5जी की दौड़ में हम अभी ज्यादा पिछड़े नहीं हैं
चीनी सीमा पर गलवान की घटना के बाद भारत ने उस तकनीकी खतरे को भी पहचानना है, जिसमें चीन महारत हासिल कर विश्व लीडर बनने के कगार पर है। एक खतरा 5जी यानी ऐसी तकनीक है, जो सैन्य व नागरिक मोर्चे पर...
चीनी सीमा पर गलवान की घटना के बाद भारत ने उस तकनीकी खतरे को भी पहचानना है, जिसमें चीन महारत हासिल कर विश्व लीडर बनने के कगार पर है। एक खतरा 5जी यानी ऐसी तकनीक है, जो सैन्य व नागरिक मोर्चे पर क्रांतिकार फुर्ती व परिवर्तन लाएगी। इससे चीन की साइबर हैकिंग क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी। अक्तूबर 2020 में मुंबई पावर ब्रेकडाउन साइबर हमले का एक उदाहरण बताया गया है। इसके अलावा विकिलीक्स के खुलासों से पता लगता है कि साइबर हैकिंग करने वाला स्रोत हैकिंग के प्रमाण भी मिटा सकता है। भारतीय सैन्य विशेषज्ञ चीन की 5जी तैयारियों से चिंतित हैं और इसे युद्ध की घेराबंदी के समान बता रहे है। सीपीईसी का निर्माण कर चीन पाकिस्तान को घेर चुका है। वह दिन दूर नहीं, जब 5जी विहीन देश चीन से घिरा हुआ व उस पर निर्भर महसूस करेंगे। दशकों से भारत आईटी मोर्चे पर अग्रणी रहा है, परंतु 4जी के बाद भारत तकनीक में कुछ पिछड़ गया। याद करिए, जब पश्चिमी देशों में अंतरराष्ट्रीय कॉल सेंटर और आउटसोर्सिंग का चलन हुआ, तब भारतीय इंजीनियर महारत हासिल कर अमेरिका, यूरोप से प्राप्त काम-काज घर बैठे करने लगे थे। फिर पता लगा, हम मात्र छोटे-मोटे कामकाज में लगे पड़े हैं, बड़े तकनीक - हाई एंड जॉब्स और हार्डवेयर में पिछड़ गए हैं। हार्डवेयर का पिछड़ापन अभी तक बना हुआ है। टेलीकॉम उपकरण, कंप्यूटर्स, लैपटॉप यहां तक कि मोबाइल फोन के निर्माण में हमारा योगदान कहीं नहीं गीना जाता। भारत के 70 करोड़ लोग इंटरनेट पर है, परंतु यहां के तीन चौथाई मोबाइल फोन चीनी कंपनियां यहां बनाती है या आयात करती हैं। इसी तरह रक्षा क्षेत्र में अरबों डॉलर खर्च कर तकनीक व उपकरण आयात किया जाता है। दूसरी ओर, राष्ट्रपति शी जिनपिंग हांगकांग से लगे 400 एकड़ ग्रेटर बे एरिया (जीबीए) में चल रही 5जी हुआवेई कंपनी की तैयारियों को देश के स्वर्णिम भविष्य की कुंजी मानते हैं। हुआवेई कंपनी पर अमेरिका और यूरोप के कड़े प्रतिबंधों के बावजूद और उत्तरी चीन के उच्च कोटि के विश्वविद्यालयों से बहुत दूर इस पार्क में शोध और विकास कार्य द्रुत गति से चल रहे हैं। चीनी राष्ट्रपति 7 करोड़ की जनसंख्या के इस क्षेत्र को सन फ्रांसिस्को-सिलिकॉन वैली और टोक्यो बे एरिया की तरह विकसित देखना चाहते हैं। एक खबर के अनुसार, यहां पर चीन के राष्ट्रीय औसत से दोगुना इन्वेस्ट किया जा रहा है, क्षेत्र के निर्यात आंकड़ों से यह दृष्टिगत भी है। स्थानीय सू़त्र का दावा है, हुआवेई कंपनी आधारित यह पहल चीन को डिजिटल क्षेत्र में बड़ी ऊंचाइयों पर ले जाएगी।
विचार करें, तो भारत ज्यादा नहीं पिछड़ा है। तीन बड़ी आईटी कंपनियां- नोकिया, जिओ और एयरटेल 5जी की दौड़ में भाग ले रही हैं। इंवेस्टोपीडिया ने 24 फरवरी 2021 के संस्करण में बताया कि एयरटेल और एक अमेरिकी कंपनी मिलकर 5जी कार्य में तेजी लाएंगे। एयरटेल ने अपनी तकनीकी क्षमता के बूते हैदराबाद में व्यापारिक नेटवर्क पर 5जी संचारण का प्रदर्शन किया। दोनों मिलकर ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क के साथ-साथ फिक्स्ड वायरलेस एक्सेस (एफडब्ल्यूए) भी उपलब्ध कराएंगे, जिससे घर व व्यापार में गीगाबाइट स्पीड मिल सके। फिर यह स्पीड वायरलेस से मिलेगी, जिससे नवाचार के नए आयाम स्थापित होंगे। रिलायन्स ने 5जी को आत्मनिर्भरता के मूलमंत्र से जोड़ते हुए इस वर्ष के अंत तक नेटवर्क शुरू करने की घोषणा की। नेटवर्क हार्डवेयर और सभी उपकरण भारत में ही बनेंगे। नतीजतन, भारतीय सैन्य विशेषज्ञ 5जी की इस प्रगति को देखकर कुछ आश्वस्त हुए हैं। 5जी आधारित इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) का सैन्य रणनीति और ऑपरेशन पर पूरा प्रभाव अभी तक स्थापित नहीं किया गया है। समय गुजरने के साथ नए परिणाम और नई खोज दिखाई देंगे। रणनीतिक महत्व के सिविल व सैन्य ठिकानों और उपकरणों को साइबर हमलों से बचाने के लिए अभेद्य दीवार बनानी होगी। प्राइवेट कंपनियों के साथ गठबंधन कर 5जी के विकास में कोई कमी न छोड़ी जाए और न ही इस क्षेत्र में निवेश हेतु धन की कमी आडे़ आए। भारतीय इंजीनियर और वैज्ञानिकों में अपार सामथ्र्य, समर्पण व योग्यता है। 21वीं शताब्दी टेक्नोलॉजी की शताब्दी बनने जा रही है। इसमें जो आगे बढ़ गया, वही विजेता होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)