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Hindi News ओपिनियन नश्तरचुनाव, खामोशी और दनादन टिकटगिरी

चुनाव, खामोशी और दनादन टिकटगिरी

मुल्क भर में चुनाव प्रक्रिया की अब आधिकारिक उद्घोषणा हो ली है। अब फाग के बाद सरेआम चुनावी रंगपाशी तय है। इसको-उसको टिकट मिल जाने की या मिलते-मिलते कट जाने की अफवाहें तेजी से घूम रही हैं। यह मनोवांछित...

चुनाव, खामोशी और दनादन टिकटगिरी
निर्मल गुप्तTue, 12 Mar 2019 01:11 AM
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मुल्क भर में चुनाव प्रक्रिया की अब आधिकारिक उद्घोषणा हो ली है। अब फाग के बाद सरेआम चुनावी रंगपाशी तय है। इसको-उसको टिकट मिल जाने की या मिलते-मिलते कट जाने की अफवाहें तेजी से घूम रही हैं। यह मनोवांछित टिकटाई की गुपचुप रुत है। वसंत अब सिर्फ मौसमानुकूल किटी पार्टी करने वाली देवियों के विमर्श में मौजूद है। वे वार्डरोब में जमा साड़ियों के जखीरे में वासंती रंग खंगाल रही हैं। 
फिलवक्त मुल्क में शुष्क ठंडी हवा बह रही है। स्थिति इस कदर सौहार्दपूर्ण है कि जाने-पहचाने और पहुंचे हुए फायर ब्रांड नेता भी सिर्फ अनमोल वचन जैसे बयान दे पा रहे हैं। तमाम दलों के धमाकेदार सर्वज्ञ मुंह पर अनुशासन की तर्जनी रखे हुए हैं। वे वक्त रहते कुछ न कुछ कर गुजरने को अकुला जरूर रहे हैं, लेकिन आलाकमान के सख्त निर्देशों के चलते मन मसोसकर सिर्फ दांत किटकिटा पा रहे हैं। राजनीतिक घाघों का कहना है कि उनकी चुप्पी बनी रही, तो शानदार नतीजे सामने आएंगे। बताया गया है कि जब उपयुक्त मौका होगा, तब वे प्राचीर पर चढ़कर जी भरके बतकही के कनकौए जरूर उड़ाएंगे। 
राजधानी से धुंध कमोबेश छंट गई है। जनता ने अपने मुंह पर बांधने वाले निजी मास्क और अपनी पर्यावरणवादी चिंताएं उस कदीम खूंटी पर टांग दी हैं, जहां अक्सर फटा छाता, अंडरसाइज ओवरकोट, शॉल आदि तमाम ऑब्सलीट भावुकताएं धरकर यूंही छोड़ देने की सनातन परिपाटी है। गूगल के सैटेलाइट नक्शे पर चुनावी हवा देखने वालों को अभी तक यही पता लगा है कि चहुंओर वाचाल सन्नाटा है। या तूफान से पहले की खामोशी। अभी न कोई किसी के कपडे़ फाड़ रहा है, न धरपकड़ हो रही है और न जाने-माने नेताओं में से किसी की भूली-बिसरी रसरंजित कहानी सामने आने की अपुष्ट खबर है। चुनावी डिबेट यूंचल रही है, जैसे सत्यनारायण की कथा। यह खामोशी शोरगुल प्रिय जनता को बहुत खट क रही है। 
    

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