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सदा के लिए बदलती पर्यटन और सत्कार की दुनिया

अब पर्यटन कोविड-19 से पहले की तरह कतई नहीं होगा। अपने इन शब्दों पर जोर देते हुए अमेरिकी उद्यमी और औद्योगिक डिजाइनर ब्रायन चेसकी आगे कहते हैं, कुछ महीने ऐसे होते हैं, जिनमें दशकों के बदलाव हो जाते...

सदा के लिए बदलती पर्यटन और सत्कार की दुनिया
जसप्रीत बिंद्रा, सह-संस्थापक, अनक्यूबीFri, 10 Jul 2020 11:07 PM
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अब पर्यटन कोविड-19 से पहले की तरह कतई नहीं होगा। अपने इन शब्दों पर जोर देते हुए अमेरिकी उद्यमी और औद्योगिक डिजाइनर ब्रायन चेसकी आगे कहते हैं, कुछ महीने ऐसे होते हैं, जिनमें दशकों के बदलाव हो जाते हैं। चेसकी एयरबीएनबी के सह-संस्थापक और सीईओ हैं। सैन फ्रांसिस्को के अपने घर से वह ऑनलाइन मुखातिब थे। वाकई, शायद ही किसी अन्य उद्योग पर महामारी की इतनी मार पड़ी होगी, जितनी पर्यटन और सत्कार उद्योग पर। होटलों ने हर वक्त खुले रहने वाले अपने दरवाजों पर सांकलें चढ़ा दी हैं, जबकि रेस्तरां बंद कर दिए गए हैं और हवाई व ट्रेन सेवाएं भी सामान्य नहीं हो रही हैं। भारत में इस उद्योग पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन इन इंडियन टूरिज्म ऐंड हॉस्पिटैलिटी के मुताबिक, करीब 5.50 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले इस क्षेत्र में 70 फीसदी हाथ बेरोजगार हो सकते हैं। तो फिर, आतिथ्य उद्योग का भविष्य क्या है? और, कोरोना संक्रमण काल के वे कौन-से परिवर्तन हैं, जिन्हें ‘दशकों वाला बदलाव’ कहा जा रहा है? 

मेरा मानना है कि महामारी और लॉकडाउन ने कई उद्योगों का ‘व्यापक विकेंद्रीकरण’ किया है। आतिथ्य उद्योग भी अपवाद नहीं बनेगा। यह सही है कि यात्राएं करना मानव की नैसर्गिक आदत है, और यह बदलेगी नहीं, मगर उनके गंतव्य जरूर बदल सकते हैं। हम बड़े-बड़े होटलों में जाना शायद ही पसंद करेंगे, जो सैकड़ों पर्यटकों के बसेरे होते थे। इसकी बजाय हमारी प्राथमिकता छोटे-छोटे कॉटेज होंगे, जहां दूसरों से दूर हम सिर्फ अपने परिवार के साथ वक्त बिता सकेंगे। ये छोटे-छोटे होम स्टे, लॉज और सराय अनगिनत कमरों वाले होटलों की दर पर मिला करेंगे। इतना ही नहीं, बडे़ और भीड़-भाड़ वाले शहरों की बजाय हम छोटी-छोटी जगहों, खेत-खलिहानों, गांवों और खुले इलाकों वाले हिल स्टेशन को पसंद करेंगे। चूंकि यात्राएं अब तय क्षेत्रों से बाहर होंगी, इसलिए उसमें विकेंद्रीकरण होगा।

हालांकि, हॉस्पिटैलिटी या सत्कार उद्योग के लिए विकेंद्रीकरण उन पांच ‘एंटीबॉडी’ में से एक है, जिसके निर्माण की जरूरत इस उद्योग को अपना अस्तित्व बचाने व अगले बड़े संकट से लड़ने के लिए है। इसको कोरोना बाद की दुनिया के अनुकूल बनना ही होगा। अब तक लोग अनुभव हासिल करने के लिए पर्यटन करते रहे हैं। वे यात्राओं में खास-खास जगहों को महसूस भी करते हैं, मगर अब महसूस करने का यह चलन बदल जाएगा। लोग यथासंभव संपर्क-रहित, अलग-थलग और आत्म-नियंत्रित यात्रा पसंद करेंगे। वे आसपास के इलाकों में ही जाना चाहेंगे। जाहिर है, अब इस बिजनेस मॉडल पर पर्याप्त चिंतन करना होगा। रेस्तरां को खाने-पीने की ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जिसमें शारीरिक दूरी का पूरा ख्याल रखा जाएगा। उन्हें खाना परोसने के तौर-तरीके भी बदलने होंगे। बडे़-बडे़ होटल आलीशान होटलों की चेन बनाने की बजाय सोशल डिस्टेंसिंग संभव कर सकने वाले छोटे लॉज पर ध्यान दे सकते हैं। वैसे, लोगों के काम-काज की शैली में आए बदलाव से भी हॉस्पिटैलिटी के लिए उम्मीदें जग रही हैं। चूंकि काम अब ऑफिस में एक जगह बैठकर नहीं, बल्कि कई जगहों से हो रहा है और ‘वर्क फ्रॉम एनीवेयर’ (किसी भी स्थान से काम) का चलन बढ़ रहा है, इसलिए लोग महानगरों में घर से काम निपटाने की बजाय अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग समय में काम करना पसंद करेंगे।

आतिथ्य क्षेत्र को नई-नई प्रौद्योगिकी और ऑटोमेशन (ऑटोमेटिक मशीनों के इस्तेमाल) की तरफ भी तेजी से बढ़ना होगा। ऑनलाइन बुकिंग बढ़ेंगी, तो जाहिर तौर पर ऑनलाइन ‘चेक-इन’ भी लगभग अनिवार्य हो जाएगा। स्मार्टफोन के एप नए रिसेप्शनिस्ट और दरबान बन जाएंगे, क्योंकि वे हमें होटलों तक पहुंचाएंगे, चेक-इन की प्रक्रिया पूरी करेंगे और हमारे कमरों के दरवाजे खोलेंगे; और ये सभी काम संपर्क-रहित होंगे। इसी तरह, पेपर मैन्यू गायब हो जाएंगे और क्यूआर कोड उनकी जगह ले लेंगे। निस्संदेह, मानव यात्रा के बिना नहीं रह सकता। उसमें इसका बीज आनुवंशिक रूप से होता है। इसीलिए आगे भी हम पर्यटन करते रहेंगे, मगर यह रॉबर्ट फ्रॉस्ट की तरह होगा, जो अनजान राहों के हिमायती हैं। आतिथ्य उद्योग को भी ऐसा ही करना चाहिए। अब तक के चलन से इतर उसे कोई रास्ता ढूंढ़ना ही होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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