तकनीकी व्यवहार में मारकोनी से बहुत बेहतर वैज्ञानिक बोस
साल 1901 के अंत में वैज्ञानिक गुग्लिल्मो मारकोनी ने एक महत्वाकांक्षी प्रयोग करने की ठानी। उस समय माना जाता था कि चूंकि विद्युत चुंबकीय तरंगें (जैसे प्रकाश) सीधी रेखाओं में यात्रा करती हैं...
साल 1901 के अंत में वैज्ञानिक गुग्लिल्मो मारकोनी ने एक महत्वाकांक्षी प्रयोग करने की ठानी। उस समय माना जाता था कि चूंकि विद्युत चुंबकीय तरंगें (जैसे प्रकाश) सीधी रेखाओं में यात्रा करती हैं, इसलिए रेडियो तरंगों का उपयोग बड़ी दूरी तक संदेश पहुंचाने के लिए नहीं किया जा सकता है। तब मारकोनी ने चुनौती स्वीकार की और इस प्रचलित मान्यता को गलत साबित करने में वह जुट गए। उन्होंने ब्रिटेन के कॉर्नवाल में एक विशाल (70 मीटर ऊंचा) शंकु एंटीना लगाया। अटलांटिक महासागर, 12 दिसंबर, 1901 को दोपहर 12:30 बजे, मारकोनी ने सिग्नल हिल के रिसीविंग स्टेशन पर (मोर्स कोड में ‘एस’ अक्षर के अनुरूप) अपने हेडफोन पर तीन हल्की, पर स्पष्ट ‘क्लिकें’ सुनीं। इसके साथ उन्होंने साबित कर दिया कि अटलांटिक महासागर के पार वायरलेस से संचार संभव है और ऐसा करके उन्होंने आधुनिक दूरसंचार क्रांति का आगाज कर दिया।
आज भले ही मारकोनी को रेडियो संचार के आविष्कारक के रूप में श्रेय दिया जाता है, पर मारकोनी का संदेश प्रसारित करने का प्रयोग भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के योगदान के बिना संभव न था। साल 1899 में ही बोस ने ‘आयरन-कर्करी-आयरन कोहेरर’ का आविष्कार कर लिया था। यह पहला उपकरण था, जो लगातार रेडियो फ्रीक्वेंसी संकेतों का पता लगाने में सक्षम था। गौर कीजिए, यह निरंतर सिग्नल प्रोसेसिंग क्षमता आज भी आधुनिक मोबाइल संचार उपकरणों की एक महत्वपूर्ण विशेषता बनी हुई है। ऐसा बड़ा आविष्कार करने के बावजूद जगदीश चंद्र बोस ने अपने आविष्कार को पेटेंट कराने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उनका मानना था कि किसी भी वैज्ञानिक ज्ञान का संसार में खुले तौर पर आदान-प्रदान होना चाहिए। बोस की इस परोपकारी सोच की वजह से ही मारकोनी एक सुसंगत डिजाइन को अपने सिग्नल हिल रिसीविंग स्टेशन में जोड़ने में सक्षम हुए थे। बोस से लाभ लेते हुए मारकोनी ने जो किया, वह अब इतिहास है।
मारकोनी ने लाभ तो लिया, पर बोस के योगदान को किसी रूप में मानने से इनकार कर दिया। और तो और, वह सुसंगत तकनीक उन्हें कहां से मिली, इसका जान-बूझकर उन्होंने विवरण स्पष्ट नहीं किया। जाहिर है, मारकोनी की सोच बोस से मेल नहीं खाती थी। मारकोनी का प्रयोग जैसे ही सफल हुआ, उन्होंने रेडियो संचार तकनीक के व्यावसायिक महत्व को समझ लिया। उन्होंने न सिर्फअपने आविष्कार पर सभी पेटेंट अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए बहुत कष्ट उठाया, बल्कि उन्होंने अपने अधिकारों की आक्रामकता के साथ रक्षा भी की।
मारकोनी ने अपने उपकरणों को बेचने से इनकार कर दिया और इस बात पर जोर दिया कि उनके ग्राहक उनसे उपकरण खरीदने के बजाय पट्टे पर लें। मारकोनी ने यही कोशिश की कि रेडियो बाजार में केवल उनका एकाधिकार रहे, किसी भी अन्य कंपनी को अपने उपकरण स्थापित करने का मौका न मिले। मारकोनी के लिए इस बात का कोई महत्व नहीं था कि उनका व्यावसायिक व्यवहार रेडियो प्रौद्योगिकी क्षेत्र में व्यापक वैज्ञानिक अनुसंधान में बाधक बनेगा। इसका नुकसान यह हुआ कि रेडियो प्रौद्योगिकी में नवाचार थम गया। लगभग 1912 तक एक तरह की तकनीक का ही इस्तेमाल होता रहा। ध्यान दीजिए, हमेशा नवाचारों पर ही आविष्कार निर्भर करते हैं। वैज्ञानिक तरक्की तभी होती है, जब वैज्ञानिक सहयोग का स्वतंत्र परिवेश होता है, बौद्धिक संपदा कानून ज्यादा बाधक नहीं बनता है।
हाल के दिनों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के संदर्भ में खुले नवाचार की चर्चा ने फिर जोर पकड़ लिया है। आज उपयोग के लिए उपलब्ध अधिकांश बडे़ कंप्यूटर लैंग्वेज मॉडल पर कंपनियों का कब्जा है। अग्रणी एआई कंपनियां व उनके निवेशक इस विचार का बचाव करते हुए दावा करते हैं कि एआई एक खतरनाक तकनीक है, जिसे नियंत्रित करने की जरूरत है। हो सकता है, इसमें कुछ सच्चाई हो, पर यह सोच स्वार्थपूर्ण है। इन कंपनियों को खुशफहमी है कि ऐसे ज्ञान को सिर्फवे ही संरक्षित रखकर दुनिया को खतरे से बचा सकती हैं। इतिहास गवाह है, नई प्रौद्योगिकियों वआविष्कारों तक लोगों की पहुंच सीमित करने से कोई फायदा नहीं होता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)