इरादा कृषि पर कर लगाना नहीं, कर चोरी रोकना है
चौंसठ साल पुराने योजना आयोग को समाप्त कर उसकी जगह करीब ढाई साल पहले वजूद में आया नीति आयोग अब देश की तरक्की और योजनाओं की दशा-दिशा तय कर रहा है। अपने गठन के मकसद को हासिल करने और केंद्र व राज्यों को...
चौंसठ साल पुराने योजना आयोग को समाप्त कर उसकी जगह करीब ढाई साल पहले वजूद में आया नीति आयोग अब देश की तरक्की और योजनाओं की दशा-दिशा तय कर रहा है। अपने गठन के मकसद को हासिल करने और केंद्र व राज्यों को सबल बनाने में इसे कितनी कामयाबी मिली है? इन तमाम मसलों पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया से हिन्दुस्तान के विशेष संवाददाता पीयूष पांडेय ने विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है इसके अंश:
- काला धन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सरकार जिस दिशा में कदम उठा रही है, क्या वह समुचित है? आयोग की राय क्या है?
सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिनमें नोटबंदी सबसे ताजा उदाहरण है। लेकिन मेरा मानना है कि हमें ऐसे कदम भी उठाने चाहिए कि काला धन पनपे ही नहीं। जैसा हमने जमीन की रजिस्ट्री सस्ती करने को कहा है। इसी तरह, हमने विभिन्न स्तरों पर कर की दरों को नीचे लाने और सब्सिडी कम करने को कहा है, जिससे कर-चोरी में कमी आएगी। साथ ही आयोग ने कर नियमों के सरलीकरण और सुधार की सिफारिश भी की है। नियमों को पूरी तरह स्पष्ट करके बताएं कि कितना टैक्स लगेगा? ऐसा करने से लोग नियमों के बारे में जानेंगे। गौर करने वाली बात यह है कि रजिस्ट्री शुल्क राज्य ही वसूलते हैं, केंद्र्र का इससे कोई सरोकार नहीं है, पर काला धन वहां महंगी रजिस्ट्री की वजह से पैदा होता है। लोग जमीन की खरीद-फरोख्त में शुल्क बचाने के लिए कीमतें छिपाते हैं। इससे काले धन का लेन-देन बढ़ता है। अगर टैक्स कम किया जाएगा, तो जाहिर तौर पर लोग पूरी कीमत को रजिस्ट्री में दर्ज करेंगे और काले धन की आवाजाही कम होगी।
- कृषि आय पर कर लगाने की राय से एक अर्थशास्त्री के नाते आप कितना इत्तिफाक रखते हैं?
नीति आयोग ने कृषि में कर छूट के दुरुपयोग को खत्म करने की सिफारिश की है। जिनकी आय का स्रोत कुछ और है, और अगर वे कृषि से आय की आड़ लेकर कर चोरी कर रहे हैं, तो एजेंसियां उन पर शिकंजा कसें। रहा सवाल कर लगाने का, तो आज भी हमारे देश में काफी गरीबी है। अगर तेंदुलकर समिति की गरीबी रेखा को लें या अन्य किसी पर गौर करें, तो 80 प्रतिशत गरीब देश में ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर कृषि पर निर्भर हैं। और फिर एक तरफ जब सरकार खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना चाहती है, तो ऐसे में कृषि आय पर कर लगाने की हम बात करेंगे, तो संदेश गलत जाएगा।
- गरीबी रेखा के मुद्दे पर आयोग ने बीते ढाई साल से चुप्पी साध रखी है, इसके तय न होने से सरकार की योजनाओं पर किस तरह का असर पड़ रहा है?
देखिए, सरकार के गरीबों से जुड़े जो भी कार्यक्रम हैं, वे सुचारू रूप से चल रहे हैं। अब गरीबी रेखा का उपयोग किसी भी योजना को लागू करने में नहीं किया जा रहा है। कई योजनाओं में हमने सामाजिक-आर्थिक जनगणना को आधार बनाया है, जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में सभी के लिए घर। गरीबी रेखा का उपयोग सिर्फ गरीबों को ट्रैक करने तक सीमित रह गया है। योजना का लाभ देने में इसकी कोई भूमिका नहीं, इसलिए कोई योजना प्रभावित नहीं हो रही है।
- जीएम फसलों की तकनीक के इस्तेमाल का आयोग ने पक्ष लिया है। क्या इसके संभावित नुकसान के तकनीकी पहलुओं पर भी उसने गौर किया है?
जब कृषि पर टास्क फोर्स संबंधी रिपोर्ट तैयार की जा रही थी, तब नीति आयोग ने इस पर विस्तार से चर्चा की थी। इसमें हमने किसानों, वैज्ञानिकों, राज्यों समेत सभी के विचार लिए। वैज्ञानिकों ने बड़े ठोस तरीके से स्पष्ट किया कि इससे हम बहुत ज्यादा उत्पादकता बढ़ा सकते हैं, जहां तक इसके विपरीत प्रभाव का सवाल है, तो उन्हें हमें ध्यान में रखना पड़ेगा। बिना किसी जांच-पड़ताल के उन्हें अनुमति नहीं दी जाएगी। ऐसे मामलों में हमारे देश में प्रक्रिया काफी सख्त है। काफी छानबीन पहले ही हो चुकी है और जांच के अभी कई पड़ाव हैं, जब उन्हें कोई पार करेगा, तभी उसे बाजार में उतरने का मौका मिलेगा। वैश्विक स्तर की जिन कंपनियों की रिपोर्ट खराब आई है, उन्हें दूर रखा जाएगा।
- यूपी की तर्ज पर अन्य किन-किन पिछड़े राज्यों में विकास के लिए टीम भेजे जाने की संभावना है?
मैं स्वयं और नीति आयोग के सदस्य हरेक राज्य में जाएंगे। इसके बाद यह राज्यों पर निर्भर करेगा कि वे किस तरह से आयोग से सहयोग लेना चाहते हैं। अगर वे यूपी की तरह बहुमुखी विकास की दिशा में बढ़ना चाहेंगे, तो हम पूरा सहयोग करेंगे। पहले कुछ खास मुद्दों पर हम राज्यों के पास गए थे, जब हमने कृषि पर टास्क फोर्स का गठन किया था। सभी राज्यों के साथ विचार-विमर्श भी किया। कई मामलों में राज्यों के अधिकारियों को साल में दो से तीन बार आमंत्रित भी किया। उनके साथ बैठकें कीं, जमीन के पट्टे पर राज्यों के राजस्व सचिवों से चर्चा की। हां, यूपी के साथ हमारा संवाद थोड़ा हटकर रहा, क्योंकि उसमें हमने हरेक क्षेत्र पर गौर किया है।
- अन्य राज्यों की तुलना में आयोग ने उत्तर प्रदेश को खास तरजीह दी, कोई विशेष कारण?
देखिए, यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है। अगर अकेले यूपी को एक राष्ट्र के तौर पर देखा जाए, तो यह दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश बनता है। करीब 22 करोड़ की इसकी आबादी है और देश का पांचवां हिस्सा अकेले यूपी का है, इसलिए इसका महत्व ज्यादा है। ऐसे में, यूपी का विकास मतलब देश का विकास। जब यूपी में नई सरकार आई, तो उसने राज्य के विकास में आयोग के सहयोग की दिलचस्पी दिखाई थी। अगर अन्य राज्य भी दिलचस्पी दिखाएंगे, तो हम उनके पास जाएंगे। हमारा उद्देश्य ही है कि हम राज्यों के साथ मिलकर काम करें। उनका सहयोग करें। यूपी ने रुचि ली, तो हमारे प्रतिनिधिमंडल ने लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में नौ प्रेजेंटेशन दिए। इसके बाद राज्य व आयोग ने संयुक्त समिति भी गठित की और मुख्यमंत्री ने प्रेजेंटेशन के आधार पर आगे की रूपरेखा तैयार करने को कहा।
- योजना आयोग सभी राज्यों की मांगें पूरी करता था। नीति आयोग बिहार जैसे पिछड़े राज्यों के हितों के संरक्षण के लिए क्या कर रहा है?
केंद्र में अटके राज्यों के 30-35 मुद्दों पर हमने एक पुल की तरह काम किया है, जो सीधे तौर पर राज्यों से नहीं सुलझ रहे थे। राज्यों ने उनके बारे में हमें लिखा और हमने केंद्र्रीय मंत्रालयों से उन पर चर्चा की। अगर चर्चा में उनका हल नहीं निकला, तो केंद्र्र और राज्य के प्रतिनिधियों के साथ संयुक्त बैठकें कीं, जिनमें मैं खुद शामिल हुआ। इस तरह से नीति आयोग काम कर रहा है। रहा सवाल बिहार का, तो मेरी दो बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लंबी मुलाकात हुई है। उनकी तरफ से दो मुद्दे उठाए गए कि समेकित बाल विकास कार्यक्रम (आईसीडीएस) और मिड डे मील का क्रियान्वयन राज्य में ठीक से नहीं हो पा रहा है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु जितने अच्छे से कर पाता है, वह हम नहीं कर पाते। उन्होंने कहा है कि अध्ययन किया जाए। आयोग अभी ढाई साल का होने जा रहा है, वह आगे बढ़ रहा है। योजना आयोग ने 64 साल में सीखा। हम भी सबको साथ लेकर बढ़ रहे हैं।
- जेनेरिक दवाओं पर प्रधानमंत्री और नीति आयोग की राय एक-दूसरे से अलग हैं, ऐसा क्यों?
आयोग ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा, जिसमें कोई विरोधाभास हो या प्रधानमंत्री से अलग हो। हमने सिर्फ इतना कहा है कि जो भी दवा अति-आवश्यक दवाओं की सूची में आती हो, उसकी कीमतों को स्वचालित नियंत्रण में न रखा जाए। फिलहाल अति-आवश्यक दवाओं को स्वचालित नियंत्रण में रखा जाता है। लेकिन हमारा कहना है कि कई दवाएं ऐसी भी हो सकती हैं, जो बिना नियंत्रण सही कीमत पर बाजार में उपलब्ध हों, जबकि दूसरी जो वाकई काफी महंगी हों और उसे इस सूची में ही नहीं रखा गया हो। उनका भी नियंत्रण तो जरूरी है। कीमतों का नियंत्रण प्रतिस्पद्र्धा की कमी के चलते होता है, अगर बाजार में सिर्फ दो-तीन बड़े विक्रेता हैं, तो वे किसी दवा के दाम फिक्स कर बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा पेटेंट दवा एक ही कंपनी तैयार करती है, वह अपने दाम तय करती है। हमने प्रतिस्पद्र्धा बढ़ाने को कहा है। स्वचालित नियंत्रण प्रणाली के पीछे कोई तर्क नहीं है।
- कृषि भूमि पट्टेदारी में कितने राज्यों ने सहमति जताई है और कितने राज्य इससे दूरी बनाकर चल रहे हैं?
सभी राज्यों से सलाह-मशविरे के बाद एक मॉडल कानून बना, राज्य इसमें काफी उत्साह दिखा रहे हैं। राज्यों के राजस्व सचिव से चर्चा की गई थी। अभी तक मध्य प्रदेश ने एक नया कानून बनाया है। उत्तर प्रदेश ने किरायेदारी कानून में सुधार किए हैं। ओडिशा में भी हमारी सिफारिशों के आधार पर बिल तैयार है, आंध्र, उत्तराखंड समेत कुछ अन्य राज्यों में कानून में बदलाव की तैयारी चल रही है। आशा है कि जल्द ही यह पूरे देश में लागू होगा। रहा सवाल कुछ राज्यों की आपत्तियों का, तो इसमें कोई परेशानी नहीं। देश में इतनी विविधता है। हम बिल्कुल स्पष्ट हैं कि मॉडल कानून सिर्फ एक खाका है और राज्य क्षेत्रीय स्थितियों के साथ इसे लागू करें। उसमें हमारी सहायता चाहते हों, तो राज्य ले सकत हैं।
- वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे साइबर हमलों को देखते हुए डिजिटल लेन-देन के संदर्भ में नीति आयोग ने सरकार को क्या कोई सलाह दी है?
साइबर हमलों के मामले में चीजें तकनीकी हो जाती हैं, हालांकि हमने सरकार को साइबर सुरक्षा के बारे में लिखा है और संबंधित मंत्रालय उसकी रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। यह एक बहुत ही अहम मुद्दा है, यह सिर्फ लेन-देन की बात नहीं है, यातायात की लाइटों से लेकर ऑफिस के कंप्यूटर तक सब कुछ इंटरनेट पर आधारित है। हम पुराने तरीके का प्रयोग करेंगे, तो पीछे रह जाएंगे। इसलिए सुरक्षा के साथ हमें इस मामले में आगे बढ़ना ही पडे़गा।
- नीति आयोग को बने ढाई साल पूरे होने वाले हैं, इस दौरान आयोग ने क्या नया किया?
देखिए, जिस दिशा में हम काम कर रहे हैं, वह योजना आयोग से बिल्कुल भिन्न है। हमारी नींव संघवाद और राज्यों की सहभागिता पर आधारित है। योजना आयोग और राज्यों के बीच संबंध दूसरे तरह का था। योजना आयोग राज्यों को धन देता था, लेकिन उसमें नीतिगत सहयोग के लिए विचार-विमर्श नहीं होता था। हम राज्यों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, उनकी जरूरतों को समझ रहे हैं। हाल ही में हमने 15 साल के दृष्टिपत्र के मद्देनजर तीन साल की कार्य-योजना जारी की है। जनवरी, 2015 में गठन के बाद 14वें वित्त आयोग ने केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32 से बढ़ाकर 42 फीसदी कर दी। रेल बजट का आम बजट में विलय हुआ है, आउटकम बजट समेत विभिन्न मुद्दों पर केंद्र व राज्य सरकारों को महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। आयोग केंद्रीय नीतियों के निर्धारण में भी गहरा योगदान दे रहा है।... इस तरह नीति आयोग कई दिशाओं में काम कर रहा है, जो योजना आयोग नहीं करता था।
- देश की आबादी अगले एक-डेढ़ दशक में चीन को पीछे छोड़ देगी, क्या इसके नियंत्रण पर भी आयोग सरकार को कोई राय दे रहा है?
जब मैं विद्यार्थी था, तब किताबों में इसे एक समस्या के तौर पर दर्शाया जाता था, लेकिन आज स्थितियां बदल गई हैं। अब इसे जनसांख्यिकी लाभांश के तौर पर देखा जाता है। हालांकि देश की जनसंख्या 60 के दशक की तुलना में आज दोगुनी से भी ज्यादा है, लेकिन हमारी समृद्धि भी अब काफी बढ़ी है। मैं मानता हूं कि नीतियां अच्छी हों, तो रोजगार बढ़ता है और आबादी आपकी उत्पादक क्षमता को बढ़ाने में मदद ही करती है। कामगार नहीं होंगे, तो बड़े पैमाने पर आप काम नहीं कर सकते। चीन को देखिए, कितने बड़े पैमाने पर व्यापार करता है? इसलिए हमें भी इसे एक संसाधन ही मानना चाहिए।
- नीति आयोग के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
आयोग के सामने वही चुनौती है, जो देश के सामने है, और वह रोजगार को लेकर है। अच्छे रोजगार सृजित करने के लिए हमने कई सुझाव सरकार को दिए हैं। इनमें से कई व्यवस्थाएं राज्यों को और कई केंद्र्र को लागू करनी है, देखते हैं कि आगे क्या होता है? सबसे अच्छी बात यह है कि सरकार रोजगार सृजन के साथ युवाओं में उद्यमशीलता के प्रोत्साहन पर जोर दे रही है।