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अपनी ही गलतियों की गिरफ्त में मुगाबे

जिंबाब्वे की राजधानी हरारे को सेना ने अपने नियंत्रण में ले लिया है। राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे को उनके घर में ही नजरबंद करके रखा गया है। हरारे में हर तरफ सेना व टैंक तैनात हैं और गोलीबारी व धमाकों की...

अपनी ही गलतियों की गिरफ्त में मुगाबे
अवधेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकारThu, 16 Nov 2017 10:48 PM
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जिंबाब्वे की राजधानी हरारे को सेना ने अपने नियंत्रण में ले लिया है। राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे को उनके घर में ही नजरबंद करके रखा गया है। हरारे में हर तरफ सेना व टैंक तैनात हैं और गोलीबारी व धमाकों की आवाजें सुनी जा रही हैं। हालांकि सेना ने तख्तापलट की खबरों को खारिज किया है। नेशनल ब्रॉडकास्टर जेडबीसी  पर फौज की तरफ से कहा गया है कि हम देश को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि राष्ट्रपति और उनका परिवार सुरक्षित है। हम उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं। हम सिर्फ उनके आस-पास मौजूद अपराधियों को निशाना बना रहे हैं। ये अपराधी देश के बिगड़ते सामाजिक-आर्थिक हालात की असली वजह हैं। जितनी जल्दी मिशन पूरा हो जाएगा, हमें उम्मीद है, उतनी जल्दी हालात सामान्य हो जाएंगे। किंतु क्या सच यही है, जो सेना बता रही है? वह राष्ट्रपति के आस-पास किन्हें अपराधी बता रही है? किनके खिलाफ कार्रवाई होने के बाद स्थिति सामान्य होने का वचन दे रही है? 

इसका उत्तर जानने के पहले यह जानना जरूरी है कि पिछले 8 नवंबर को उप-राष्ट्रपति इमरसन मनंगावा को जब मुगाबे ने बर्खास्त किया, तब सेना प्रमुख जनरल कान्सटैनटिनो चिवेंगा ने उसका विरोध किया था। चिवेंगा के विरोध को मुगाबे की पार्टी जेडएएनयू-पीएफ ने राजद्रोह बताया था। इसके बाद से ही हरारे में सेना की आवाजाही और तख्तापलट की आशंका बढ़ गई थी। सेना ने देश के नागरिकों को शांत रहने की सलाह दी है और बेवजह बाहर निकलने से भी मना किया है। लेकिन मुगाबे का सुरक्षित होना ही वहां की स्थिति के सामान्य होने का द्योतक नहीं है। जिंबाब्वे का भविष्य अनिश्चित है। दुनिया की नजर उस पर बनी हुई है। अगर वहां वाकई सैन्य तख्ता पलट होता है, तो यह बहुत बड़ी घटना होगी। अफ्रीका में जिंबाब्वे ऐसा देश रहा है, जिसने 1980 में ब्रिटेन से आजादी के बाद से रॉबर्ट मुगाबे के नेतृत्व में निर्गुट आंदोलन सहित अनेक वैश्विक समस्याओं पर प्रभावी भूमिका निभाई। नेल्सन मंडेला के बाद वह सबसे ज्यादा सम्मानित नेता माने जाते रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि इतने सम्मानित नेता और उसकी सरकार के साथ सेना ऐसा व्यवहार कर रही है? 
दरअसल, राष्ट्रपति मुगाबे ने पिछले सप्ताह जब उप-राष्ट्रपति मनंगावा को उनके पद से हटाया, तो उसका कोई ठोस कारण नहीं दिया। खबर यह फैली और इसमें सच्चाई भी थी कि उन्होंने अपनी पत्नी ग्रेस मुगाबे को उप-राष्ट्रपति बनाने के लिए ऐसा किया। माना जा रहा है कि मुगाबे अपनी पत्नी ग्रेस को अगला राष्ट्रपति बनाना चाहते हैं। 52 साल की ग्रेस दक्षिण अफ्रीकी मूल की महिला हैं। जब वह राष्ट्रपति कार्यालय में सचिव थीं, तभी उनका मुगाबे से प्रेम-प्रसंग शुरू हुआ। ग्रेस ने अपने पति से तलाक लेकर मुगाबे से शादी की और मुगाबे से उनके दो बच्चे हैं। मुगाबे की पहली पत्नी का निधन हो गया था। ग्रेस का शासन में दखल बढ़ा, तो इसके खिलाफ असंतोष पैदा होना ही था।

रॉबर्ट मुगाबे आजादी के बाद से ही जिंबाब्वे की सत्ता संभाल रहे हैं। दुनिया में भले उनकी इज्जत रही हो, पर वह शुद्ध लोकतांत्रिक कभी नहीं रहे। वह एकाधिकारवादी शासक रहे हैं, जिनको सेना का समर्थन प्राप्त था। पर जब उन्होंने आजादी की लड़ाई में शामिल वरिष्ठ नेताओं को निकालना शुरू किया, तो समस्या बढ़ गई। इन नेताओं ने पिछले साल एक अलग मंच बनाने की घोषणा की, जिसका मकसद मुगाबे की सत्ता को चुनौती देना व उनकी पत्नी का विरोध करना था। जिंबाब्वे में अगले वर्ष चुनाव होने हैं। 93 साल के मुगाबे से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सत्ता छोड़ देंगे। इसके कारण उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चाएं चल रही थीं। दो नाम सबसे ऊपर थे। पहला उप-राष्ट्रपति मनंगावा, जिनको सेना सहित आम जनता का भी समर्थन हासिल है। और दूसरा, ग्रेस मुगाबे, जिनके साथ रॉबर्ट मुगाबे के कुछ विश्वासपात्र लोग हैं। 

सच कहा जाए, तो मुगाबे अपने कारणों से अलोकप्रिय हुए हैं। पत्नी के प्रति उनकी आसक्ति तथा पूर्व लोकप्रिय साथियों को किनारे करना उनकी दुर्दशा का कारण है। यही वजह है कि सेना की कार्रवाई का कहीं से विरोध भी नहीं हो रहा। सेना ने उन्हें ही अपराधी कहा है, और वह कार्रवाई भी उनके खिलाफ ही कर रही है।  जिंबाब्वे का भविष्य अभी पूरी तरह सेना के हाथों में है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
 

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