ठंंडे मौसम में गरम खबरों का सहारा
अमेरिका, ईरान, इराक पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वह माहौल गरम रखें, ताकि विश्व को सर्दी न लगे। वैसे भी ठंडे अखबार को गरमा-गरम खबरों का ही सहारा होता है। सरहदों पर ठूं-ठां न हो, तो लगता है, दोनों देश...
अमेरिका, ईरान, इराक पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वह माहौल गरम रखें, ताकि विश्व को सर्दी न लगे। वैसे भी ठंडे अखबार को गरमा-गरम खबरों का ही सहारा होता है। सरहदों पर ठूं-ठां न हो, तो लगता है, दोनों देश मित्र हो गए हैं। वीजा की कोई जरूरत नहीं। ज्यादा शांति से बोरियत होने लगती है। अलाव में भले ही आंच न हो, पर अंगारे सुलगते रहें, तो अच्छा लगता है।
कई लोग तो इन दिनों आसमान के तारों को अंगारा समझकर सेंकते हैं। सूरज को क्या सेंके, दिखता ही नहीं। जो लोग आलोचना करते हैं, करने दीजिए। आलोचकों के बुत नहीं बनाए जाते। आप अपने कर्म पर ध्यान रखिए, चाहे वह दुष्कर्म ही क्यों न हो। देश की चिंता करने वाले लोग बहुत हैं। बाकी दुबले हो गए हैं। उन्हें डिस्टर्ब मत करिए। दूसरों के काम में टांग मत अड़ाइए। बहुत दिनों से कोई बड़ा पेड़ भी तो नहीं गिरा, ताकि धरती थरथराती रहे। देश का आलस्य हो, तो अजगर जैसा ही हो।
इस सर्दी में जिसे खुले में नहाने की इच्छा हो, समझो उसी में परमात्मा का अंश है। बिना हड्डी के दधीचि नहीं होते। अरे भाई, जहां मेले नहीं होते, वहां क्या माघ महीना नहीं पड़ता। मैली गंगा तो वैसे भी नहाने वालों से परेशान है। ये लोग न नहाएं, उनका मैल न आए, तो वह स्वच्छ हो। नमामि गंगे का नारा तो खुद हाथ जोड़े खड़ा है। प्रदूषित पतनालों को गंगा ही पसंद है, तो कोई क्या करे? अजीब दहशत है। नए साल का स्वागत जारी है। बस देखना यह है कि किसी गुलदस्ते में बम न हो। आलू में भी दम अच्छा लगता है, बम नहीं।
सर्दियों में तो सारे धार्मिक स्थल पर्यटन केंद्रों में बदल जाते हैं। इस मौसम में बरांडे में बैठकर बरांडी पीने का मजा ही अलग है। जिन इलाकों में सूरज नहीं निकल रहा, समझ लीजिए कि वह कहीं और व्यस्त है। आप तो गरम विज्ञापन पढ़ते रहिए, आराम मिलेगा। कुछ लोगों पर मौसम का कोई प्रभाव नहीं होता। देखिए न, अंधे अंधों से लड़ रहे हैं, बहरे चुप हैं और गूंगों की कोई सुन ही नहीं रहा।