फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन नश्तरसचिवालय के सन्नाटे का छंद

सचिवालय के सन्नाटे का छंद

शोर के बाद सन्नाटा है। दफ्तरों में चुनावी अनुमानों के जो काल्पनिक कनकौए उड़ाए जा रहे थे, वे कट चुके हैं। पान की दुकानों, ढाबों और कहवाघरों में चर्चा के नए विषय तलाशे जा रहे हैं। बहसिए निराश हैं। उनका...

सचिवालय के सन्नाटे का छंद
गोपाल चतुर्वेदीMon, 10 Jun 2019 06:15 AM
ऐप पर पढ़ें

शोर के बाद सन्नाटा है। दफ्तरों में चुनावी अनुमानों के जो काल्पनिक कनकौए उड़ाए जा रहे थे, वे कट चुके हैं। पान की दुकानों, ढाबों और कहवाघरों में चर्चा के नए विषय तलाशे जा रहे हैं। बहसिए निराश हैं। उनका निष्कर्ष है कि चुनावी तिलों में चर्चा का तेल नहीं है। दफ्तरकर्मी पीड़ित हैं। अब काम करने के अलावा कोई चारा नहीं है। मंत्री नामक अजूबे की विशेषता है कि सार्वजनिक अवसरों पर हंसता-खिलखिलाता है, वरना दफ्तर में तो साहब के कुत्ते-सा गुर्राता ही रहता है। क्या पता, कब निलंबन-सस्पेंशन के दांतों से काट ही बैठे? अफसर लालबत्ती लगाए व्यस्त हैं। बाबुओं को कैंटीन में जाने तक की फुरसत नहीं, वरना उनका तो पूरा शहर था। मंत्री हैं कि बाजिद हैं, लाल फीताशाही के सुधार को। उसने घोषणा की है कि ‘आप फाइल लटकाएं, घुमाएं या नचाएं, मुझे तो सिर्फ समय पर नतीजों में दिलचस्पी है।’ 
कभी-कभी लगता है कि महाकवि ने सन्नाटे का छंद इसी माहौल में बुना होगा। दिन भर भीड़ का तांडव है, तो रात को झींगुर का राग। नदी के बीच जाकर भी कविता गुनगुनाना या प्रेरणा को तलाशना तक आज सुरक्षित नहीं है। कौन कहे वहां संक्रमण के कितने कीटाणु भटक रहे हैं? इधर कवि कविता के आनंद में है, उधर अनजान रोग उसे घेरने की प्रतीक्षा में। पहले कवि घाट-घाट का पानी पीता था, आज उसके लिए किसी घाट की बूंद तक वर्जित है। 
सियासी दलों की दुर्दशा शोचनीय है। सब बैठकों के माध्यम से पराजय के कारणों की खोज में जुटे हैं। हर रैली में भीड़ ही भीड़ थी और परिणाम वही हारे को हरिनाम। ले -देकर रोष का ठीकरा तो ईवीएम पर ही फूटना है। हमारी सरकारी बस्ती के पढ़े-लिखे तो काम के बोझ से इतने त्रस्त हैं कि उन्होंने सामूहिक चंदा एकत्र किया है। उन्हें बस्ती के पार्क में यज्ञ-हवन करवाना है। इसका इकलौता लक्ष्य है कि यह नवगठित सरकार जल्दी से जल्दी गिरे। दफ्तर में चुनावी अनुमानों का स्वर्णिम काल फिर से वापस आए।
    

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें