठ राज्यों की यात्रा की, बेंगलुरु में घर पर केवल कुछ  दिन बिताए। मैंने 29 जिलों के गांवों और कस्बों का दौरा किया। लॉकडाउन के...

बड़ी त्रासदी झेलकर भी हम नहीं सीखे पूरे सबक 
अनुराग बेहर, सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशनThu, 17 Jun 2021 11:22 PM
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पिछले 10 हफ्तों में जैसे ही भारत में कोविड की दूसरी लहर आई, मैंने आठ राज्यों की यात्रा की, बेंगलुरु में घर पर केवल कुछ  दिन बिताए। मैंने 29 जिलों के गांवों और कस्बों का दौरा किया। लॉकडाउन के बावजूद मैंने इन जगहों की यात्रा की और मुझे अनुमति दी गई, क्योंकि हम वहां काम करते हैं। इन यात्राओं के दौरान मेरे कुछ अवलोकन रहे हैं - पहला, ‘दूसरी लहर’ वाक्यांश भ्रामक है। दिल्ली, मुंबई, पुणे और कुछ अन्य स्थानों के लिए यह तीसरी या चौथी लहर थी। बेंगलुरु, चेन्नई और अन्य शहरों के लिए यह दूसरी लहर थी, लेकिन ग्रामीण भारत के बड़े हिस्से सहित देश के विशाल क्षेत्र के लिए यह पहली लहर थी। इन इलाकों के भीतर भी बड़े हिस्से हैं, जो अब तक अप्रभावित रहे हैं। इन क्षेत्रों ने अभी तक अपनी पहली लहर का भी अनुभव नहीं किया है। एक सटीक देशव्यापी समझ एक व्यापक और त्वरित सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण से ही उभर सकती है। अधिकांश सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने हमें बार-बार और सही याद दिलाया है कि लहरों का एक और दौर अनिवार्य नहीं है, यह हमारे क्रियाकलाप पर निर्भर करता है। दूसरा, मृत्यु दर और कोरोना मामलों को बहुत कम रिपोर्ट किया जा रहा है। जिन जगहों पर मैं गया, वहां मौतों को वास्तव में कम रिपोर्ट किया गया है। आमतौर पर जान-बूझकर नहीं, लेकिन वास्तविक मृत्यु दर रिपोर्ट की गई संख्या से 4-10 गुना अधिक है। अपेक्षित रूप से सबसे कम रिपोर्टिंग ग्रामीण क्षेत्रों से है। निहितार्थ यह है कि जब लहरों का अगला दौर होगा, तब उसके ग्रामीण क्षेत्र में अधिक रहने की आशंका है। तीसरा, निस्संदेह, दूसरी लहर घट रही है। ग्रामीण क्षेत्रों के दूरस्थ क्षेत्रों सहित, हर जगह संख्या कम हो रही है। यह लॉकडाउन का परिणाम है और इसलिए स्थिति अस्थिर है। इस महामारी के प्रति हमारे दृष्टिकोण में मुख्य समस्याओं में से एक यह है कि हमने इसकी रोकथाम को कानून व व्यवस्था के मुद्दे के रूप में संभाला है, न कि सामुदायिक लामबंदी और शिक्षा के हिस्से के रूप में, जैसा कि होना चाहिए था। इसीलिए आबादी के विशाल बहुमत में बहुत कम या कोई वास्तविक व्यवहार परिवर्तन नहीं हुआ है, जो क्षणिक बदलाव दिखते हैं, वे जबरन कराए गए हैं। जैसे-जैसे लॉकडाउन में ढील दी जाएगी, लोग अपने पुराने ढर्रे पर लौट आएंगे। चौथा, भूख और आर्थिक अभाव विनाशकारी रहा है। कई लोगों ने अपने प्रियजनों को खोकर व्यक्तिगत त्रासदी का शीर्ष देखा है। आंकड़े और आर्थिक संकेतक इन वास्तविकताओं को पर्याप्त रूप से नहीं दर्शाते हैं, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा असंगठित है। कमजोर लोग बहुसंख्या में हैं, जो असंगठित क्षेत्र पर निर्भर हैं, यही लोग सर्वाधिक आहत हुए हैं। बहुत से लोग हैं, जो पैसे उधार लेकर कर्ज को कई गुना बढ़ाकर जीवित रहे हैं। ऐसे लोग आने वाले वर्षों तक कर्ज का बोझ वहन करेंगे। दूसरी लहर ने ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध एकमात्र जीवन रेखा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को भी बाधित किया है। साथ ही, लोग बाहर निकलने से भी डरने लगे हैं और इस योजना को पिछले वर्ष के विपरीत केंद्र से अतिरिक्त धनराशि नहीं मिली है। शहरी भारत की स्थिति भी उतनी ही विकट है। उच्च मध्य वर्ग से बाहर के सभी लोग व निजी क्षेत्र के बड़े संगठनों और सार्वजनिक संस्थानों के वेतनभोगी वर्ग संकट के विभिन्न स्तरों में हैं। इसका एक ही निहितार्थ है कि कठोर लॉकडाउन को जारी रखना मुमकिन नहीं, जो अब तक महामारी को नियंत्रित करने का हमारा एकमात्र तरीका है। पांचवां, कोरोना व लॉकडाउन की प्रभावशीलता के मामले में राज्यों की प्रतिक्रिया भिन्न है, लेकिन एक महत्वपूर्ण आयाम पर, सभी राज्य एक समान हैं : उनकी आबादी का बहुत कम अनुपात में टीकाकरण किया गया है। मुझे भय है कि हमने दूसरी लहर के समय मची तबाही से भी सबक नहीं सीखा है। अभी जो राहत दी गई है, उसके झणभंगुर रहने की संभावना है। अभी महामारी पर नियंत्रण का अभाव है और हम आने वाले संकट को देखने में नाकाम हैं। हम पहले ही लॉकडाउन के ब्रह्मास्त्र (अंतिम हथियार) का उपयोग कर चुके हैं, और देश की अधिकांश आबादी अभी भी जागरूक नहीं है। मुझे उम्मीद है, संकट काल की मेरी भविष्यवाणी गलत होगी। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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