हर किसी तक कैसे पहुंचे अच्छी सेहत का बल
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व बैंक की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया की आधी आबादी की जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच ही नहीं है। संभवत: इसीलिए डब्ल्यूएचओ का ‘सार्वभौमिक...

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व बैंक की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया की आधी आबादी की जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच ही नहीं है। संभवत: इसीलिए डब्ल्यूएचओ का ‘सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज’ (यूएचसी) कार्यक्रम स्वास्थ्य को बुनियादी मानव अधिकार मानता है और सबके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करने को प्रतिबद्ध है। वैसे तो, पिछले सात दशकों में डब्ल्यूएचओ ने स्वस्थ दुनिया के निर्माण के लिए तमाम राष्ट्रों की नीति-निर्माण को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है, पर ‘सबके लिए स्वास्थ्य’ अब भी दूर का सपना जान पड़ता है। भारत की बात करें, तो यहां ‘मेडिकल केयर’ सेवाओं के भरोसे स्वास्थ्य तंत्र है। इनमें डॉक्टर, क्लीनिक, जांच-पड़ताल व अस्पताल शामिल हैं। यह स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं के ध्येय वाक्य के पूरी तरह से विपरीत है। महज दवाओं, इलाज, अस्पतालों व बीमा कवरेज से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की गारंटी नहीं मिल सकती। आज जब 70 फीसदी आबादी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अपनी जेब से खर्च करती है, जिसके कारण उनको मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, तब सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी और स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर नजरिये में बदलाव लाना आवश्यक है।
इस बाबत केंद्र सरकार ने दो अभिनव कार्यक्रमों की शुरुआत की है, आयुष्मान भारत और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना। इनका उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में आमूल-चूल बदलाव लाना है। आयुष्मान भारत का मकसद लोगों की व्यापक स्वास्थ्य देखभाल है, जिसके तहत 1.5 लाख स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना की गई है, गैर-संचारी रोगों का प्रबंधन किया जा रहा है, मातृ व बाल स्वास्थ्य सेवाओं के साथ-साथ नि:शुल्क आवश्यक दवाएं और जांच-पड़ताल की सुविधाएं दी गई हैं। वहीं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना में प्राथमिक व तृतीयक अस्पतालों में भर्ती के लिए 10 करोड़ परिवारों को बीमा कवर दी गई है। आयुष्मान भारत जहां बेहतर स्वास्थ्य का आश्वासन देता है, वहीं राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराएगी। मगर इनकी सफलता इनके क्रियान्वयन के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में उिल्लखित आयुष पद्धतियों को मुख्यधारा में लाने पर निर्भर करेगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यही मानता है कि प्रत्येक देश को अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान देने और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को पाने के लिए अपने तरीके विकसित करने की जरूरत है। इसलिए भारत को अपनी संस्कृति और आयुष पद्धतियों वाली पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के आधार पर यूएचसी के लिए अपनी रणनीति बनानी चाहिए। इस बात पर अब आम सहमति बन रही है कि पारंपरिक व पूरक चिकित्सा सेवाओं को शामिल करने से लोगों को अपनी सेहत सुधारने में मदद मिल सकती है। वैसे भी, जब गैर-संक्रामक रोगों की रोकथाम की तत्काल जरूरत है, आयुर्वेद (आहार और जीवनशैली में बदलाव) और योग (मन और शरीर का तालमेल) पर आधारित स्वास्थ्य देखभाल काफी अहम है। आधुनिक चिकित्सा और आयुष प्रणालियों का एकीकरण जान-माल के भारी नुकसान को रोक सकता है। भारत और विदेश में इस दिशा में पहले से ही कुछ प्रयास चल रहे हैं।
हम लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुरक्षा तभी दे सकते हैं, जब सार्वजनिक स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा मजबूत हो। किसी भी सरकार का मुख्य काम स्वास्थ्य सुरक्षा देना होना चाहिए। ऐसे में, आयुष्मान भारत और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को भारतीय ताकत एवं जरूरतों के मद्देनजर बनाया जाना चाहिए, जिसमें स्वास्थ्य आश्वासन संबंधी रणनीतियों में बीमारी की रोकथाम, मानव व्यवहार, पोषण, मातृ-शिशु स्वास्थ्य और बुजुर्ग आबादी की जरूरतों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। मौजूदा मॉडल ‘स्वास्थ्य को लेकर खौफ’ पैदा करने पर आधारित जान पड़ता है। यह तरीका ज्यादा दिनों तक कारगर नहीं रह सकता। लिहाजा, जब तक आयुष पद्धतियों को तवज्जो देते हुए आयुष्मान भारत और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जाएगा, तब तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का लक्ष्य नहीं पाया जा सकेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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