जलवायु परिवर्तन से जमीन को बचाने की चुनौती
जलवायु परिवर्तन के कई खतरों को हम रोज महसूस करते हैं। कुछ खतरे ऐसे भी हैं, जो प्रत्यक्ष नजर नहीं आते हैं, लेकिन वे भयावह रूप धारण कर सकते हैं। ऐसा ही एक खतरा है भूमि के बंजर होने का। बेमौसम बारिश,...
जलवायु परिवर्तन के कई खतरों को हम रोज महसूस करते हैं। कुछ खतरे ऐसे भी हैं, जो प्रत्यक्ष नजर नहीं आते हैं, लेकिन वे भयावह रूप धारण कर सकते हैं। ऐसा ही एक खतरा है भूमि के बंजर होने का। बेमौसम बारिश, लगातार सूखा, रेतीली हवाओं का प्रवाह बढ़ने, रसायनों की अधिकता से जमीन में बढ़ते खारेपन आदि कारणों से जमीन बंजर होने लगी है। हाल के अध्ययन बताते हैं कि भारत समेत पूरी दुनिया में बंजर जमीन का प्रतिशत तेजी से बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन के अन्य खतरों के साथ-साथ इस मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया है। संयुक्त राष्ट्र तो बंजर भूमि के मुद्दे पर जल्द ही भारत में एक अंतरराष्ट्रीय बैठक आयोजित करने जा रहा है। अभी तक देश की 32.8 करोड़ हेक्टेयर भूमि में से 9.6 करोड़ हेक्टेयर जमीन बंजर भूमि है, जिसका दायरा लगातार बढ़ रहा है। अध्ययन बताते हैं कि यदि इसे नहीं रोका गया, तो अगले 10 साल में भारत में दो करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन घट सकता है। खाद्यान्न की कीमतें अतिरिक्त 30 फीसदी बढ़ सकती हैं।
स्टेट ऑफ इंडिया एनवायर्नमेंट रिपोर्ट 2017 में इसके कारणों की भी पड़ताल की गई है। इसके अनुसार, देश में करीब 30 फीसदी जमीन बंजर हो चुकी है। आठ राज्यों राजस्थान, दिल्ली, नगालैंड, त्रिपुरा, गोवा, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और झारखंड में 40-70 फीसदी भूमि के बंजर होने का अनुमान है। बंजर होने का मतलब है कि उसमें कृषि या वानिकी संबंधी गतिविधियों का न हो पाना। यह चिंताजनक इसलिए भी है कि विश्व में बंजर भूमि का औसत 24 फीसदी है। यानी भारत पहले ही इस औसत को पार कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत समेत विश्व में सबसे ज्यादा शुष्क भूमि तेजी से बंजर हो रही है। सिंचित भूमि भी खराब हो रही है। लेकिन शुष्क भूमि पर खतरा ज्यादा है। दुनिया में करीब 41 फीसदी शुष्क भूमि है। इसका साढ़े पांच फीसदी भाग पहले से ही घोषित मरुस्थल है। लेकिन 34 फीसदी में कृषि गतिविधियां होती हैं, जिस पर करीब चार अरब लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर हैं। यानी विश्व की 90 फीसदी शुष्क भूमि विकासशील देशों में है। भारत में भी इसका एक बड़ा हिस्सा है।
इसके कारण कई बताए जा रहे हैं। पहला कारण है, बारिश नहीं होना और लगातार सूखा पड़ना। इससे धीरे-धीरे लोग उस पर खेती करना छोड़ देते हैं और एक समय बाद वह भूमि बंजर हो जाती है। दूसरा कारण है- अत्यधिक बारिश से भूमि की ऊपरी परत के काफी कटाव होने की वजह से उसका बेकार हो जाना। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण जहां एक तरफ सूखा पड़ता है, वहीं कई जगह जरूरत से ज्यादा बारिश होती है और वह भी कुछ ही अंतराल में। इससे जमीन का कटाव बढ़ रहा है। तीसरा कारण है, धूल भरी हवाओं से भूमि का बर्बाद होना। यह देखा गया है कि रेगिस्तानी इलाकों से उठने वाली रेतीली हवाएं कई किलोमीटर दूर तक जमीन में फैल जाती हैं, जिससे धीरे-धीरे जमीन खेती के योग्य नहीं रह जाती। इसके अलावा ज्यादा गरमी बढ़ने या ज्यादा ठंड बढ़ने से भी कई क्षेत्रों से वनस्पतियां लुप्त हो रही हैं। कई जगह मानव गतिविधियों के कारण भी जमीन बंजर हो रही है। खासकर बढ़ते शहरीकरण और तमाम तरह की विकास परियोजनाओं के चलते भी देश के कई हिस्सों में भूमि लगातार बंजर हो रही है। लेकिन पूरे देश में ऐसी भूमि सिर्फ एक फीसदी के करीब है, बाकी 29 फीसदी जमीन के बंजर होने की वजह जलवायु से जुड़ी है।
इस मसले पर होने वाली संयुक्त राष्ट्र की बैठक में नई रणनीति पर चर्चा होने की उम्मीद है, ताकि कोई रास्ता निकले। लेकिन भारत की तरफ से बॉन चैलेंज के प्रभावी क्रियान्वयन पर जोर दिए जाने की संभावना है। दरअसल, बॉन चैलेंज के तहत 2020 तक वनों के कटने के कारण 15 करोड़ हेक्टेयर जमीन को फिर से उपयोगी बनाना है। इस दिशा में भारत पहले ही हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा नगालैंड में एक पायलट प्रोजक्ट शुरू कर चुका है। इसके अलावा मृदा स्वास्थ्य कार्ड, फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना आदि भी इस दिशा में कुछ हद तक कारगर होते दिख रहे हैं। इसी प्रकार, कई देशों ने इस समस्या से निपटने के लिए अपने-अपने देशों में प्रयास किए हैं, जिनका आदान-प्रदान इस दौरान होगा।