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बंगाल का मतलब चुनावी हिंसा बिल्कुल नहीं

‘सबकी वजह बंगाल है...’ को किस तरह से पेश किया जाता है, बानगी देखिए। ‘अगर बंगाल में इतने लंबे चुनाव नहीं हुए होते, तो असम, केरल और तमिलनाडु में ईवीएम अब तक खुल चुकी होतीं, और हम उन...

बंगाल का मतलब चुनावी हिंसा बिल्कुल नहीं
गोपालकृष्ण गांधी, पूर्व राज्यपाल, पश्चिम बंगालFri, 16 Apr 2021 11:56 PM
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‘सबकी वजह बंगाल है...’ को किस तरह से पेश किया जाता है, बानगी देखिए। ‘अगर बंगाल में इतने लंबे चुनाव नहीं हुए होते, तो असम, केरल और तमिलनाडु में ईवीएम अब तक खुल चुकी होतीं, और हम उन राज्यों का जनादेश पा चुके होते...’
‘अगर बंगाल न होता, तो अब तक वायरस के तेज प्रसार को रोकने के लिए जनता पर पाबंदियां लगा दी गई होतीं, और संक्रमण में इतनी वृद्धि शायद नहीं होती...’
‘इसका कारण बंगाल है...’
ऐसे वाक्य तकलीफदेह हैं। ये बंगाल को दर्द देते हैं। ये उन लोगों को दुख पहुंचाते हैं, जो बंगाल को जीते हैं। मगर सबसे ज्यादा, ये वाक्य सत्य को नुकसान करते हैं। और वह सत्य क्या है, इसे मैं बंगाल को लेकर कहे जाने वाले पांच तथ्यों के संदर्भ में बताता हूं। पहला तथ्य है, वर्षों से बंगाल की पहचान चुनावी हिंसा है। दूसरा, इस हिंसा ने राज्य को बदनाम कर दिया है। तीसरा, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। चौथा, निर्वाचन आयोग को इसी आधार पर बंगाल में चुनाव-कार्यक्रम कराने चाहिए। और पांचवां, ‘किंतु’ बंगाल इन हिंसा से काफी ऊपर है, और यहां के लोग समाज की दरारों में छिपे अवांछित ‘गुंडों’ से कहीं ज्यादा महान हैं। गुंडे शब्द का इस्तेमाल हर पार्टी विपक्ष के उन लोगों के लिए करती है, जिन्हें आमतौर पर ठग कहा जाता है और जिनका व्यवहार आक्रामक व डराने वाला होता है। ‘गुंडे’ बंगाल में चुनावी हिंसा के प्रतीक बन गए हैं। गुंडों के बारे में खुला रहस्य यह है कि वे कतई राजनीतिक नहीं हैं। वे सिर्फ और सिर्फ गुंडे हैं। यह शब्द अमेरिका में गाली-गलौज की भाषा से निकला है, हालांकि एक सोच यह भी है कि यह हिंदी से आया है। ठग तो विशुद्ध हिंदी का शब्द है, लेकिन यह उस दुनिया का शब्द नहीं है, जहां से मुंशी प्रेमचंद, आचार्य नरेंद्र देव, सुभद्रा कुमारी चौहान, मैथिलीशरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला या महादेवी वर्मा जैसे लोग आते हैं। इसी तरह, गुंडा बेशक बंगाल में चुनावी हिंसा का प्रतीक बन गया है, लेकिन यह बंगाल का कतई प्रतीक नहीं बन सकता। ऐसा मैं क्या इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि यह ठाकुर रामकृष्णदेब और श्रीमां शारदा का घर है? स्वामी विवेकानंद ,  श्री अरबिंदो का भी? क्योंकि यह रवींद्रनाथ टैगोर, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, काजी नजरूल, तोरु दत्त, सरोजिनी नायडू, महाश्वेता देवी की जन्मभूमि है?  इस मिट्टी से महान वैज्ञानिक जेसी बोस, पीसी राय, मेघनाद साहा निकले हैं? महान कलाकार जेमिनी रॉय, नंदलाल बोस, रामकिंकर बैज, सोमनाथ होर इसकी देन हैं? अमत्र्य सेन, सुखमय चक्रवर्ती, अशोक मित्र जैसे  अर्थशास्त्रियों की यह जमीन है? सुरेंद्रनाथ बनर्जी, चितरंजन दास, सुभाष चंद्र बोस, आशुतोष मुखर्जी जैसे महान नेताओं की भूमि है और इसने आजादी के आंदोलन में नायिकाओं को उतरने को प्रेरित किया, जैसे मातंगिनी हाजरा, प्रीतिलता वादेदार? हां! मैं यह कह सकता हूं। तो क्या मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि इसने दिल खोलकर सबका स्वागत किया? यह बंगाल ही है, जिसने हमारे समय के सबसे बडे़ मुस्लिम राजनेता मौलाना अबुल कलाम आजाद को वर्षों तक अपने पास रखा, सीवी रमन और सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे गैर-बंगाली शिक्षकों को शोहरत दी, संविधान सभा में आंबेडकर को भेजा, अरुण लाल को क्रिकेट की रणजी ट्रॉफी में अपनी तरफ से खेलने का मौका दिया? रोनाल्ड रॉस, सीएफ एंड्रूयज, डब्ल्यू डब्ल्यू पीयरसन, तन यून-शान और लियोनार्ड एल्महस्र्ट जैसे विदेशी पुण्यात्माओं को अपने यहां पनाह दी? मदर टेरेसा जैसा अमर उदाहरण दिया? हां! मैं यह भी कह सकता हूं। मगर मैं किसी अन्य बड़ी वजह से भी ऐसा कह रहा हूं। और वह है, यहां के सरल हृदय लोगों, किसानों, मजदूरों और पेशेवरों की महानता। साल 2007 में नंदीग्राम संकट के दौरान, मैं मुरादपुर के पास एक झोंपड़ी में रुका था। वहां एक तालाब के किनारे बमुश्किल 10 घर थे। उन झोंपड़ियों में रहने वाले लोगों ने मुझे अपने यहां बुलाया। उन्होंने मुझसे कोई मांग नहीं की। किसी ने मुझसे खाने का आग्रह किया, तो किसी ने बैठने का। एक गृहिणी ने मेरा स्वागत आरती के साथ किया। ये वे सीधे लोग हैं, जो बंगाल बनाते हैं। यही बंगाल है। हमें इन पर गर्व होना चाहिए और इनका आभार जताना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
 

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