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Hindi News ओपिनियन नजरियाखेल से मिली शोहरत का नशा सिर पर न चढ़ने दें

खेल से मिली शोहरत का नशा सिर पर न चढ़ने दें

क्या तुमसे फिर उस शिक्षक ने वही सवाल किया कि तुम स्कूल आने से क्यों घबराते हो? ऐसा तुम्हारे साथ कई बार हुआ है। है न? तुम पढ़ाकू किस्म के लड़के नहीं हो। लेकिन ये शब्द तुम्हें ठेस पहुंचाते हैं। नहीं? मैं...

खेल से मिली शोहरत का नशा सिर पर न चढ़ने दें
धनराज पिल्लै पूर्व हॉकी कप्तानFri, 28 Jul 2017 01:15 AM
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क्या तुमसे फिर उस शिक्षक ने वही सवाल किया कि तुम स्कूल आने से क्यों घबराते हो? ऐसा तुम्हारे साथ कई बार हुआ है। है न? तुम पढ़ाकू किस्म के लड़के नहीं हो। लेकिन ये शब्द तुम्हें ठेस पहुंचाते हैं। नहीं? मैं जानता हूंं कि तुम दुखी हो। पर मेरा भरोसा करो, तकदीर ने तुम्हारे लिए कुछ बड़ा सोच रखा है। तुम स्कूल में फिट नहीं हो, मगर कई वर्ष बाद तुम्हारे ऊपर स्कूलों की किताब में एक पन्ना जरूर होगा। तुम्हें यह जगह तुम्हारी हॉकी दिलाएगी। हां, हॉकी! मैं तुमको बताता हूं कि यह कैसे होगा?

खड़की जैसे छोटे से गांव में, जहां तुम पैदा हुए हो, तुम्हारे पास दो ही विकल्प हैं: तुम्हें या तो हथियार बनाने वाली फैक्टरी में काम करना पड़ेगा, जहां तुम्हारे पिताजी काम करते हैं या फिर अन्यत्र नौकरी के लिए तुम्हें गांव छोड़ना होगा। छोटे शांत शहरों की शामें प्राय: कैरम खेलने में खर्च हो जाया करती हैं या फिर परेशानियों से बचने की कोशिश में। लेकिन खड़की में परेशानियां तुम्हें तलाश ही लेती हैं। तुम्हारे भैया रमेश इसे अच्छी तरह समझते हैं। इसलिए वह तुम्हें एक-दो साल में ही अपने पास मुंबई बुला लेंगे। र

मेश इस बात की नजीर हैं कि खड़की गांव के लड़के भी कुछ बड़ा कर सकते हैं। पहली नजर में यह नहीं लगता कि तुम अपने बड़े भाई के नक्शे-कदम पर चल सकते होे। मगर याद रखना, एक दिन ऐसा भी आएगा, जब तुम राष्ट्रीय हॉकी टीम का हिस्सा बनने की अपनी चाहत जाहिर करोगे, और राज्य हॉकी के पदाधिकारी तुम्हारी खिल्ली उड़ाएंगे। तब तुम इसे अपना मकसद बना लोगे और उसे हासिल करने के लिए खुद को पूरी तरह से झोंक दोगे। एक दिन तुम इस लक्ष्य को पाओगे। जरूर पाओगे!

जब तुम 21वें साल की दहलीज पर होगे, ऑलविन एशिया कप में भारत की तरफ से चीन के खिलाफ अपना पहला मैच खेलोगे। हां, वही धनराज, जो पुणे के धूल भरे मैदान में हॉकी खेलते हुए बड़ा हुआ है। उसके एक-दो महीने बाद ही तुम्हें बीएमडब्ल्यू टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिलेगा। पाकिस्तान के खिलाफ भारत खेलेगा, और उसके पहले 11 खिलाड़ियों में तुम भी शुमार होगे। यह मैच तुम्हारे करियर का यादगार मोड़ बनेगा।

जब तुम 1992 में बार्सिलोना ओलंपिक में शामिल होने के लिए विमान में चढ़ोगे, तो वे तुम्हारे सपनों के साकार होने के पल होंगे। खेल गांव में तुम दुनिया के महान खिलाड़ियों के बीच रहोगे। वहां अमेरिका की चमत्कारिक बास्केट बॉल टीम होगी और वहीं तुम्हें कार्ल लेविस भी मिलेंगे। उन सबको देखकर तुम्हारे अंदर और बेहतर करने का जज्बा पैदा होगा। धनराज, तुम अब भी बड़ी आंखों वाले किशोर हो। शर्मीले। ओलंपिक की दुनिया तुम्हारे लिए बिल्कुल अनजान है। लेकिन उसमें तुम्हें तुम्हारी जगह हॉकी दिलाएगी। तुम न सिर्फ इसके काबिल हो, बल्कि इसके लिए ही बने हो। 

जब तुम्हारी स्टिक पर गेंद होती है, तुम एक कलाकार बन जाते हो। सबकी नजरें तुम पर टिक जाती हैं, और विदेशी क्लबों के न्योते बरसने लगते हैं। लियोन (विदेशी हॉकी क्लब) चाहेगा कि तुम उसके लिए खेलो। वह इसकी अच्छी फीस देगा। इसलिए तुम तीन महीने के लिए वहां जाना। लियोन में तुम्हें टोनी फर्नांडीस के रूप में एक ऐसा गुरु मिलेंगे, जैसा तुम पूरी जिंदगी में न पा सकोगे। टोनी सर की निगरानी में तुम्हारी फिटनेस व स्टेमिना का स्तर काफी ऊपर हो जाएगा। वहीं पर तुम्हें अपनी क्रीड़ा-रणभूमि का ब्रह्मास्त्र मिलेगा और तुम्हारी प्रतिभा को नई धार मिलेगी- गेंद को झपटकर अचानक तेज गति से भागने की प्रतिभा।

जब तुम लियोन से लौटोगे, तब एक अलग ही धनराज होगे। पहले से काफी अधिक आत्मविश्वास से लबरेज, अधिक गतिमान, अधिक चुस्त-दुरुस्त, और जीत का अधिक भूखा। 1994 के विश्व कप में भले ही भारतीय टीम पांचवें पायदान पर रहे, लेकिन तुम एकमात्र भारतीय खिलाड़ी रहोगे, जिसे वल्र्ड-11 के लिए चुना जाएगा।

मगर धनराज, यह कभी मत भूलना कि शोहरत की चकाचौंध अक्सर लोगों को अंधा बना देती है। इसलिए कभी इसकी धारा में मत बहना। जब तुम बड़े होगे, तब  देखोगे कि कितने सारे खिलाड़ियों के पास कितनी जबर्दस्त काबिलियत है। तुम महसूस करोगे कि एक दिन वे तुम्हारी जगह ले सकते हैं। मगर वे ऐसा नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वे शोहरत को अपने सिर पर सवार कर लेंगे, और फिर अपनी राह से भटक जाएंगे।

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