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उदाहरण बन सकती है नौकरशाही की यह सफाई

सरकार ने भ्रष्टाचार और यौन शोषण वगैरह के आरोपों वाले एक साथ एक दर्जन उच्चाधिकारियों को जबरन सेवामुक्त करके सनसनी पैदा कर दी है। साथ ही यह संदेश भी दे दिया है कि सरकार अब किसी भ्रष्ट आचरण को सहन करने...

उदाहरण बन सकती है नौकरशाही की यह सफाई
अवधेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकारFri, 14 Jun 2019 01:13 AM
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सरकार ने भ्रष्टाचार और यौन शोषण वगैरह के आरोपों वाले एक साथ एक दर्जन उच्चाधिकारियों को जबरन सेवामुक्त करके सनसनी पैदा कर दी है। साथ ही यह संदेश भी दे दिया है कि सरकार अब किसी भ्रष्ट आचरण को सहन करने के लिए तैयार नहीं है और नियम के तहत जो भी संभव होगा, कदम उठाए जाएंगे। यह बड़ा कदम इसलिए भी है, क्योंकि इसमें मुख्य आयुक्त, प्रधान आयुक्त, आयुक्त और संयुक्त आयुक्त स्तर के अधिकारी शामिल हैं। वैसे केंद्र सरकार के पास ऐसे अधिकारियों के खिलाफ सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) रूल्स के नियम 56 के तहत कार्रवाई का अधिकार है। हालांकि इसका उपयोग कहां-कहां और कब किया जा सकता है, इसके बारे में थोड़ी अस्पष्टता है। सामान्यत: नियम 56 का इस्तेमाल ऐसे अधिकारियों पर किया जा सकता है, जो 50 से 55 साल की उम्र के हों और 30 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हों। ऐसे अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा सकती है। यह बात अलग है कि व्यवहार में यह नियम किताबों में ही सिमटा रहा है और नौकरशाही अपनी नौकरी को लेकर निश्चिंतता की अवस्था में रहती है।  

एक तरह से यह काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार के समय ही शुरू हो गया था। सरकार ने संतोषजनक काम न करने वाले अफसरशाहों को समय से पहले सेवानिवृत्त करने का कदम तब भी उठाया था। जब 17 जनवरी, 2017 को सरकार ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों 1992 बैच के राजकुमार देवनगन (छत्तीसगढ़ कैडर) और 1998 बैच के मयंकशील चौहान (एजीएमयू कैडर) को जबरन सेवानिवृत्ति दी, तो सुर्खियां बनी थीं। हालांकि उस समय उनके सेवानिवृत्ति आदेश में कहा गया कि इन्हें पेंशन पूरी मिलेगी। फैसले के एवज में उन्हें तीन महीने की पूरी तनख्वाह भी दी गई थी। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं थे, लेकिन प्रदर्शन में वे मान्य न्यूनतम रेखा से काफी पीछे रह गए थे। इसके पहले दिसंबर 2015 में एक प्रश्न के जवाब में कार्मिक राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में कहा था कि अपनी जिम्मेदारी ठीक से न निभाने के कारण 13 नौकरशाहों  को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई है। अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत 45 अधिकारियों की पेंशन में कटौती का आदेश भी जारी किया गया था। इसके बाद मई 2016 में सरकार ने एक साथ 72 राजस्व अधिकारियों की बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया। इसी कड़ी में 33 राजस्व अधिकारियों को समय से पहले रिटायर कर दिया गया। पूर्व वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा से जब इतनी भारी संख्या में अधिकारियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाइयों पर पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि यह विभाग की सफाई हो रही है। 

इस तरह करीब सवा दो सौ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। सामान्यत: माना जाता है कि कुछ बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई करने से भय पैदा होगा और बाकी अपने-आप सुधर जाएंगे। जब आप सचिव से लेकर मुख्य आयुक्त तक को घेरे में लेते हैं, तो नीचे के अधिकारियों-कर्मचारियों पर इसका मनोवैज्ञानिक असर होना ही चाहिए। लेकिन हमारी नौकरशाही में नीचे से ऊपर तक ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है, जो काम की मनमानी और भ्रष्टाचार को भी अपने अधिकार में शामिल मानते हैं। अगर भ्रष्टाचार में कोई पकड़ा गया, तो ज्यादा से ज्यादा उसका निलंबन होता है, विभागीय कार्रवाई शुरू होती है। विभाग में उसके समर्थक अधिकारी भी होते हैं। नौकरशाहों का एक-दूसरे से किसी न किसी तरह का सूत्र जुड़ा होता है। इसका लाभ उठाते हुए वे बचते रहते हैं। नियम कानून भी इन्हीं के बनाए हुए हैं और उसमें बचने के रास्ते भी इन्हें मालूम हैं। कुल मिलाकर, बहुत कम अधिकारी अपने अपराध के अनुरूप उचित दंड पाते हैं। जिन आयकर अधिकारियों को अभी सेवानिवृत्ति दी गई है, उनमें एक सज्जन ऐसे हैं, जिन्हें नाकारापन के चलते सेवानिवृत्त किया गया है। किंतु ज्यादातर पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। एक अधिकारी पर महिला अधिकारियों के यौन शोषण का आरोप है। ऐसे अधिकारी भी यदि नौकरी से हटाए नहीं जा सकते, तो इसी से समझना चाहिए कि हमारा पूरा तंत्र किस अवस्था का शिकार है। इसमें रास्ता एक ही बचता है कि सरकार साहस करके इनको सेवानिवृत्ति दे दे। यही इस समय किया जा रहा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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