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Hindi News ओपिनियन नजरियाफिर जीतने के लिए चेहरे बदलने की कवायद

फिर जीतने के लिए चेहरे बदलने की कवायद

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का यकायक हटना चौंकाता नहीं है, क्योंकि भाजपा नेतृत्व खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी ऐसे फैसले लेती आ रही है। 2014 में केंद्रीय सत्ता...

फिर जीतने के लिए चेहरे बदलने की कवायद
रामनारायण श्रीवास्तव, विशेष संवाददाता, हिन्दुस्तानSun, 12 Sep 2021 11:15 PM
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गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का यकायक हटना चौंकाता नहीं है, क्योंकि भाजपा नेतृत्व खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी ऐसे फैसले लेती आ रही है। 2014 में केंद्रीय सत्ता में आने के बाद भाजपा की रीति-नीति में एक बड़ा बदलाव साफ देखने को मिला है कि जो नेता चुनावी राजनीति में फिट नहीं बैठते, उनको समय रहते बदल देना चाहिए। यही वजह है कि तीरथ सिंह रावत या फिर अब विजय रुपाणी, दोनों ऐसे चेहरे थे, जो चुनाव में भाजपा की सफलता की गारंटी नहीं बन पा रहे थे। इतना ही नहीं, पार्टी यह भी देख रही है कि बुजुर्ग नेताओं को युवा पीढ़ी पसंद नहीं कर रही है। इसीलिए बदलाव को टाला नहीं जाना चाहिए। ऊर्जावान और विजन रखने वाले नेताओं को आगे लाया जा रहा है। 

विजय रुपाणी मोदी और शाह की ही पसंद थे। उनको बदलने से साफ है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को लगने लगा था कि रुपाणी अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सफलता शायद ही दिला पाएं। वैसे भी पिछले विधानसभा चुनाव में रुपाणी ही गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उस समय भाजपा को जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आखिरी दिन तक चुनाव प्रचार में जुटे रहे थे, तब पार्टी कांग्रेस पर बढ़त बनाकर अपनी सत्ता बरकरार रख सकी थी। भाजपा की भावी रणनीति में अगला बड़ा मिशन 2024 का लोकसभा चुनाव है। पार्टी इसके लिए हर राज्य को तैयार कर रही है। चाहे वह उसकी सत्ता वाला राज्य हो या उसकी प्रभावी विपक्षी भूमिका वाला। कोरोना महामारी के जो दुष्परिणाम सामने आए हैं, उससे राज्य सरकारों को लेकर जनता की नाराजगी भी बढ़ी है। इससे भाजपा की सरकारें भी अछूती नहीं हैं। पार्टी की कोशिश है कि 2024 के पहले तक वह कोरोना से जुड़े विभिन्न कारकों के नकारात्मक प्रभाव को दूर कर जनता में विश्वास बहाल कर ले। इसलिए उसके लिए अगले लोकसभा चुनाव के पहले होने वाला हर विधानसभा चुनाव ज्यादा महत्वपूर्ण है। खासकर वहां, जहां उसकी सरकार है। एक भी सरकार का कम होना उसके लिए नकारात्मक स्थिति बना सकता है। इस क्रम में जल्दी ही उन राज्यों में भी बदलाव देखने को मिल सकता है, जहां भाजपा प्रभावी विपक्ष की भूमिका में है और सत्ता की प्रबल दावेदार है। वहां पर संगठन से लेकर विधायक दल के नेता तक में बदलाव की संभावनाएं देखी जा सकती हैं। भाजपा नेतृत्व द्वारा लिए जा रहे बदलाव के फैसलों से एक बात और साफ होती है कि जिन नेताओं की जमीन कमजोर है और संगठन पर भी ज्यादा प्रभाव नहीं है, उनको समय रहते बदल देना ही उचित है। नए नेतृत्व को सामने लाने की कवायद साफ तौर पर देखी जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में अपनी मंत्रिपरिषद का जो विस्तार किया किया था, उसमें नए चेहरों को तरजीह दी गई थी। इसके अलावा, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी अपनी जो केंद्रीय टीम बनाई है, उसमें भी नए लोगों को लाया गया है। मोदी और शाह की कार्यशैली में एक बात जो साफ होती है, वह है निरंतर बदलाव करते रहना। इससे पार्टी का संगठन गतिमान रहता है और लोगों को मौका भी मिलता है। यह बदलाव संगठन के स्तर पर पिछले सात साल में काफी देखा गया है। चाहे वह पार्टी का केंद्रीय संगठन हो या राज्यों का संगठन। किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए अपने भविष्य की चिंता कमजोरी नहीं है। भाजपा नेतृत्व लगातार इस बात पर नजर रखे हुए है कि उसके प्रति कितना विश्वास कायम है। समय-समय पर पार्टी अपने अंदरूनी सर्वे के जरिए जो जानकारी हासिल करती है, वह उसके फैसलों का आधार बनती है। इस समय गुजरात का बदलाव राजनीतिक दृष्टि से भी भाजपा के लिए काफी मायने रखता है, क्योंकि इस राज्य में अभी तक केवल दो ही मुख्यमंत्री ऐसे हुए हैं, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है, नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के माधव सिंह सोलंकी। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि दोनों ही नेता राज्य के चार-चार बार मुख्यमंत्री बने थे। गुजरात में राजनीतिक स्थिरता उतनी ज्यादा नहीं रही, जितनी अन्य कई राज्यों में देखने को मिलती है। ऐसे में, बदलाव के जरिये जमीनी मजबूती हासिल करना राजनीतिक मिशन का एक अहम अंग बन जाता है।

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