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क्या समाज तैयार है ओल्ड एज होम के लिए

एक वरिष्ठ पत्रकार के बारे में कुछ दिनों पहले पता किया, तो बताया गया कि वह एक ओल्ड एज होम यानी वृद्ध आश्रम में हैं। वजह उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। करीब अस्सी साल के एक वकील साहब का अपने ही घर...

क्या समाज तैयार है ओल्ड एज होम के लिए
अंबरीश कुमार, वरिष्ठ पत्रकारTue, 18 Feb 2020 10:17 PM
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एक वरिष्ठ पत्रकार के बारे में कुछ दिनों पहले पता किया, तो बताया गया कि वह एक ओल्ड एज होम यानी वृद्ध आश्रम में हैं। वजह उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। करीब अस्सी साल के एक वकील साहब का अपने ही घर वालों से विवाद हो गया। उनके घर वालों ने शहर के घर से उन्हें बेदखल कर दिया। वह अब एक ओल्ड एज होम में रहते हैं। उनसे बात हुई, तो बोले कि वह किराए के घर में भी रह सकते थे, लेकिन कौन खाना बनाता, कौन उनकी दवा समय पर देता, इसलिए वह ओल्ड एज होम चले गए। संयुक्त परिवार अब रहे नहीं, एक बेटे या बेटी वाले लोग ज्यादा हैं। बेटा या बेटी विदेश चले गए, तो माता-पिता की देखभाल कौन करे? बड़े महानगरों में छोटे-छोटे फ्लैट में माता-पिता को रखना भी छोटी समस्या नहीं है। खासकर तीन-चार मंजिला भवन में, जिसमें लिफ्ट नहीं होती। बुजुर्ग माता-पिता को कोई कैसे रोज ऊपर से नीचे लाए? वे जब नौकरी पर घर से बाहर हों, तो कौन उन्हें खाना-पानी दे, दवा दे। यह एक नई तरह की समस्या है, खासकर छोटे परिवारों के लिए। 

सुरक्षा का मुद्दा अलग है। लोग बड़ी-बड़ी कोठियों में अकेले रहने से डरने लगे हैं। लूटपाट के मामलों में बुजुर्ग ज्यादा निशाने पर रहते हैं। कई बार तो नौकर ही इन्हें निशाना बना देते हैं। ऐसे में ओल्ड एज होम ही अंतिम सहारा बचता है। मेरे एक मित्र अमेरिका गए, तो उन्हें माता-पिता को वहां ले जाने का वीजा नहीं मिला। मजबूरी में बुजुर्ग माता-पिता ओल्ड एज होम चले गए। वे गुजर भी गए, पर बेटा समय पर नहीं पहुंचा। अंतिम संस्कार भी ओल्ड एज होम वालों ने किया। पर क्या ओल्ड एज होम में रहने वाले बुजुर्ग मानसिक रूप से सामान्य रह पाते हैं? कुछ अपवाद छोड़ दें, तो ओल्ड एज होम भी निजी नर्सिंग होम की तरह ही काम कर रहे हैं। अगर किसी के पास पैसा है, तो उसकी सुविधा अलग होगी और जिसके पास कम पैसा है, उसे न्यूनतम सुविधा मिलेगी। हो सकता है कि चार-छह लोगों की ऐसी डोरमेट्री में रहना पड़े, जिसमें बहुत कम जगह हो। एसी की जगह सिर्फ पंखा हो। टीवी भी न हो समाचार सुनने के लिए। 
फिर वे, जिनकी उम्र 70-75 से ज्यादा हो, खुद न चल पाते हों, उनकी समस्या ज्यादा होती है। उन्हें व्हील चेयर पर रोज आधा घंटा घुमाने वाला भी कोई चाहिए। फोन से बात कराने वाला भी कोई चाहिए। नर्स समय पर उनका डायपर बदले, यह भी जरूरी है। शारीरिक दिक्कतों के साथ बड़ी समस्या मानसिक होती है। अकेलापन काटता है और ज्यादातर बुजुर्ग अवसाद के शिकार हो जाते हैं। ऐसे में, ओल्ड एज होम को लेकर नए सिरे से सोचने की जरूरत है। कई शहरों में तो पांच सितारा किस्म के ओल्ड एज होम भी बन गए हैं, लेकिन वे सबकी पहुंच से बाहर हैं। 

फिर अस्पताल या नर्सिंग होम का माहौल कभी घर का विकल्प हो भी नहीं सकता। बेहतर होगा कि समाज इस तरह के अच्छे आवासीय आश्रमों के बारे में नए सिरे से विचार करे। बल्कि यह भी सोचे कि आश्रम की बजाय घर जैसा माहौल कैसे मिले। फिर साझा भ्रमण का आयोजन करके अस्पताल की नीरसता भी तोड़ी जाए। लोगों को कुछ आजादी मिले, मनोरंजन का भी कुछ इंतजाम हो। पढ़ने-लिखने, बाग-बगीचे में टहलने की व्यवस्था हो, संगीत हो, खान-पान के बेहतर विकल्प भी हों। तब शायद ऐसे ओल्ड एज होम में रहने वालों का जीवन कुछ बेहतर हो सकता है। जिस तरह से कई इंजीनिर्यंरग कॉलेजों में मेस का इंतजाम स्वयं छात्र देखते हैं, वैसे ही इन वृद्ध आश्रमों का इंतजाम इनमें रहने वाले बुजुर्ग खुद देखें, तो बेहतर होगा। सरकार के स्तर पर भी ऐसे ओल्ड एज होम की निगरानी होनी चाहिए। अगर सरकार स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, जेल बनाती है, तो वह कुछ आदर्श ओल्ड एज होम भी बनाए। गैर सरकारी संस्थाएं भी यह जिम्मेदारी निभा सकती हैं, कुछ निभा भी रही हैं। जरूरत वृद्धाश्रमों को सामाजिक रूप से स्वीकार्य बनाने की भी है। ऐसा होने पर अकेले रहने वाले बुजुर्ग ओल्ड एज होम में जाने से नहीं हिचकेंगे। ओल्ड एज होम का मामला बुजुर्गों के लिए उनके जीवन की अंतिम वेला का इंतजाम नहीं है, बल्कि जिंदगी की सबसे उत्पादक उम्र पार कर चुके लोगों को एक सम्मानजनक जीवन देने की व्यवस्था है। वह भी उस समाज में, जहां वृद्धों के सम्मान की परंपरा रही है। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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