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Hindi News ओपिनियन नजरियाआखिर कैसे टूटेगा नशे का कसता शिकंजा 

आखिर कैसे टूटेगा नशे का कसता शिकंजा 

ड्रग्स आज की दुनिया की कुछ सबसे बड़ी समस्याओं में एक है। अलग-अलग किस्म की नशीली दवाएं अपनी अलग रासायनिक संरचना के कारण मानव शरीर और मष्तिष्क को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करती हैं। इनके इस्तेमाल से...

आखिर कैसे टूटेगा नशे का कसता शिकंजा 
ध्रुव गुप्त, भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारीTue, 14 Sep 2021 11:53 PM
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ड्रग्स आज की दुनिया की कुछ सबसे बड़ी समस्याओं में एक है। अलग-अलग किस्म की नशीली दवाएं अपनी अलग रासायनिक संरचना के कारण मानव शरीर और मष्तिष्क को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करती हैं। इनके इस्तेमाल से कुछ देर के लिए लोगों को अपनी समस्याओं, तनावों और दुखों से छुटकारा पाकर किसी काल्पनिक, रहस्यमयी दुनिया में घूम आने का एहसास भले हो जाता हो, लेकिन इनकी आदत अपने परिवेश और समाज से काटकर लोगों को अकेला ही नहीं करती, बल्कि मानसिक विक्षिप्तता और शारीरिक व्याधियों का कारण भी बनती है। दुनिया भर के देशों में कठोरतम सजा के प्रावधानों के बावजूद ड्रग्स के इस्तेमाल में कमी आने के बजाय बढ़ोतरी देखी जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ड्रग्स के आदी लोगों की संख्या हर साल 30 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है।  

अपने देश में पारंपरिक रूप से सबसे ज्यादा जिस एक नशीले पदार्थ का सेवन होता है, वह है गांजा। गांजे के पौधे का वैज्ञानिक नाम ‘कैनेबिस’ है। इसके विभिन्न उत्पादों को मारिजुआना, वीड, स्टफ, पॉट, ग्रास आदि नामों से भी जाना जाता है। अमेरिका के कुछ राज्यों और कनाडा व उरुग्वे को छोड़ फिलहाल दुनिया के अधिकतर देशों में गांजे पर प्रतिबंध है। सिर्फ चिकित्सकीय उद्देश्यों के लिए ही इस प्रतिबंध में छूट दी जाती है। प्रतिबंध के बावजूद दुनिया के कई हिस्सों में गांजे की खेती होती है। अफगानिस्तान-पाकिस्तान के सीमावर्ती कुछ प्रांत इसकी खेती के सबसे बड़े केंद्र हैं, जहां से तस्करी होकर यह दुनिया भर में पहुंचता है। इसकी तस्करी में तालिबान, अल कायदा समेत कई आतंकी संगठन शामिल हैं, जिनकी आर्थिक संपन्नता का यह प्रमुख जरिया है। हमारे देश के भी कई हिस्सों, खासकर हिमालयी क्षेत्रों में भी चोरी-छिपे इसकी खेती होती है। दुनिया भर में गांजे का अरबों डॉलर का विशाल कारोबार है। 
हमारे देश में हजारों साल से गांजे के उपभोग पर कभी कोई रोक-टोक नहीं थी। राजीव गांधी की सरकार द्वारा पहली बार वर्ष 1985 में इसे प्रतिबंधित ड्रग्स की सूची में शामिल किया गया। भारत में अनेक साधु-संन्यासियों के बीच गांजा चर्चित नशा है। अथर्ववेद  में गांजे के पौधे की गिनती पांच महानतम पौधों में की गई है। गांजे का प्राचीन नाम ‘ज्ञानदा’ बताया जाता है, जो कालांतर में बिगड़कर गांजा हो गया। देखा जाए, तो कुछ औषधीय उपयोगों के सिवा गांजे के समर्थन में दिए जाने वाले तमाम तर्क अवैज्ञानिक और मनगढ़ंत हैं। सच यह है कि गांजा स्नायु तंत्र को कुछ घंटों के लिए शिथिल भर कर देता है। यह एक तरह का केमिकल लोचा है, जो मतिभ्रम पैदा करता है। लगातार इसका धुआं पीने वाले लोगों में उस काल्पनिक संसार में डूबे रहने की इच्छा तीव्र से तीव्रतर होती चली जाती है। ऐसे लोग वास्तविक दुनिया के प्रति आकर्षण खोकर धीरे-धीरे अकेला होते चले जाते हैं। अपरिपक्व मस्तिष्क वाले किशोरों के दिमाग को गांजा कुंद भी कर सकता है। सांस के रोगियों और गर्भवती महिलाओं पर तो इसका असर घातक होता है।
तथाकथित साधुओं के एक वर्ग से चलकर गांजा अब सिनेमा, फैशन और ग्लैमर इंडस्ट्री तक पहुंच गया है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा बॉलीवुड में चलाए गए अभियान से यह सामने आया है कि फिल्म व ग्लैमर इंडस्ट्री बुरी तरह से नशे की गिरफ्त में है। पिछले कुछ दशकों मंु गांजे और उससे बने मादक पदार्थों के बढ़ते उपयोग को देखते हुए लगता है, आने वाले वर्षों में युवा पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा नशे की गिरफ्त में होगा। यह असंभव लगता है कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो या पुलिस जैसी एजेंसियां अपने दम पर इनके ऊपर कारगर नियंत्रण पा सकेंगी। दिखावे के लिए वे इधर-उधर से कुछ लोगों को पकड़ भी लें, तो साधु समाज तक पहुंचने की हिम्मत कहां से जुटा पाएंगी? इसे रोकने के लिए सरकार व स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा बड़े स्तर पर जन-जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। इसकी उपलब्धता के तमाम स्रोतों को काटना होगा। यह देखना होगा कि सख्त प्रतिबंध के बावजूद देश में गांजा उपजता और आता कहां से है? अभी पंजाब और कश्मीर ड्रग्स की तस्करी के सबसे बड़े मार्ग बन चुके हैं। सवाल यह है कि क्या सरकार के पास इस लक्ष्य को हासिल करने की इच्छाशक्ति और सक्षम, ईमानदार तंत्र मौजूद है?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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