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Hindi News ओपिनियन नजरियागिरते रुपये को संभालने और मूल्यवान बनाने की चुनौती

गिरते रुपये को संभालने और मूल्यवान बनाने की चुनौती

डॉलर के मुकाबले रुपया जब सस्ता होता है, तब उसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। रुपये का गिरता मूल्य महंगाई लेकर आता है। बढ़ती कीमतों से मुद्रास्फीति में तेजी आ सकती है, जो पहले से ही ज्यादा है.....

गिरते रुपये को संभालने और मूल्यवान बनाने की चुनौती
ब्रजेश कुमार तिवारी, एसोशिएट प्रोफेसर, जेएनयूWed, 11 May 2022 09:16 PM
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किसी भी देश की अंतर्निहित ताकत उसकी मुद्रा के मूल्य से दिखाई जाती है। यदि उसकी मुद्रा अन्य मुद्राओं की तुलना में मजबूत है, तो देश को मजबूत माना जाता है। अमेरिकी डॉलर को वैश्विक मुद्रा का रुतबा हासिल है, यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर? रुपया 9 मई को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया था और एक डॉलर की कीमत 77.28 रुपये हो गई थी। साल की शुरुआत से ही रुपया डगमगा रहा है। रुपये में देखी गई यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है और रुपया अपने सार्वकालिक न्यूनतम स्तर पर है। आजादी के बाद से रुपया लगभग 20 गुना नीचे लुढ़का है, 1948 में एक डॉलर 4 रुपये में मिलता था। तब देश पर कोई कर्ज भी नहीं था। साल 1951 में जब पहली पंचवर्षीय योजना लागू हुई, तब सरकार ने विदेश से कर्ज लेना शुरू किया और फिर रुपये की कीमत भी लगातार कम होने लगी।

डॉलर के मुकाबले रुपया जब सस्ता होता है, तब उसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। रुपये का गिरता मूल्य महंगाई लेकर आता है। बढ़ती कीमतों से मुद्रास्फीति में तेजी आ सकती है, जो पहले से ही ज्यादा है। ऐसे में, आम आदमी की जिंदगी से लेकर कारोबारी और सरकार तक सब पर रुपये के मूल्य का असर पड़ेगा। रुपये के गिरने के पीछे ग्लोबल गतिविधियों में गिरावट, निवेशकों का सुरक्षित ग्लोबल बाजारों में पैसा लगाने का फैसला व वैश्विक राजनीति में बढ़ता तनाव प्रमुख कारण हैं। रुपये की कीमत पूरी तरह इसकी मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती है और आयात व निर्यात का भी सीधा असर होता है।
एक देश, जो निर्यात से अधिक आयात करता है, उसकी डॉलर की मांग अधिक होती है। जैसे, भारत निर्यात से ज्यादा आयात करता है। भारत कच्चे तेल के बड़े आयातकों में एक है और लगभग 80 प्रतिशत तेल का आयात करता है। निस्संदेह, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें रुपये के मूल्य में गिरावट का बड़ा कारण हैं। विदेशी निवेशकों द्वारा निवेश में कटौती करने से देश से डॉलर का ‘आउटफ्लो’ भी बढ़ गया है। अब विदेशी निवेशक अधिक सुरक्षित अमेरिकी डॉलर और बॉण्ड में निवेश कर रहे हैं। इससे डॉलर की आपूर्ति घट गई है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी लगातार कम होता जा रहा है, जो घटकर इस साल पहली बार 600 अरब डॉलर से नीचे पहुंच गया है।
हालांकि, केंद्र सरकार ने रुपये की गिरावट को थामने की हरसंभव कोशिश करने का भरोसा दिलाया है, लेकिन अब उसको ठोस और कड़े कदम उठाने होंगे। यदि सरकार तेल पर आश्रित अपनी अर्थव्यवस्था को बदलने की कोशिश करे, तो विदेशी मुद्रा भंडार का एक बहुत बड़ा हिस्सा हम आसानी से बचा सकते हैं और इसके लिए हम सभी को तेल के विकल्पों पर विचार करना चाहिए। रुपये की कीमत में गिरावट रोकने और विदेशी मुद्रा भंडार को समृद्ध बनाए रखने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे। सरकार को आयात नियंत्रित करने और निर्यात बढ़ाने की दिशा में भी रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना होगा। इसके लिए भूमि और श्रम कानूनों में सुधार करके एक सक्षम कारोबारी माहौल बनाया जा सकता है। 
ग्रांट थॉर्नटन की एक रिपोर्ट के अनुसार, हमारे पास ग्रामीण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े मौके हैं। तमाम संकेत यही हैं कि गांवों पर हमें ध्यान देना होगा। गांवों को बहुत हद तक आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास होने चाहिए। गांव जब अपनी जरूरत का सामान अपने स्तर पर जुटाने लगेंगे, तो अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। अब भी कृषि या कृषि ऋण या कृषि उद्यम लगाना और चलाना आसान नहीं है। आम किसानों तक कृषि विज्ञान की पहुंच अब भी नहीं हो पा रही है। गांवों के हिस्से वाले बजट में सरकारों को कोई कटौती नहीं करनी चाहिए। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में इतनी ताकत है कि वह देश की अर्थव्यवस्था को सशक्त कर सके। 
साथ ही, यदि हम स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना शुरू कर दें, तो विदेशी वस्तुओं को आयात करने का खर्च बच जाएगा। सरकार को एफडीआई भी बढ़ाने पर जोर देना होगा, जैसे-जैसे एफडीआई की आमद बढ़ेगी, रुपये का मूल्य बढ़ेगा। भारत को 2025 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए कम से कम 2.5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात करने की आवश्यकता है, क्योंकि अभी कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में निर्यात का योगदान लगभग 25 प्रतिशत है। निर्यात बढ़ाकर ही हम रुपये और देश का मूल्य बढ़ा सकेंगे। अच्छी बात है कि विगत दिनों से निर्यात बढ़ रहा है, लेकिन इसमें और तेजी लाने की जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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