टीवी, जहां सब सुधर जाता है
कानून-व्यवस्था ठीक-ठाक काम कर रही है, ऐसा फर्जी एहसास जहां से होता था, वह ठिकाना भी निपट लिया। सीआईडी सीरियल वाले एसीपी प्रद्युम्न सिंह भी छुट्टी पर निकल लिए हैं, क्योंकि दो दशक पुराने सीरियल...
कानून-व्यवस्था ठीक-ठाक काम कर रही है, ऐसा फर्जी एहसास जहां से होता था, वह ठिकाना भी निपट लिया। सीआईडी सीरियल वाले एसीपी प्रद्युम्न सिंह भी छुट्टी पर निकल लिए हैं, क्योंकि दो दशक पुराने सीरियल सीआईडी की छुट्टी होने की खबरें हैं।
एक टीवी चैनल की रीढ़ ही क्राइम शो पर टिकी हुई है। इस चैनल के क्राइम शो इस कदर ग्लैमरस होते हैं कि बंदा इन्हें देखकर क्राइम करने की ओर उन्मुख न हो, तो समझिए कि उसमें ही कुछ कमी है। एक खबर पढ़ी थी- प्रेम त्रिकोण में दो हत्याएं- रामबखेड़ा और फूलवती आपस में प्यार में थे, यह बात फूलवती के पति मलखान को मंजूर न थी। रामबखेड़ा और फूलवती की हत्या हो गई। इस क्राइम कथा में शामिल तीनों पात्रों के फोटो अखबार में छपे। रामबखेड़ा कुपोषण का मारा लगता था और मलखान पैदाइशी डाकू। जैसे ही इस स्टोरी पर टीवी क्राइम शो बना, रामबखेड़ा एकदम हैंडसम नौजवान दिखा टीवी शो में। फूलवती भी ऐसी दिखाई गईं, मानो चौबीस घंटे वह सिर्फ मेकअप, फेशियल आदि कराकर सन्नद्ध रहती हों। एक छोटे से गांव में खेत मजदूर रामबखेड़ा और फूलवती अपने मेकअप आदि पर इतनी रकम खर्च करते दिखे, तो लगा कि ग्रामीण विकास की दर बहुत ही तेज हो गई है।
जो अपराध अखबारों में वीभत्स लगता है, वही अपराध टीवी पर ग्लैमरस हो जाता है। टीवी पता नहीं क्या का क्या कर दे! एक टीवी सीरियल में महिला पात्र सीरियल में अचानक बताने लगी- फलां ब्रांड की झाड़ू बहुत ही अच्छी झाड़ू है, एक झटके में सब साफ कर देती है। झाड़ू बतौर स्पॉन्सर आए सीरियल में, तो समझ आता है। झाड़ू बतौर पात्र आने लगे सीरियल में, तो क्या कहने।
एसीपी प्रद्युम्न गए हैं, तो संभव है कि प्रेम त्रिकोण का कोई सीरियल आ जाए, तीसरा कोण झाड़ू का हो सकता है। वैसे, चुड़ैलों-डायनों की जगह सीरियलों में बतौर चरित्र झाड़ू आएं, तो कुछ बेहतरी ही मानी जानी चाहिए।