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हिंदी न्यूज़ ओपिनियन नजरियाबजट के जरिये राहत देने और सुविधा बढ़ाने की कोशिश

बजट के जरिये राहत देने और सुविधा बढ़ाने की कोशिश

बातों-बातों में निर्मला सीतारमण बडे़ सुधार कर गई हैं और इसके लिए वह बधाई की पात्र हैं। सरकारों को नौकरियों का वादा करना है, तो उन्हें अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा और छोटे उद्योगों को कारगर बनाना...

बजट के जरिये राहत देने और सुविधा बढ़ाने की कोशिश
Pankaj Tomarमेहराज दुबे, वरिष्ठ पत्रकारThu, 02 Feb 2023 11:16 PM
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बातों-बातों में निर्मला सीतारमण बडे़ सुधार कर गई हैं और इसके लिए वह बधाई की पात्र हैं। सरकारों को नौकरियों का वादा करना है, तो उन्हें अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा और छोटे उद्योगों को कारगर बनाना होगा और नए साल का नरेंद्र मोदी सरकार का यह बजट ये दोनों काम करता दिखाई देता है।
हालांकि, युवा जनसंख्या और टैक्स देने वाले मध्य वर्ग को अगर अब भी शिकायत है, तो गलत नहीं है, क्योंकि साल में बीस लाख रुपये कमाने वाले, अपनी आय के प्रतिशत के तौर पर उतना ही टैक्स दे रहे हैं, जितना एक करोड़ रुपये तक कमाने वाला देगा। पंद्रह लाख से एक करोड़ रुपये तक की आय के बीच एक और स्लैब की मांग थी, जो पूरी नहीं हुई है। फिर भी यह एक बड़ा कदम है कि दस लाख का स्लैब अब पंद्रह लाख का हो गया, यानी दस लाख से ऊपर की आय पर तीस फीसदी टैक्स लग रहा था, जो अब पंद्रह लाख से ज्यादा की आय पर ही लगेगा।
साढ़े सात लाख रुपये तक की सालाना आय वाले करीब एक करोड़ करदाता करमुक्त हो गए हैं। इनको तमाम बीमा और टैक्स बचाने वाले आवास ऋण के झमेले से भी मुक्ति मिल गई है। पर बीमा और म्यूचुअल फंड कंपनियों को यह पंसद नहीं आया और न एलटीए, एचआरए पर टैक्स की छूट लेने वालों को यह भा रहा है। 
युवाओं के लिए इस बजट में सीधे नौकरियां बढ़ाने की घोषणा नहीं के बराबर है। एक सौ चालीस करोड़ लोगों के देश में कुछ हजार शिक्षकों की भर्ती की योजना गिनवाना पर्याप्त नहीं, पर ऐसा नहीं है कि रोजगार का इंतजाम नहीं किया गया। छोटे उद्योगों के लिए कम से कम तीन बड़ी घोषणाएं की गई हैं, जिनका अच्छा असर नौकरियों पर पड़ेगा। कौशल प्रशिक्षण को बढ़ावा दिया गया है। छोटी कंपनियों को सस्ते लोन देने के लिए दो लाख करोड़ रुपये रखे गए हैं और इस तरह के उद्योगों को अब तमाम सरकारी फॉर्म भरते वक्त सिर्फ एक पैन नंबर भरकर काम चलाने की आसानी दी गई है। जब एमएसएमई मतलब छोटे और मझोले उद्योग आसानी से काम कर सकेंगे और बंद होने से बच जाएंगे, तो नौकरियां जरूर मिलेंगी। इसी तरह, दस लाख करोड़ रुपये की पूंजी को नए काम में लगाने से नई नौकरियां पैदा होंगी। जब दुनिया भर में मंदी हो, ऐसे समय में भारत में साढ़े छह-सात फीसदी की विकास दर नौकरियां पैदा करने का भरोसा दिलाती है। 
छोटी कंपनियां करोना के वक्त से ही अधर में हैं। कई कारखाने खत्म हो गए और बहुत शोर भी नहीं हुआ। ऐसी कंपनियों को बचाने के लिए उन्हें सस्ता कर्ज तो देना ही है, उनके कागजी बोझ को कम करना भी जरूरी है। सीतारमण ने दावा किया है कि करीब 39,000 अनिवार्यताएं हटा दी गई हैं और 3,400 तरह की गलतियों को अपराध के दर्जे से हटा दिया है। यह इसलिए कि उद्यमी व्यवसाय पर फोकस कर सकें, वकीलों और अधिकारियों से दूर रहें। 
पहले ही 44 डी नाम की टैक्स स्कीम के तहत जो कंपनियां दो करोड़ रुपये से कम का कारोबार करती हैं, उन पर टैक्स बहुत कम लगता है और अब इस सीमा को बढ़ाकर तीन करोड़ कर दिया गया है। इसमें भी अगर आपका 95 फीसदी पैसा डिजिटल से आ रहा हो, तो सिर्फ छह फीसदी पैसे को आपकी आय मानकर उस पर टैक्स लगाया जाएगा। यह नियम खुद अपना कारोबार करने वालों के लिए भी काफी आसान है। इससे व्यवसाय में सुविधा बढ़ेगी।
वित्त मंत्री ने स्टार्टअप की बढ़ती लोकप्रियता को अपने भाषण में खूब भुनाया है। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत में ही एग्री स्टार्टअप की बात करके सबका ध्यान खींच लिया। खेती को डिजिटल से जोड़ने की गहन आवश्यकता है, इसके लिए युवाओं को स्टार्ट अप शुरू करने की प्रेरणा दी गई है। खेती-किसानी से जुड़े स्टार्टअप में निवेश के लिए एक विशेष स्टार्टअप फंड की घोषणा की गई है।
दरअसल, भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा कृषि योग्य भूमि है, लेकिन या तो खेती की लागत ज्यादा है या कई कारणों से फसल बर्बाद हो जाती है और पूरा पैसा वसूल नहीं हो पाता। अगर खेती को डिजिटल बनाने के लिए कुछ काम किया जाए और उस पर स्टार्टअप में निवेश भी मिलने लगे, तो संभावनाएं अपार हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)