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Hindi News ओपिनियन नजरियाहमारे पास सबसे ज्यादा दूध, पर उसमें कितना शुद्ध

हमारे पास सबसे ज्यादा दूध, पर उसमें कितना शुद्ध

देश-दुनिया में इन दिनों व्यापक बहस छिड़ी हुई है। दूध और दूध से बने उत्पादों को ए-1 और ए-2 में बांटकर भ्रम की स्थिति पैदा कर दी गई है। छोटे-छोटे शोधों की आड़ लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं...

हमारे पास सबसे ज्यादा दूध, पर उसमें कितना शुद्ध
Pankaj Tomarअरविंद जैन, वरिष्ठ चिकित्सक, आगराThu, 05 Sep 2024 11:27 PM
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देश-दुनिया में इन दिनों व्यापक बहस छिड़ी हुई है। दूध और दूध से बने उत्पादों को ए-1 और ए-2 में बांटकर भ्रम की स्थिति पैदा कर दी गई है। छोटे-छोटे शोधों की आड़ लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) भी इससे अनभिज्ञ नहीं है। फिलहाल, ए-2 दूध की ब्रांडिंग पर लगाई गई रोक को वापस ले लिया गया। कहा गया है कि इस मुद्दे पर डेयरी उद्योग के कारोबारियों और हितधारकों से चर्चा उपरांत फैसला लिया जाएगा।
आखिर यह फैसला वापस क्यों लिया गया? इसके पीछे व्यापारिक हित हैं या जनहित? ऐसे कई सवाल, खासकर उन लोगों के जेहन में अधिक उमड़-घुमड़ रहे हैं, जिनकी सुबह और रात दूध के साथ होती है। ध्यान रहे कि गाय के दूध में कैसीन और व्हे प्रोटीन पाया जाता है। प्रोटीन में भी 25 से 35 फीसदी, अर्थात एक तिहाई बीटा कैसीन प्रोटीन होता है। बीटा कैसीन की दो प्रमुख कड़ियां क्रमश: ए-1 व ए-2 हैं। ए-2 की एमिनो एसिड कड़ी के 67वें स्थान पर प्रोलीन, तो ए-1 में प्रोलीन के स्थान पर हिस्टिडीन (विषाक्त) होता है। ए-1 की कमजोर कड़ी पाचन के समय टूटकर विषाक्त प्रोटीन बीटा कैसोमार्फीन बनाती है। 
क्या वाकई ए-1 दूध के सेवन से डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग होते हैं? इस पर विदेशों में शोध का आकार काफी छोटा या खरगोश जैसे जानवरों तक केंद्रित रहा है। भारत को केंद्र में रखकर किया गया कोई प्रामाणिक शोध दिखाई नहीं पड़ता है। वास्तव में, ए-1 बीमारी नहीं, बल्कि बीमारी की आशंका बढ़ा सकता है। सही मात्रा में दूध का सेवन शरीर के लिए जरूरी 50 फीसदी पोषक तत्वों की पूर्ति कर सकता है। स्वस्थ व्यक्ति के लिए 240 मिलीलीटर दूध पर्याप्त है। इसकी अधिकता आपके शरीर में कई बीमारियों की नींव डाल सकती है।
भारतीय परिवारों में गाय के साथ-साथ भैंस, बकरी और ऊंटनी के दूध का इस्तेमाल किया जाता है। यह सभी ए-2 श्रेणी में आते हैं। आयुर्वेद में गाय के दूध को बुद्धि, आयु, स्वास्थ्य व सौंदर्यवर्द्धक बताया गया है, तो भैंस के दूध को गरिष्ठ, वातकारक और कब्जधारक। चरक संहिता के सूत्र 27/217 में गाय के दूध में दस गुण बताए गए हैं, स्वादिष्ट, शीतल, कोमल, चिकना, गाढ़ा, लसदार, भारी और बाहरी प्रभाव को विलंब से ग्रहण करने वाला तथा मन को प्रसन्न करने वाला। राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल बता चुका है कि भारत की 98 फीसदी से अधिक गायों का दूध ए-2 श्रेणी का है।
अभी भारत  सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, पर शुद्ध दूध की उपलब्धता दिनोंदिन कम हो रही है। मुनाफे के लिए दूध में घातक यूरिया, शव लेपन के काम आने वाला फॉर्मेलिन, डिटर्जेंट, अमोनियम सल्फेट, बोरिक एसिड, कास्टिक सोडा, बेंजोइक एसिड, सैलिसिलिक एसिड, हाइड्रोजन पेरोक्साइड, शर्करा, मेलामाइन जैसे तत्वों-रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है। इनका लगातार इस्तेमाल ही हृदय संबंधी समस्याओं के साथ लोगों को कैंसर तक लेकर जा रहा है। मोटापा, खाद्य विषाक्तता, दुर्बलता, जठरांत्र संबंधी जटिलताएं आम हैं। ए-1 और ए-2 में उलझने के बजाय हमें मिलावटी दूध को सख्त कानूनों के साथ नियंत्रित करना होगा।
पिछले चालीस सालों में कुछ नहीं बदला है। मुनाफाखोरी ने मिलावट का एक बड़ा बाजार विकसित किया है। हवा-पानी, दूध-भोजन कुछ भी शुद्ध नहीं रहा। दूध और दूध से बने उत्पाद ही नहीं, विभिन्न प्रकार के मसालों, खाद्य पदार्थों, फल-सब्जियों की चमक-दमक घातक है। सुबह से शाम तक हमारे शरीर में घातक रसायनों का प्रवाह अनायास हो रहा है। 
हमारे देश की पहचान आज ‘डायबिटीज कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड’ के तौर पर है, तो आने वाले समय में इसे ‘कैंसर कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड’ के तौर पर जाना जाएगा। हृदय रोगियों की तेजी से बढ़ती संख्या भी चौंकाती है। पित्त की थैली के कैंसर के साथ पथरी, फेफड़े, लीवर, आंत में गंभीर संक्रमण के पीछे मिलावटी खानपान एक बड़ा कारण है। मिलावट में स्थानीय दुकानदार ही नहीं, ब्रांडेड कंपनियां तक शरीक हैं। मिलावटखोरों से समाज मिलकर ही लड़ सकता है। यदि ऐसा न हुआ, तो चुप्पी की सजा हमारी आने वाली पीढ़ियों को भुगतनी पड़ेगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)