आंखों को लेकर सावधान रहें, घबराएं नहीं
इन दिनों, विशेषकर कोरोना संक्रमण पर जीत दर्ज करने वाले लोगों में आंखों से जुड़ी कई परेशानियां सामने आ रही हैं। आंखों में खुजली होने, मिचमिचाने, पानी निकलने, धुंधला दिखने और फोकस न बन पाने की शिकायतें...
इन दिनों, विशेषकर कोरोना संक्रमण पर जीत दर्ज करने वाले लोगों में आंखों से जुड़ी कई परेशानियां सामने आ रही हैं। आंखों में खुजली होने, मिचमिचाने, पानी निकलने, धुंधला दिखने और फोकस न बन पाने की शिकायतें आम हैं। डॉक्टरी-भाषा में हम इसे ‘नॉन स्पेसिफिक कम्प्लेन’ कहते हैं। नतीजतन, इन्हें लेकर लोगों में कई तरह की भ्रांतियां बन गई हैं। मगर ये ऐसी समस्याएं हैं, जो बहुत गंभीर नहीं होतीं और हल्की-फुल्की दवाओं से ठीक हो जाती हैं। कई मामलों में तो दवा की जरूरत भी नहीं पड़ती और मरीज दो-तीन महीने में खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है। इसीलिए इनको लेकर ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है।
यहां हमें यह ध्यान रखने की जरूरत है कि न घबराने का मतलब यह कतई नहीं कि समस्याओं की अनदेखी कर दें, क्योंकि कुछ मरीजों में गंभीर रोग भी दिख रहे हैं। इनमें आंखों की नसों के फटने जैसी समस्या ज्यादा हैं। हालांकि, इन्हें अभी पुख्ते तौर पर कोरोना से नहीं जोड़ा जा सकता, क्योंकि इस समस्या के साथ मरीज अस्पतालों में पहले भी आते रहे हैं, मगर जिस तरह से कोरोना मरीजों में ब्रेन स्ट्रोक या हृदयाघात के मामले देखे जा रहे हैं, उसी तरह वे आंखों की समस्याओं से भी जूझ रहे हैं। हां, अन्य तमाम पोस्ट-कोविड लक्षणों (कोरोना से ठीक होने के बाद की शारीरिक दिक्कतें) की तरह आंखों की भी कई समस्याएं समय बीतने के साथ खुद-ब-खुद ठीक हो जाती हैं और मरीज तंदुरुस्त हो जाता है। इसके लिए उन्हें बस सावधान रहने की जरूरत है। आंखों या नाक, कान, गले में कुछ भी दिक्कत हो, तो तुरंत डॉक्टर से मिल लेना चाहिए। इसमें डॉक्टरी परामर्श आवश्यक है। यही कारण है कि कोविड के बाद अगले तीन-चार महीनों तक डॉक्टर की निगरानी में रहने की सलाह दी जा रही है।
फंगस भी ऐसा ही एक संक्रमण है, जो आंखों को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है। बीमार या कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग इसके ज्यादा शिकार होते हैं। इसमें भी यह नहीं कहा जा सकता कि कोरोना के बाद ही इस रोग का जन्म हुआ है और सभी कोरोना-रोगी इससे प्रभावित हो जाएंगे। अगर किसी व्यक्ति के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होगी, तो वह इसका कतई शिकार नहीं होगा। दरअसल, हवा में मौजूद फंगस नाक के जरिये हमारे शरीर में दाखिल होता है, और फिर धीरे-धीरे आंखों या मस्तिष्क को प्रभावित करता है। अच्छी बात यह है कि अपने यहां अस्पतालों से मरीजों को छुट्टी देने से पहले आंख, कान, नाक आदि की पूरी जांच कर ली जा रही है, लेकिन जिन लोगों ने घर पर ही कोरोना का इलाज कराया है, उन्हें खास ध्यान रखना चाहिए। उनको यदि कोई हल्की-फुल्की भी परेशानी हो रही हो, तो वे तुरंत डॉक्टर की सलाह लें। ‘नॉन स्पेसिफिक कम्प्लेन’ के बावजूद अभी एहतियात जरूरी है। डायबिटिक या मधुमेह रोगियों को खास सावधानी बरतनी चाहिए। दरअसल, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत कमजोर होती है और उनमें संक्रमण भी तुलनात्मक रूप से कहीं तेजी से फैल सकता है। हमारे कई सहयोगी डॉक्टरों और नर्सों में इस तरह की समस्या दिखी है। फिर भी, यही कहा जाएगा कि 80 फीसदी से अधिक मरीज साफ-साफ न दिखने या धुंधला दिखने जैसे ‘नॉन स्पेसिफिक कम्प्लेन’ के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं, और करीब 20 प्रतिशत गंभीर रोगों के साथ। देश-दुनिया में कोरोना और इसके बाद की बीमारियों की आंशकाओं पर काफी अध्ययन हो रहे हैं। जैसे-जैसे ठोस निष्कर्ष मिलेंगे, उसके बाद इलाज की दिशाएं भी तय होंगी। फिलहाल अपने देश में विशेष एहतियात बरतने की जरूरत है। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि हम भारतीयों में आंख, दांत, कान से जुड़ी समस्याओं को टालने की फितरत होती है। लोग ऐसी समस्याओं पर तब तक ध्यान नहीं देते ,जब तक रोग गंभीर न हो जाए या उन्हें इसकी वजह से कोई बड़ी दिक्कत न होने लगे। लेकिन यह प्रवृत्ति विशेषकर कोरोना से ठीक हो चुके लोगों पर भारी पड़ सकती है। इसीलिए उन्हें नियमित तौर पर अपने स्वास्थ्य की जांच करानी चाहिए और छोटी-बड़ी हर शारीरिक दिक्कत पर गौर करना चाहिए। अगर उन्हें कोई समस्या दिखती है, तो तुरंत डॉक्टरी सलाह लें। इसी से उनके संबंधित रोग का निदान होगा और वे जल्द सेहतमंद हो जाएंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)