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भाजपा के मजबूत विकल्प की तलाश अब भी अधूरी

लोकसभा चुनाव में करीब एक साल का समय बचा है और अपराजेय लग रही भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प के सवाल पर मतदाता बंटे हुए हैं। हालिया ‘यूगॉव-मिंट-सीपीआर मिलेनियल सर्वे’ से पता चलता है कि खुद कांग्रेस...

भाजपा के मजबूत विकल्प की तलाश अब भी अधूरी
Amitesh Pandeyराहुल वर्मा, फेलो, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्चMon, 06 Mar 2023 11:18 PM
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लोकसभा चुनाव में करीब एक साल का समय बचा है और अपराजेय लग रही भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प के सवाल पर मतदाता बंटे हुए हैं। हालिया ‘यूगॉव-मिंट-सीपीआर मिलेनियल सर्वे’ से पता चलता है कि खुद कांग्रेस समर्थक भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं कि उनकी पार्टी शक्तिशाली विपक्ष की भूमिका निभा सकती है, क्योंकि भारत जोड़ो यात्रा से तस्वीर उतनी बदलती हुई नहीं दिख रही है। सर्वे में शामिल 9,698 शहरी भारतीयों में से करीब 28 फीसदी ने माना कि  भाजपा को टक्कर देने के लिए आम आदमी पार्टी जैसे एक नए राष्ट्रीय विकल्प की जरूरत है। छह महीने पहले किए गए इसी सर्वे में यह आंकड़ा 31 फीसदी था। इस बार 22 फीसदी लोगों ने कांग्रेस पर दांव लगाया, जबकि यह आंकड़ा पिछली बार 20 प्रतिशत था। लगभग 17 फीसदी लोगों ने क्षेत्रीय दलों में उम्मीद देखी है, हालांकि एक बड़ा हिस्सा उन तीन विकल्पों को लेकर आश्वस्त नहीं था, जिनके नाम सर्वे में थे। इस सर्वे में 207 शहरों के 9,698 लोगों ने भाग लिया था, जिनमें से 40 फीसदी ऐसे थे, जो 1996 के बाद पैदा हुए हैं और 40 फीसदी ऐसे, जिनका जन्म 1981 से 1996 के बीच हुआ है। 
पिछले सर्वे की तरह इस बार भी कांग्रेस का समर्थन करने वाले 10 में से चार लोगों ने अपनी पार्टी को व्यावहारिक विकल्प माना। हालांकि, उसकी तुलना में आप के समर्थक कहीं अधिक अपनी पार्टी पर भरोसा करते दिखे और उसके 62 फीसदी समर्थकों ने कहा कि भाजपा को चुनौती देने के लिए आप जैसे नए राष्ट्रीय विकल्प की दरकार है। पिछले सर्वेक्षण में आप पंजाब में मिली जीत के बाद राष्ट्रीय परिदृश्य पर एक मुकाम हासिल करती दिखी थी। मगर गुजरात चुनाव में वह भाजपा को मामूली नुकसान पहुंचा सकी, जबकि हिमाचल में बिल्कुल बेअसर साबित हुई। उसका यह ठहराव सर्वे में भी साफ दिख रहा है और पार्टी के समर्थन आधार में कोई वृद्धि नहीं हुई है। कुल मिलाकर, 40 फीसदी लोगों का समर्थन हासिल करके भाजपा सबसे पसंदीदा पार्टी बनी हुई है, तो कांग्रेस को 11 प्रतिशत और आप को छह फीसदी लोगों ने पसंद किया। 
इन सबके अलावा, आम आदमी पार्टी अब भी राष्ट्रीय स्तर की चुनावी लड़ाई के लिए तैयार नहीं दिख रही। सर्वे में शामिल 58 फीसदी लोगों ने माना कि जिन जिलों में वे रहते हैं, वहां पर इस पार्टी की संगठनात्मक उपस्थिति सीमित है। 53 फीसदी ने कहा कि भाजपा या वाम दलों के समान आप की भी अपनी कोई ठोस विचारधारा होनी चाहिए, जबकि बाकी के ख्याल से विचारधारा के मामले में इसका लचीला बना रहना ही मुनासिब है। आप के नेतृत्व को भी लोगों ने पसंद किया और 53 फीसदी मानते हैं कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी का विस्तार हुआ है, जबकि 47 फीसदी उनके आलोचक दिखे। 52 फीसदी का मानना था कि शासन और समाज कल्याण के कामों पर इस पार्टी ने सकारात्मक असर डाला है, जबकि 48 फीसदी ने इससे इनकार करते हुए कहा कि आप का मकसद रियायती व मुफ्त घोषणाओं के सहारे चुनाव जीतना रहा है। दक्षिण भारत के लोगों ने आम आदमी पार्टी पर कहीं ज्यादा भरोसा किया, जबकि वहां के 61 फीसदी लोग अपने क्षेत्र में पार्टी की सीमित मौजूदगी बता रहे थे। 
इस सर्वे में कांग्रेस इतनी भाग्यशाली नहीं दिखी और एक बड़े हिस्से ने पार्टी की मंशा, उसके नेतृत्व और भारत जोड़ो यात्रा पर सवाल उठाए। एक गैर नेहरू-गांधी (मल्लिकार्जुन खड़गे) को अध्यक्ष चुने जाने के बावजूद 53 फीसदी लोगों ने पार्टी को वंशवाद की परंपरा का वाहक माना, 52 फीसदी ने मीडिया कवरेज हासिल करने के लिए विक्टिम कार्ड खेलने की बात कही, 51 फीसदी लोगों ने राहुल गांधी को पार्टी को पुनर्जीवित करने में असमर्थ बताया और 52 फीसदी लोगों ने भारत जोड़ो यात्रा को ‘ब्रांड राहुल’ स्थापित करने की कवायद कही। जाहिर है, यह सर्वे बताता है कि भारतीय जनता पार्टी के विकल्प के रूप में लोगों की अब भी कोई एक राय नहीं है। कांगे्रस में राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर संशय बना हुआ है, तो आप की राजनीति पर लोगों की सोच बंटी हुई है। इन दोनों दलों के पास अपनी किस्मत बदलने के लिए अब सिर्फ एक साल का समय बचा है।
(साथ में मेल्विन कुंजुमॉन)  

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