
सियासत से सिनेमा तक उत्तर और दक्षिण के प्रगाढ़ संबंध
संक्षेप: बिहार के मुजफ्फरपुर में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के अपनी बहन कनिमोई के साथ कांग्रेस-राजद वाले महागठबंधन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ में शामिल होने की तस्वीरों ने देश के राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया…
एस. श्रीनिवासन,वरिष्ठ पत्रकार
बिहार के मुजफ्फरपुर में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के अपनी बहन कनिमोई के साथ कांग्रेस-राजद वाले महागठबंधन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ में शामिल होने की तस्वीरों ने देश के राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया। इससे पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और केरल के वामपंथी नेता भी इस यात्रा में शामिल हो चुके थे।
दक्षिण के नेताओं की बिहार के नेताओं के साथ घुलने-मिलने वाली तस्वीरें कुछ मायनों में एकजुटता के संकेत देती हैं। अतीत में जब भी उत्तर में केंद्र के खिलाफ राष्ट्रीय मुद्दों पर अभियान चले, तो दक्षिण के नेताओं ने उसे अपना समर्थन दिया है। यह आत्मरक्षा का भी प्रयास है, क्योंकि वे जानते हैं कि ये मुद्दे भविष्य में उन्हें भी परेशान करेंगे। 31 जनवरी, 1976 को तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री के करुणानिधि दक्षिण के ऐसे पहले नेता थे, जिन्होंने जयप्रकाश नारायण के आपातकाल-विरोधी अभियान का समर्थन किया था। चेन्नई के एक समारोह में वह जनता पार्टी के साथ आए। उसी समय उन्होंने आशंका जताई कि मुख्यमंत्री के रूप में शायद यह उनका आखिरी भाषण हो। हुआ भी यही, उनके घर लौटने से पहले ही वह बर्खास्त कर दिए गए।
साल 1996 में जब राष्ट्रीय मोर्चा-वाम मोर्चा सरकार का गठन हुआ, तब आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने इसके संयोजक के रूप में अहम भूमिका निभाई। देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली यह सरकार कांग्रेस के ‘बाहरी समर्थन’ पर टिकी थी। बाद में कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण वह सरकार गिर गई। वर्तमान संदर्भ में देखें, तो एक समय जोड़ीदार रहे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार कांग्रेस के विरोध में सियासत में उभरे थे। इसके बाद जहां नीतीश कुमार पाला बदलते रहे, वहीं लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी भाजपा के खिलाफ पूरी प्रतिबद्धता के साथ डटे रहे। यही कहानी स्टालिन की है।
उत्तर और दक्षिण भारत को भौगोलिक तौर पर विंध्याचल पर्वत शृंखला विभाजित करती है। देश के इन दोनों हिस्सों की संस्कृति, भाषा, खान-पान और परंपराएं अलग-अलग रही हैं। दोनों की राजनीति भी अलग-अलग रही है। अब बॉलीवुड, तमिल और तेलुगु फिल्मों के कारण इसका एकीकरण हो रहा है। कभी अमिताभ बच्चन अभिनीत हिंदी फिल्म के तमिल संस्करण में रजनीकांत ने अभिनय किया। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पूरे भारत की आर्थिक और सामाजिक स्थिति लगभग एक सी थी। गरीबी, स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति निम्न स्तर पर थी। 1960 के दशक में जब दिल्ली में केंद्र सरकार की नौकरियों के दरवाजे खुले, तो दक्षिण के अंग्रेजी में पढ़े-लिखे अनेक लोग उच्च पदों पर नौकरी करने उत्तर की ओर आए थे।
मगर पिछले कुछ दशकों में राज्यों की स्थिति में भारी बदलाव आया है। 1990 के दशक के आर्थिक सुधारों, दक्षिण में सामाजिक सशक्तीकरण आंदोलनों और अन्य बातों ने एक नई स्थिति पैदा कर दी है। तकनीक, आईटी उद्योग, खासकर दूरसंचार और इसके यूजर इंटरफेस के उदय ने चीजों को पूरी तरह बदल दिया है। कोरोना महामारी के दौरान उत्तर के लोगों ने दक्षिण की फिल्मों को डब करके देखना शुरू कर दिया। तेलुगु सुपरस्टार अल्लू अर्जुन जब अपनी फिल्म पुष्पा-2 के प्रचार के लिए पटना पहुंचे, तो उन्हें देखने प्रशंसकों का सैलाब उमड़ आया था।
उत्तर भारत से बड़ी संख्या में लोग आईटी सेक्टर में नौकरी करने दक्षिण की ओर आने लगे और चूंकि दक्षिण शिक्षा का केंद्र बन गया, इसलिए बड़ी तादाद में उत्तर भारतीय बच्चे पढ़ाई के लिए दक्षिण के निजी कॉलेजों की ओर आने लगे। यही नहीं, सुपर स्पेशियलिटी वाले अस्पतालों में इलाज के लिए भी लोग चेन्नई पहुंचने लगे। उत्तर में युवा आबादी है, जबकि दक्षिण की आबादी तेजी से बुजुर्ग हो रही है। इसलिए बिहार, उत्तर प्रदेश व पूर्वोत्तर के राज्यों से बड़ी संख्या में श्रमिक दक्षिणी राज्यों में नौकरी पा रहे हैं। इस नजरिये से भी स्टालिन के बिहार दौरे का प्रतीकात्मक महत्व है। राहुल व तेजस्वी को राजनीतिक समर्थन देने के अलावा स्टालिन उनके लिए चुनावी समर्थन भी जुटा रहे हैं। अपेक्षा यही है कि दक्षिण में अच्छी नौकरी और व्यवसाय करने वाले उत्तर भारतीय अपने रिश्तेदारों के बीच महागठबंधन के लिए माहौल बनाएंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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