काल बनने लगे आवारा पशु और आदमखोर भेड़िए
सरकारी दावे के मुताबिक, आठ बच्चों समेत नौ लोग अब तक इन भेड़ियों के शिकार बन चुके हैं, जबकि इनके हमलों से तीन दर्जन से अधिक ग्रामीणों के बुरी तरह घायल होने की सूचना है।भेड़िए का मानव रक्त पीना ...
भेड़िए का मानव रक्त पीना पहेली जैसा है। वनों के आसपास के गांवों में भेड़ियों के हमले की छिटपुट घटनाएं पूर्व में भी कई बार सुनने में आईं, पर भेड़िए इतने खतरनाक और खूनी होते हैं, यह पहली बार लोगों ने जाना। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के बाशिंदे पिछले कुछ समय से आदमखोर भेड़ियों के चलते दहशत में हैं। करीब चार भेड़िए काफी मशक्कत के बाद पकड़े गए हैं। हालांकि, प्रशासन की ओर से कहा गया है कि सभी आदमखोर भेड़ियों को पकड़ लिया गया है, पर 30 अगस्त को तड़के एक भेड़िया फिर ग्रामीणों को दिखा। उसके बाद स्थानीय लोगों ने हंगामा काटना शुरू किया, तो मजबूरन प्रशासन को ‘ऑपरेशन भेड़िया’ फिर से तेज करना पड़ा है।
बहराइच के करीब 30-35 गांवों में पिछले करीब दो महीने से इंसानी खून के प्यासे कुछ भेड़ियों ने ऐसा आतंक मचाया है कि लोग अपने घरों में दुबकने को मजबूर हैं। सरकारी दावे के मुताबिक, आठ बच्चों समेत नौ लोग अब तक इन भेड़ियों के शिकार बन चुके हैं, जबकि तीन दर्जन से अधिक ग्रामीणों के उनके हमलों में घायल होने की सूचना है। इन ग्रामीण इलाकों के लोग पूरी-पूरी रात जागकर बिता रहे हैं, क्योंकि भेड़ियों के हमले अलग-अलग इलाकों में दर्ज किए गए हैं।
यह सचमुच चिंता की बात है। इन घटनाओं ने एक बार फिर हमारी प्राथमिकताओं की ओर ध्यान खींचा है। एक तरफ तो हम अंतरिक्ष अध्ययन के क्षेत्र में दुनिया के दिग्गज देशों को अपनी वैज्ञानिक प्रगति से पछाड़ रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर 40-42 किलो वजन के चंद हिंसक भेड़िए हमारी पकड़ में नहीं आ पा रहे। गौर कीजिए, इन आदमखोर भेड़ियों को काबू में करने के लिए गुजरात और मध्य प्रदेश से विशेषज्ञ बुलाए गए थे। उनकी दर्जन भर टीमों ने इन हिंसक जीवों को पकड़ने के लिए खूब खाक छानी। कहा जाता है कि भेड़िए कभी भी अकेले नहीं चलते, उन्हें झुंड में रहना या झुंड में शिकार करना पसंद है। फिर भी उनकी धर-पकड़ मुश्किल बनी हुई है। इन पर निर्णायक नियंत्रण के लिए अब शासन स्तर से थाइलैंड के विशेषज्ञों से संपर्क साधा गया है।
भारत में हिंसक जंगली जीवों के हमले का लंबा-चौड़ा इतिहास रहा है। हिन्दुस्तान के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग जानवर आतंक मचाते रहे हैं। जैसे, छत्तीसगढ़ में हाथियों के हमले में 2019 से 2023 के बीच 499 लोग मारे जा चुके हैं। तराई के इलाकों में आदमखोर शेरों ने पिछले चार वर्षों में 540 लोगों को अपना शिकार बनाया है। झारखंड में बागड़बिल्लों, असम में बाघों का आतंक हमेशा से रहता है। पहाड़ी इलाकों में खुराफाती बंदरों और मैदानी इलाकों में आवारा पशुओं के चलते भी सैकड़ों लोग हर साल अपनी जान गंवाते हैं। बीते तीन वर्षों में समूचे हिन्दुस्तान में जंगली जानवरों के हमलों और आवारा पशुओं के चलते करीब 4,800 लोगों की जान चली गई। यह आंकड़ा साल-दर-साल घटता-बढ़ता रहा है।
कुछ जंगली जानवरों के हमले के कारण होने वाले नुकसान की भरपायी के लिए राज्यों की हुकूमतों ने मुआवजा देने का प्रावधान किया है। उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में, यानी नेपाल से सटे इलाकों में शेरों के बढ़ते आक्रमण के बाद राज्य सरकार ने चार से पांच लाख रुपये बतौर मुआवजा देना आरंभ किया है, लेकिन कोई भी मुआवजा इंसानी जान का विकल्प नहीं हो सकता। इसलिए सरकार को इस समस्या के निदान के लिए कोई कारगर विधि अपनानी होगी।
घटनाएं चूंकि अब गंभीर रूप लेने लगी हैं और इनके कारण लोगों का दैनिक जीवन प्रभावित हो रहा है, इसलिए विज्ञान व आधुनिक तकनीक की मदद से इस पहेली को सुलझाने की जरूरत है। यह अध्ययन का विषय है कि आखिर ये भेड़िए इतने हिंसक क्यों हुए? क्या पर्यावरण में हो रहे बदलाव की वजह से भी इन जीवों का व्यवहार बदल रहा है? जाहिर है, जानवरों की बदलती प्रकृति के प्रति हमें संवेदनशील होना पड़ेगा। हमें इस सवाल का भी जवाब तलाशना होगा कि इनसे निपटने के क्रम में इनको मारने का पारिस्थितिकी तंत्र पर क्या असर पडे़गा? आवारा कुत्तों के आदमखोर बनने या पालतू कुत्तों के अचानक आक्रामक हो जाने की घटनाएं भी बढ़ने लगी हैं। इसलिए जानवरों की वजह से बढ़ते भय को कम करने के प्रयास अब जरूरी हो चले हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)