आओ घोटालों का पहाड़ बनाएं
समस्या कोई बड़ी नहीं होती। यदि बड़ी हो जाए, तो वह समस्या नहीं रहती। छोटे गड्ढे समस्या हैं। गड्ढे बड़े हो जाते हैं, तो हम रास्ता बदल लेते हैं। न बदल पाएं, तो उन्हें अपने सफर का हिस्सा मान लेते हैं। देश...
समस्या कोई बड़ी नहीं होती। यदि बड़ी हो जाए, तो वह समस्या नहीं रहती। छोटे गड्ढे समस्या हैं। गड्ढे बड़े हो जाते हैं, तो हम रास्ता बदल लेते हैं। न बदल पाएं, तो उन्हें अपने सफर का हिस्सा मान लेते हैं। देश उन्नति के सफर में है और घोटाले सफर का हिस्सा। अगर आपने कभी चोरी से पड़ोसी के अमरूद तोड़े हैं, पार्टी में महिलाओं की भीड़ में अपना दोना फंसाकर दो गोलगप्पे लूटे हैं, चार किलोमीटर दौड़कर कभी पतंग लूटी है, तो अब सरकारी बैंक लूटो।
कम मेहनत में अधिकतम फायदा। ये लूट हजार करोड़ से ऊपर हो गई, तो आपके सम्मान में इसे घोटाला कहा जाएगा।
घोटालों की परतें बन रही हैं, जल्द ही इनका एक बड़ा पहाड़ बन जाएगा। जब घोटालों का पहाड़ बन जाएगा, तो उस पर स्नो फॉल भी होगा। सारे घोटाले ठंडे पड़ जाएंगे। फिर हम घोटाला हिल स्टेशन जाएंगे और खूब मजे करेंगे। घोटालेबाज चाहते हैं कि जनता मजा करे। आओ घोटालों का पहाड़ बनाएं। घोटालों को तुरंत अपने दिमाग की कैद से मुक्त करें। इन्हें तुरंत डस्टबिन के हवाले करें। अपने योगदान के बारे में घोटाला निस्तारण समिति की हेल्पलाइन पर सूचना दें। घोटाला पहाड़ निर्माण में अपनी राष्ट्रीय जिम्मेदारी के बारे में दूसरों को भी बताएं और उन्हें भी योगदान के लिए प्रेरित करें।
चलता है। जेब कटी, बस खाई में गिरी, ट्रेन पटरी से उतरी, जहरीली शराब से 100 मरे, यह सब चलता है। आजकल घोटाला भी चलता है। फिर जांच चलती हैं। जांच चलते ही घोटाला थम जाता है। घोटाला थमा देख जांच थम जाती है। जांच के थमते ही घोटाला चलता है। घोटाला और जांच दो कदमों की तरह हैं। एक थमता है, तो दूसरा चलता है। ज्यादा कौन चलता है। वह, जी हां वही, जो दोनों कदमों को चलाता है। जब दोनों कदम थक जाते हैं, तो वह कुरसी पर बैठ जाता है। वहीं से देश की उन्नति के सफर की रूपरेखा बनती है।