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Hindi News ओपिनियन नश्तरयूं क्यों हम तुझसे दूर हुए

यूं क्यों हम तुझसे दूर हुए

जी नहीं, यह कोई प्रेम कहानी नहीं है। यह किसी आशिक या माशूक का किस्सा नहीं है। मिलन और वियोग की कहानी भी नहीं है। पर लगती कुछ ऐसी ही है। लोग मैट्रो पर फिदा हुए, उन्होंने उससे दिल लगाया, उसके गुण गाए,...

यूं क्यों हम तुझसे दूर हुए
सहीरामTue, 05 Dec 2017 02:04 AM
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जी नहीं, यह कोई प्रेम कहानी नहीं है। यह किसी आशिक या माशूक का किस्सा नहीं है। मिलन और वियोग की कहानी भी नहीं है। पर लगती कुछ ऐसी ही है। लोग मैट्रो पर फिदा हुए, उन्होंने उससे दिल लगाया, उसके गुण गाए, उसे दिल से सराहा, उसे दिल से चाहा। पर अब वह दूर हो गई। अब इस प्रेम में पैसा आ गया। अब यह अमीर-गरीब वाला किस्सा हो गया। अब आशिक और माशूक के बीच पैसे की दीवार खड़ी हो गई। अब गरीब आशिक अमीर माशूका के पास कैसे जाए? उसकी जेब खाली है। अब उससे साथ नहीं निभेगा। अब तो सड़क पर खड़े होकर ही उसका दीदार किया जा सकता है। सरकार इनके बीच वैसे ही आ गई, जैसे प्रेम कहानियों में माशूक का अमीर बाप आ खड़ा होता है यह कहते हुए कि तू क्या दे सकता है मेरी बेटी को? तू तो उसका खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, घूमने-फिरने का खर्चा भी नहीं उठा पाएगा। सरकार भी तो यही कह रही है।

मैट्रो के चाहने वालों ने भी फुकरों की तरह कोई हंगामा नहीं किया। शरीफों की तरह चुपचाप नाता तोड़ लिया। तेरे स्टेशन पर न रखेंगे कदम आज के बाद। छूट गया बालम, साथ हमारा छूट गया। उन्होंने उसी तरह बाइक को अपना लिया, जैसे मां-बाप के कहने पर आशिक चुपचाप शादी कर घर-गृहस्थी बसा लेता है। वे चुपचाप बस सेवा की ओर लौट गए। जैसे प्रेम में पागल कोई आशिक दिल टूटने पर चुपचाप बीवी-बच्चों के पास लौट जाता है। इधर सारे जग में शोर मचा है कि देखो सरकार कैसी विलेन है? आशिक और माशूक के बीच दीवार बनकर खड़ी हो गई। सरकार कह रही है कि नहीं-नहीं, ऐसा कोई बिछोड़ा नहीं हुआ। छुट्टियों-वुट्टियों की वजह से मिलना-जुलना थोड़ा कम हो गया, बस। लेकिन तोहमतें लग रही हैं। विपक्ष वाले कह रहे हैं- हमने कहा था न कि इसे इतना महंगा मत करो कि लोगों का दिल ही टूट जाए। पर तब तो सरकार कारोबारी बाप की तरह तुनककर बोली- लाओ, तीन हजार करोड़ रुपये दे दो तुम्हारे पास हैं तो, वरना चुप रहो। अब देख लो, हो गई न राहें जुदा।

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